राजस्थानी भाषा के विद्वान विजयदान देथा बिज्जी नहीं रहे सादर श्रद्धांजलि
राजस्थानी भाषा के सुविख्यात लेखक कवी विजयदान देथा हमारे बीच नै रहे। राजस्थानी भाषा के विकास में उनका अतुल्य योगदान को बहलाया नहीं जा सकता। युगपुरुष के चले जेन से राजस्थानी साहित्य को बड़ी क्षति पहुंची। विजयदान देथा (जन्म: १ सितम्बर १९२६) जिन्हें बिज्जी के नाम से भी जाना है राजस्थान के विख्यात लेखक और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और साहित्य चुड़ामणी पुरस्कार जैसे विभिन्न अन्य पुरस्कारों से भी समानित किया जा चुका है।
पूर्व जीवन
विजयदान देथा चारण जाति से हैं। उनके पिता सबलदान देथा और दादा जुगतिदान देथा भी राजस्थान के जाने-माने कवियों में से हैं। देथा ने अपने पिता और दो भाइयों को एक पुश्तैनी दुश्मनी में मात्र चार वर्ष की आयु में खो दिया।
अपनी मातृ भाषा राजस्थानी के के समादर के लिए 'बिज्जी' ने कभी अन्य किसी भाषा में नहीं लिखा, उनका अधिकतर कार्य उनके एक पुत्र कैलाश कबीर द्वारा हिन्दी में अनुवादित किया।
उषा, १९४६, कविताएँ
बापु के तीन हत्यारे, १९४८, आलोचना
ज्वाला साप्ताहिक में स्तम्भ, १९४९–१९५२
साहित्य और समाज, १९६०, निबन्ध
अनोखा पेड़, सचित्र बच्चों की कहानियाँ, १९६८
फूलवारी, कैलाश कबीर द्वारा हिन्दी अनुवादित, १९९२
चौधरायन की चतुराई, लघु कथाएँ, १९९६
अन्तराल, १९९७, लघु कथाएँ
सपन प्रिया, १९९७, लघु कथाएँ
मेरो दर्द ना जाणे कोय, १९९७, निबन्ध
अतिरिक्ता, १९९७, आलोचना
महामिलन, उपन्यास, १९९८
प्रिया मृणाल, लघु कथाएँ, १९९८
राजस्थानी
बाताँ री फुलवारी, भाग १-१४, १९६०-१९७५, लोक लोरियाँ
प्रेरणा कोमल कोठारी द्वारा सह-सम्पादित, १९५३
सोरठा, १९५६–१९५८
परम्परा, इसमें तीन विशेष चीजें सम्पादित हैं - लोक संगीत, गोरा हातजा, जेथवा रा * राजस्थानी लोक गीत, राजस्थान के लोक गीत, छः भाग, १९५८
टिडो राव, राजस्थानी की प्रथम जेब में रखने लायक पुस्तक, १९६५
उलझन,१९८४, उपन्यास
अलेखुन हिटलर, १९८४, लघु कथाएँ
रूँख, १९८७
कबू रानी, १९८९, बच्चों की कहानियाँ
देथा भी निम्नलिखित कार्यों के सम्पादन के लिए भी आकलित किया जाता है
साहित्य अकादमी के लिए गणेशी लाल व्यास का कार्य पूर्ण किया।
राजस्थानी-हिन्दी कहावत कोष।
पुरस्कार और सम्मान
राजस्थानी के लिए १९७४ का साहित्य अकादमी पुरस्कार
१९९२ में भारतीय भाषा परिषद पुरस्कार
१९९५ का मरुधारा पुरस्का र
२००२ का बिहारी पुरस्कार
२००६ का साहित्य चूड़ामणि पुरस्का र
२००७ में पद्मश्री
मेहरानगढ़ संग्राहलय ट्रस्ट द्वारा २०११ में राव सिंह पुरस्कार
राजस्थानी भाषा के सुविख्यात लेखक कवी विजयदान देथा हमारे बीच नै रहे। राजस्थानी भाषा के विकास में उनका अतुल्य योगदान को बहलाया नहीं जा सकता। युगपुरुष के चले जेन से राजस्थानी साहित्य को बड़ी क्षति पहुंची। विजयदान देथा (जन्म: १ सितम्बर १९२६) जिन्हें बिज्जी के नाम से भी जाना है राजस्थान के विख्यात लेखक और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और साहित्य चुड़ामणी पुरस्कार जैसे विभिन्न अन्य पुरस्कारों से भी समानित किया जा चुका है।
पूर्व जीवन
विजयदान देथा चारण जाति से हैं। उनके पिता सबलदान देथा और दादा जुगतिदान देथा भी राजस्थान के जाने-माने कवियों में से हैं। देथा ने अपने पिता और दो भाइयों को एक पुश्तैनी दुश्मनी में मात्र चार वर्ष की आयु में खो दिया।
अपनी मातृ भाषा राजस्थानी के के समादर के लिए 'बिज्जी' ने कभी अन्य किसी भाषा में नहीं लिखा, उनका अधिकतर कार्य उनके एक पुत्र कैलाश कबीर द्वारा हिन्दी में अनुवादित किया।
उषा, १९४६, कविताएँ
बापु के तीन हत्यारे, १९४८, आलोचना
ज्वाला साप्ताहिक में स्तम्भ, १९४९–१९५२
साहित्य और समाज, १९६०, निबन्ध
अनोखा पेड़, सचित्र बच्चों की कहानियाँ, १९६८
फूलवारी, कैलाश कबीर द्वारा हिन्दी अनुवादित, १९९२
चौधरायन की चतुराई, लघु कथाएँ, १९९६
अन्तराल, १९९७, लघु कथाएँ
सपन प्रिया, १९९७, लघु कथाएँ
मेरो दर्द ना जाणे कोय, १९९७, निबन्ध
अतिरिक्ता, १९९७, आलोचना
महामिलन, उपन्यास, १९९८
प्रिया मृणाल, लघु कथाएँ, १९९८
राजस्थानी
बाताँ री फुलवारी, भाग १-१४, १९६०-१९७५, लोक लोरियाँ
प्रेरणा कोमल कोठारी द्वारा सह-सम्पादित, १९५३
सोरठा, १९५६–१९५८
परम्परा, इसमें तीन विशेष चीजें सम्पादित हैं - लोक संगीत, गोरा हातजा, जेथवा रा * राजस्थानी लोक गीत, राजस्थान के लोक गीत, छः भाग, १९५८
टिडो राव, राजस्थानी की प्रथम जेब में रखने लायक पुस्तक, १९६५
उलझन,१९८४, उपन्यास
अलेखुन हिटलर, १९८४, लघु कथाएँ
रूँख, १९८७
कबू रानी, १९८९, बच्चों की कहानियाँ
देथा भी निम्नलिखित कार्यों के सम्पादन के लिए भी आकलित किया जाता है
साहित्य अकादमी के लिए गणेशी लाल व्यास का कार्य पूर्ण किया।
राजस्थानी-हिन्दी कहावत कोष।
पुरस्कार और सम्मान
राजस्थानी के लिए १९७४ का साहित्य अकादमी पुरस्कार
१९९२ में भारतीय भाषा परिषद पुरस्कार
१९९५ का मरुधारा पुरस्का र
२००२ का बिहारी पुरस्कार
२००६ का साहित्य चूड़ामणि पुरस्का र
२००७ में पद्मश्री
मेहरानगढ़ संग्राहलय ट्रस्ट द्वारा २०११ में राव सिंह पुरस्कार
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