बाड़मेर। सीमावर्ती बाड़मेर जिले का एक गांव। इस गांव में हर गली में राष्ट्रीय खिलाड़ी घूमती है। मजाल है जो इनकी तरफ कोई आंख उठाकर भी देख ले। ये माहिर है जापानी खेल जूडो में।
दमखम के साथ मैदान में उतर कर छोटे से गांव से राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची इन खिलाडियों को मलाल इस बात का है कि उनमें प्रतिभा होने के बावजूद संसाधन उपलब्ध नहीं करवाए जा रहे है वरना उनके गांव की खिलाड़ी इस खेल के जरिए काफी आगे बढ़ सकती है।
सुथारों का तला गांव में जूडो खेल को दस साल पहले अपनाया गया। गांव में संकोच से पढ़ने आने वाली बालिकाओं को जूडो के लिए तैयार करना चुनौती था, लेकिन प्रशिक्षकों ने इसे स्वीकार किया। पहले हिचक खत्म हुईऔर फिर हौंसला बढ़ा।
गांव की मजबूत बालिकाओं ने इस खेल में महारत हासिल कर ली और विद्यालय से वृत्त, वृत्त से जिला, जिले से राज्य और राज्य से राष्ट्र स्तर तक चैंपियन हो गई।यह सिलसिला ऎसा शुरू हुआ कि दस साल से इस विद्यालय को राज्य स्तर तक कोईरोक ही नहीं पा रहा है।ताज्जुब होगा कि हर साल दो तीन खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच रहे है। राज्य स्तर पर स्वर्णपदक हासिल करना तो आदत बन गया है।
घर घर खिलाड़ी
वर्ष 2000 में ्रप्रारंभ सुथारों का तला में यह खेल प्रारंभ हुआ।प्रशिक्षक खेमाराम बताते है कि ढाई सौ खिलाड़ी राज्य स्तर तक खेल चुके है। तीस से ज्यादा खिलाडियों को इस खेल के सर्टिफिकेट के आधार पर सरकारी नौकरी मिल गई है।राष्ट्रीय स्तर पर पचास के करीब खिलाड़ी पहंुचे है।
संसाधन की दरकार
इन खिलाडियों को खेलने के लिए मेट की जरूरत है।जिसकी कीमत दो लाख रूपए है। खिलाड़ी अपने खेेल में और सुधार ला सकते है, लेकिन मेट न विभाग उपलब्ध करवा रहा है न कोईऔर।
प्रोत्साहन मिले
जूडो को प्रोत्साहन मिलने के लिए मेट और अन्य संसाधन दिए जाए तो हमारा गांव की प्रतिभाएं काफी आगे बढ़ सकती है।- सोनी, खिलाड़ी, राष्ट्र स्तर पर दूसरा स्थान
गांव बन सकता है उदाहरण
जूडो से इस तरह लगाव करने वाले इस गांव में संसाधन, प्रशिक्षक ही नहीं जूडो के लिए अलग से पूरा इंतजाम होना चाहिए।यह गांव उदाहरण बन सकता है।-रेखाराम सचिव,जिला जूडो संघ
सुविधा की दरकार
खिलाडियों की कमी नहीं है, सुविधाओं की दरकार है।इसके लिए मदद होनी चाहिए।- जेताराम, प्रधानाध्यापक सुथारों का तला
दमखम के साथ मैदान में उतर कर छोटे से गांव से राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची इन खिलाडियों को मलाल इस बात का है कि उनमें प्रतिभा होने के बावजूद संसाधन उपलब्ध नहीं करवाए जा रहे है वरना उनके गांव की खिलाड़ी इस खेल के जरिए काफी आगे बढ़ सकती है।
सुथारों का तला गांव में जूडो खेल को दस साल पहले अपनाया गया। गांव में संकोच से पढ़ने आने वाली बालिकाओं को जूडो के लिए तैयार करना चुनौती था, लेकिन प्रशिक्षकों ने इसे स्वीकार किया। पहले हिचक खत्म हुईऔर फिर हौंसला बढ़ा।
गांव की मजबूत बालिकाओं ने इस खेल में महारत हासिल कर ली और विद्यालय से वृत्त, वृत्त से जिला, जिले से राज्य और राज्य से राष्ट्र स्तर तक चैंपियन हो गई।यह सिलसिला ऎसा शुरू हुआ कि दस साल से इस विद्यालय को राज्य स्तर तक कोईरोक ही नहीं पा रहा है।ताज्जुब होगा कि हर साल दो तीन खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच रहे है। राज्य स्तर पर स्वर्णपदक हासिल करना तो आदत बन गया है।
घर घर खिलाड़ी
वर्ष 2000 में ्रप्रारंभ सुथारों का तला में यह खेल प्रारंभ हुआ।प्रशिक्षक खेमाराम बताते है कि ढाई सौ खिलाड़ी राज्य स्तर तक खेल चुके है। तीस से ज्यादा खिलाडियों को इस खेल के सर्टिफिकेट के आधार पर सरकारी नौकरी मिल गई है।राष्ट्रीय स्तर पर पचास के करीब खिलाड़ी पहंुचे है।
संसाधन की दरकार
इन खिलाडियों को खेलने के लिए मेट की जरूरत है।जिसकी कीमत दो लाख रूपए है। खिलाड़ी अपने खेेल में और सुधार ला सकते है, लेकिन मेट न विभाग उपलब्ध करवा रहा है न कोईऔर।
प्रोत्साहन मिले
जूडो को प्रोत्साहन मिलने के लिए मेट और अन्य संसाधन दिए जाए तो हमारा गांव की प्रतिभाएं काफी आगे बढ़ सकती है।- सोनी, खिलाड़ी, राष्ट्र स्तर पर दूसरा स्थान
गांव बन सकता है उदाहरण
जूडो से इस तरह लगाव करने वाले इस गांव में संसाधन, प्रशिक्षक ही नहीं जूडो के लिए अलग से पूरा इंतजाम होना चाहिए।यह गांव उदाहरण बन सकता है।-रेखाराम सचिव,जिला जूडो संघ
सुविधा की दरकार
खिलाडियों की कमी नहीं है, सुविधाओं की दरकार है।इसके लिए मदद होनी चाहिए।- जेताराम, प्रधानाध्यापक सुथारों का तला
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