जानिए ब्रिटिश शासनकाल से ही क्यूं प्रसिद्ध रहा है पचपदरा
बाड़मेर,
राजस्थान में सरहदी जिले बाड़मेर का पचपदरा क्षेत्र रिफाइनरी की आधारशिला रखने से ही सुर्खियों में नहीं आया है, बल्कि नमक की गुणवत्ता के कारण ब्रिटिश शासनकाल में भी यह प्रसिद्ध रहा और अंग्रेजों का बनाया सॉल्ट हाऊस यहां आज भी मौजूद है।
अपनी गुणवत्ता के कारण वर्तमान में भी पचपदरा का नमक एशिया एवं यूरोप के कई देशों को निर्यात किया जाता है। ब्रिटिश काल में तो यहां से पूरा नमक निर्यात किया जाता था तथा सॉल्ट हाऊस से नमक क्षेत्र पर पूरा नियंत्रण रखा जाता था। इस हाऊस में अंग्रेज अधिकारियों के ठहरने के लिए सभी सुविधायुक्त बंगले बनाए हुए है तथा एक बड़ा सभागार भी है। वर्तमान में नमक घर राजस्थान पर्यटन विभाग के अधीन है तथा विभाग के चौकीदार ही इसकी देखरेख करते हैं।
इस नमक उत्पादन क्षेत्र में राज्य की करीब 41 हजार बीघा बंजर भूमि है, जिसमें से करीब दो हजार बीघा में ही नमक का उत्पादन होता है। इसके अलावा 12 हजार बीघा भूमि हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कोरपोरेशन को रिफाइनरी एवं अन्य सुविधाएं विकसित करने के लिए दी गई है। रिफाइनरी को दी गई जमीन में नमक उत्पादन के दस ब्लॉक आते है, जिनमें अब नमक उत्पादन नहीं हो पाएगा।
पचपदरा क्षेत्र में नमक बनाने के 180 भूखंड थे, जिसमें से 70 में पहले से ही नमक उत्पादन बंद है तथा दस भूखंड रिफाइनरी क्षेत्र में आने से भविष्य में नमक का उत्पादन नहीं हो पाएगा, लेकिन 10 भूखंडो में उच्च गुणवत्ता वाला नमक उत्पादन होता रहेगा।
यहां नमक उत्पादन पूर्ण रुप से वर्षा पर निर्भर है और अच्छी बरसात होने पर खडीनों, तलाईयों में जल एकत्रित हो जाता है और इसी जल से नमक बनता है। यहां नमक बनाने में भी अजीब विधि काम में ली जाती है। संग्रहित जल में मोयली झाडी कांटेदार डालते है और इससे रसायन क्रिया से करीब दो माह में नमक तैयार हो जाता है। इस नमक में आयोडीन की भरपूर मात्रा होने के कारण उच्च गुणवत्ता वाला माना जाता है।
नमक उत्पादन कारोबार में एक ही जाति खारवाल एवं खारोल के लोग लगे हुए हैं। किवंदती है कि इस जाति के लोगों को सामरा माता ने नमक बनाने में सिद्धहस्त होने का वरदान दिया था। इस क्षेत्र में लगभग 500 साल पुराना सामरा माता का मंदिर बना हुआ है, जिसकी पूजा अर्चना खारवाल करते आए है।
बताया जाता है कि देवी से इन लोगों ने बहुमूल्य वस्तु एवं धातु की मांग इसलिए नहीं की कि कीमती वस्तु को तो राजा छीन लेगा और इन लोगों ने नमक की मांग की, जिससे अपनी आजीविका चला सके। इसी जाति के लोगों का आज तक इस नमक उत्पादन क्षेत्र पर एकाधिकार है। करीब दस साल पहले इसी जाति के लोगों को राज्य सरकार ने खानों के पट्टे भी जारी कर दिए थे।
अपनी गुणवत्ता के कारण वर्तमान में भी पचपदरा का नमक एशिया एवं यूरोप के कई देशों को निर्यात किया जाता है। ब्रिटिश काल में तो यहां से पूरा नमक निर्यात किया जाता था तथा सॉल्ट हाऊस से नमक क्षेत्र पर पूरा नियंत्रण रखा जाता था। इस हाऊस में अंग्रेज अधिकारियों के ठहरने के लिए सभी सुविधायुक्त बंगले बनाए हुए है तथा एक बड़ा सभागार भी है। वर्तमान में नमक घर राजस्थान पर्यटन विभाग के अधीन है तथा विभाग के चौकीदार ही इसकी देखरेख करते हैं।
इस नमक उत्पादन क्षेत्र में राज्य की करीब 41 हजार बीघा बंजर भूमि है, जिसमें से करीब दो हजार बीघा में ही नमक का उत्पादन होता है। इसके अलावा 12 हजार बीघा भूमि हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कोरपोरेशन को रिफाइनरी एवं अन्य सुविधाएं विकसित करने के लिए दी गई है। रिफाइनरी को दी गई जमीन में नमक उत्पादन के दस ब्लॉक आते है, जिनमें अब नमक उत्पादन नहीं हो पाएगा।
पचपदरा क्षेत्र में नमक बनाने के 180 भूखंड थे, जिसमें से 70 में पहले से ही नमक उत्पादन बंद है तथा दस भूखंड रिफाइनरी क्षेत्र में आने से भविष्य में नमक का उत्पादन नहीं हो पाएगा, लेकिन 10 भूखंडो में उच्च गुणवत्ता वाला नमक उत्पादन होता रहेगा।
यहां नमक उत्पादन पूर्ण रुप से वर्षा पर निर्भर है और अच्छी बरसात होने पर खडीनों, तलाईयों में जल एकत्रित हो जाता है और इसी जल से नमक बनता है। यहां नमक बनाने में भी अजीब विधि काम में ली जाती है। संग्रहित जल में मोयली झाडी कांटेदार डालते है और इससे रसायन क्रिया से करीब दो माह में नमक तैयार हो जाता है। इस नमक में आयोडीन की भरपूर मात्रा होने के कारण उच्च गुणवत्ता वाला माना जाता है।
नमक उत्पादन कारोबार में एक ही जाति खारवाल एवं खारोल के लोग लगे हुए हैं। किवंदती है कि इस जाति के लोगों को सामरा माता ने नमक बनाने में सिद्धहस्त होने का वरदान दिया था। इस क्षेत्र में लगभग 500 साल पुराना सामरा माता का मंदिर बना हुआ है, जिसकी पूजा अर्चना खारवाल करते आए है।
बताया जाता है कि देवी से इन लोगों ने बहुमूल्य वस्तु एवं धातु की मांग इसलिए नहीं की कि कीमती वस्तु को तो राजा छीन लेगा और इन लोगों ने नमक की मांग की, जिससे अपनी आजीविका चला सके। इसी जाति के लोगों का आज तक इस नमक उत्पादन क्षेत्र पर एकाधिकार है। करीब दस साल पहले इसी जाति के लोगों को राज्य सरकार ने खानों के पट्टे भी जारी कर दिए थे।
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