बुधवार, 25 सितंबर 2013

राजनितिक शख्शियत दो बार बाड़मेर के सांसद रहे अमृत नाहटा



राजनितिक शख्शियत दो बार बाड़मेर के सांसद रहे अमृत नाहटा 

बाड़मेर में अंगूर की बेलें लगाने का सपना दिखा बाड़मेर की जनता को दो बार छला अमृत नाहटा ने 





बाड़मेर सरहदी बाड़मेर जिले में शिक्षा और जागरूकता के चलते अक्सर जिले के बाहरी लोग आकर सांसद का चुनाव लड़ते। बाड़मेर के भोले भले लोगो को बातो में फंसना और झांसे देना। यह काम कर चुनाव तक जीत जाते ,ऐसी ही शख्शियत थी अमृत नाहटा। राजस्थान के पाली जिले के निवासी। अमृत नाहटा का जन्म 16 मई 1928 को हुआ था ,मूलतः साहित्य परवर्ती से जुड़े थे ,उन्होंने उन्होंने बाड़मेर जैसलमेर लोक सभा से 1967 और 1971 में कांग्रेस से , प्रथम बार उन्होंने तन सिंह को 29933 मतों से हत्र कर संसद तक पहुंचे ,उन्होंने जो झूठे और बनावटी वायदे बाड़मेर की जनता से किये वो आज भी जुमले बोले जाते हें। अमृत नाहटा ने भोले भले लोगो को बाड़मेर में अंगूर की बेले लगा कर सर सब्ज बनाने का वादा किया। भोली भली जनता समझ नहीं पाई उन्हें जीता दिया। 1971 के मध्यावधि चुनावो में राजस्थान के शेर भेरो सिंह शेखावत के सामने बाड़मेर से दुबारा चुनाव लड़े , उन्होंने भेरो सिंह शेखावत जैसे दिग्गज को 50573 वोटो से हरा दिया। दूसरी बार चुनाव जीत कर वो वापस लौट के बाड़मेर नहीं आये ,यह बाड़मेर के लिए काले अध्याय के सामान था। जनता की भावनाओ के साथ नेता कैसा खिलवाड़ करते हें यह अमृत नाहटा ने बताया। नाहटा ने अगला चुनाव अपने गृह नगर पाली से लड़ा। 

अमृत नाहटा (16 मई 1928 – 26 अप्रैल 2001) एक भारतीय राजनीतिज्ञ, जो तीन बार लोक सभा के लिए चुने गये, तथा फ़िल्म निर्माता थे। वो दो बार बाड़मेर से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। यद्दपि उन्होंनेआपातकाल के पश्चात कांग्रेस को छोड़ दिया और 1977 में विवादास्पद फ़िल्म किस्सा कुर्सी का बनाने चले गये। उन्होंने एक बार दुबारा जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में पाली निर्वाचन क्षेत्र से पर्चा भरा और लोकसभा में अपनी सेवायें दी।


पूर्व जीवन और शिक्षा 

नाहटा का जन्म जोधपुर, राजस्थान में 16 मई 1928 को हुआ। उन्होंने जसवंत कॉलेज, जोधपुर से कला संकाय में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। 
वृत्ति[संपादित करें]

साहित्यिक वृत्ति 

नाहटा ने अपने करियर शिक्षक और अनुवादक के रूप में आरम्भ किया; अपने पूर्ण करियर के दौरान उन्होंने मैक्सिम गोर्की, जोसेफ़ स्टालिन, व्लादिमीर लेनिन, माओ त्से-तुंग और लीउ शओची के कार्यों सहित अंग्रेजी से हिन्दी में बारह पुस्तकों को अनुवादित कर प्रकाशित किया। 

राजनीतिक वृत्ति[

बाद के दिनों में नाहटा राजनीति कि मैदान में उतरे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का हाथ थामा, वो चौथी लोक सभा (1967-70) और पाँचवीं लोक सभा (1971-77) के लिए बाड़मेर निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बने। आपातकाल के पश्चात उन्होंने राजनीति का मैदान छोड़ा और 1977 में एक विवादास्पद फ़िल्म किस्सा कुर्सी का बनायी तथा जनता पार्टी में शामिल हो गये। अगले आम चुनाव में वो पाली निर्वाचन क्षेत्र से छठी लोक सभा में पहुँचे। 


फ़िल्में के निर्माता के रूप में बहुचर्चित 

उन्होंने फ़िल्मों में भी अपना भाग्य आजमाया, उन्होंने तीन फ़िल्मों में निर्माता और निर्देशक का कार्य किया: जिनमें प्रथम संत ज्ञानेश्वर जो एक धार्मीक जीवनी- चलचित्र था 1965 में प्रदर्शित किया। 1967 में उन्होंने अपनी दूसरी रहस्यमय फ़िल्म रातों का राजा का निर्माण किया। 1977 में उन्होंने राजनीति पर आधारित फ़िल्म किस्सा कुर्सी का का निर्माण सम्पन्न किया। यह फ़िल्म तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी पर व्यंग्य थी जिसे आपातकाल की अवधि के दौरान प्रतिबंधित कर दिया, प्रमाणन बोर्ड के कार्यालय से सभी मुद्रित प्रतियाँ ले ली गयी जिसके बाद उन्होंनेगुड़गांव में मारुति कारखाना खोला जहाँ जलने की घटना घटित हुई, इसके अनुवर्ती जाँच के लिए शाह आयोग स्थापित किया गया। नहाटा ने अन्य किसी फ़िल्म का निर्माण नहीं किया। 

26 अप्रैल 2001 को दिल्ली में एस्कॉर्ट्स अस्पताल में एक ऑपरेशन के दौरान, 74 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हो गया। वो अपने परिवार में अपनी पत्नी सहित, दो बेटे और एक पुत्री को छोडकर चले गये। 

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