नई दिल्ली। नेक्स्ट जनरेशन कॉन्डम कैसा होगा? क्या यह काफी पतला और इंसान की स्किन की तरह होगा और बूचड़खाने से आएगा? ऎसे तमाम सवालों पर विराम लगाने के लिए बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने नेक्स्ट जेनरेशन कॉन्डम से जुड़ी रिसर्च की स्पॉन्सरशिप के लिए 11 इनोवेटर्स को शार्टलिस्ट किया है। इनमें से एक भारतीय भी है।
शॉर्ट लिस्टेड यूनिट्स में शामिल तिरूअनंतपुरम की एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड के लक्ष्मीनारायण रघुपति को उनके उस रिसर्च के लिए चुना गया है जिसमें उन्होंने स्टील से 200 गुना मजबूत पदार्थ से कॉन्डोम बनाने को दिशा दी है।
उल्लेखनीय है कि एडवांस नए जमाने के कॉन्डोम के लिए फाउंडेशन ने मार्च में इसके लिए एप्लिकेशन मंगाई थी, जिसके तहत 1,00,000 डॉलर का ग्रांट दिए जाने की बात है। रघुपति और उनकी टीम लिस्ट में अमेरिकी के 6, ब्रिटेन के 2 और साउथ अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के एक-एक रिसर्चरों से आगे है।
ग्रैफीन से बनाएंगे कॉन्डम
रघुपति ग्रैफीन से कॉन्डम बनाने की बात करते हैं। यह कई तरह की परस्पर विरोधी चीजों का बेहतरीन मिश्रण है। यह पेपर शीट से लाखों गुना पतला, स्टील से 200 गुना मजबूत और रबर से ज्यादा लचीला है। 36 साल के रघुपति कहते हैं, "यह अब तक सबसे मजबूत स्ट्रेचेबल मटीरियल है, लिहाजा कॉन्डम के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता।" ग्रैफीन से कॉन्डम बनाने का आइडिया यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर में रिसर्च करते वक्त आया था।
शॉर्ट लिस्टेड यूनिट्स में शामिल तिरूअनंतपुरम की एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड के लक्ष्मीनारायण रघुपति को उनके उस रिसर्च के लिए चुना गया है जिसमें उन्होंने स्टील से 200 गुना मजबूत पदार्थ से कॉन्डोम बनाने को दिशा दी है।
उल्लेखनीय है कि एडवांस नए जमाने के कॉन्डोम के लिए फाउंडेशन ने मार्च में इसके लिए एप्लिकेशन मंगाई थी, जिसके तहत 1,00,000 डॉलर का ग्रांट दिए जाने की बात है। रघुपति और उनकी टीम लिस्ट में अमेरिकी के 6, ब्रिटेन के 2 और साउथ अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के एक-एक रिसर्चरों से आगे है।
ग्रैफीन से बनाएंगे कॉन्डम
रघुपति ग्रैफीन से कॉन्डम बनाने की बात करते हैं। यह कई तरह की परस्पर विरोधी चीजों का बेहतरीन मिश्रण है। यह पेपर शीट से लाखों गुना पतला, स्टील से 200 गुना मजबूत और रबर से ज्यादा लचीला है। 36 साल के रघुपति कहते हैं, "यह अब तक सबसे मजबूत स्ट्रेचेबल मटीरियल है, लिहाजा कॉन्डम के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता।" ग्रैफीन से कॉन्डम बनाने का आइडिया यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर में रिसर्च करते वक्त आया था।
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