गुवाहाटी। पंजाब पुलिस के पूर्व प्रमुख केपीएस गिल ने एक साक्षात्कार के दौरान राज्यपालों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की है। उन्होंने राज्यपाल के संवैधानिक पद को बूढ़ी वेश्या करार दिया है।
गिल ने कहा कि 1993 में राजेश पायलट ने उन्हें मणिपुर का राज्यपाल बनने का अनुरोध किया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। राज्यपाल बूढ़ी वेश्याओं की तरह होते है जो बिना काम के इंतजार करती हैं। मैं इस जॉब के लिए कभी इंटरेस्टेड नहीं था।
गिल ने ये बातें असम के एक न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में कही। गिल असम एजिटेशन के दौरान 1979 से 1985 के बीच असम में तैनात थे। असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने दावा किया था कि उन्होंने गिल को 2004 में असम का राज्यपाल बनाने की एनडीए सरकार की योजना को विफल कर दिया था।
गोगोई ने आरोप लगाया था कि असम में सीक्रेट किलिंग के पीछे गिल का हाथ था। उस वक्त प्रफुल्ल कुमार मंहत के नेतृत्व वाली असम गण परिषद की सरकार सत्ता में थी। 1996 से 2001 के बीच अज्ञात हमलावरों ने उल्फा के वरिष्ठ नेताओं के परिजनों की हत्याएं की थी। यह आरोप लगाया जाता है कि महंत की सरकार ने उल्फा के सदस्यों पर सरेंडर का दबाव बनाने के लिए हत्याएं करवाई थी।
गिल ने गोगोई के दावों को बकवास करार देते हुए उन्हें झूठा इंसान बताया। गिल ने कहा कि मैंने आज तक इतना बड़ा झूठ नहीं सुना। असम प्रदर्शन के दौरान कथित अत्याचारों के दौरान गिल असम में हमेशा विवादित व्यक्ति रहे हैं। गिल ने असम में विकास नहीं होने के लिए वहां के नेताओं को जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि विकास नहीं होने के कारण वहां उग्रवाद का जन्म हुआ।
गिल ने कहा कि पंजाब और असम में उग्रवाद विरोधी अभियानों के दौरान सेना का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। क्योंकि इससे सिविल सोसायटी और सुरक्षा बलों के बीच अविश्वास पैदा होता है। उन्होंने कहा कि पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार और असम में ऑपरेशन बजरंग का इस्तेमाल गलत था। उग्रवाद की समस्या के हल के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल होना चाहिए।
गिल ने कहा कि 1993 में राजेश पायलट ने उन्हें मणिपुर का राज्यपाल बनने का अनुरोध किया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। राज्यपाल बूढ़ी वेश्याओं की तरह होते है जो बिना काम के इंतजार करती हैं। मैं इस जॉब के लिए कभी इंटरेस्टेड नहीं था।
गिल ने ये बातें असम के एक न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में कही। गिल असम एजिटेशन के दौरान 1979 से 1985 के बीच असम में तैनात थे। असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने दावा किया था कि उन्होंने गिल को 2004 में असम का राज्यपाल बनाने की एनडीए सरकार की योजना को विफल कर दिया था।
गोगोई ने आरोप लगाया था कि असम में सीक्रेट किलिंग के पीछे गिल का हाथ था। उस वक्त प्रफुल्ल कुमार मंहत के नेतृत्व वाली असम गण परिषद की सरकार सत्ता में थी। 1996 से 2001 के बीच अज्ञात हमलावरों ने उल्फा के वरिष्ठ नेताओं के परिजनों की हत्याएं की थी। यह आरोप लगाया जाता है कि महंत की सरकार ने उल्फा के सदस्यों पर सरेंडर का दबाव बनाने के लिए हत्याएं करवाई थी।
गिल ने गोगोई के दावों को बकवास करार देते हुए उन्हें झूठा इंसान बताया। गिल ने कहा कि मैंने आज तक इतना बड़ा झूठ नहीं सुना। असम प्रदर्शन के दौरान कथित अत्याचारों के दौरान गिल असम में हमेशा विवादित व्यक्ति रहे हैं। गिल ने असम में विकास नहीं होने के लिए वहां के नेताओं को जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि विकास नहीं होने के कारण वहां उग्रवाद का जन्म हुआ।
गिल ने कहा कि पंजाब और असम में उग्रवाद विरोधी अभियानों के दौरान सेना का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। क्योंकि इससे सिविल सोसायटी और सुरक्षा बलों के बीच अविश्वास पैदा होता है। उन्होंने कहा कि पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार और असम में ऑपरेशन बजरंग का इस्तेमाल गलत था। उग्रवाद की समस्या के हल के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल होना चाहिए।
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