अनहोनी घटनाएं: वो घटनाएं जो सुनी तो हैं लेकिन महसूस शायद कुछ ही लोगों ने लिया। अक्सर बात तो होती है, लेकिन सच्चाई से रूबरू होने को कोई तैयार नहीं। ऐसी ही एक कहानी है डायन और चुडैलों की। जिनकी चर्चा अक्सर होती है। डायन और चुडैलों को आपने फिल्मों में देखा होगा, लेकिन यहां हम आपको एक ऐसे सच की जानकारी दे रहे हैं जिसे अभी तक आपने कभी नहीं सुना होगा।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के निकट जांजगीर इलाके में आज भी डायनों का बसेरा है। इनके लिए कहा जाता है कि यहां रात में आने वालों को डायन पहले अपने वश में करती है और बाद में उसके खून को पीकर खुद को अमर रखने का प्रयास करती है।
कहा जाता है कि ये डायन का इलाका है। यहां कदम रखना खतरे से खाली नहीं है। और अगर आ भी गए तो किसी तरह की लापरवाही आपके लिए काफी नुक्सानदायक साबित हो सकती है। अगर यकीन न हो तो यहां के अभिशप्त पेड़ों में कील गाड़ कर देख लीजिए.....यकीनन आपका मौत से सामना हो जाएगा...आपको भले ही यह अंधविश्वास लगे मगर इस गांव का तो यही दस्तूर है...इस गांव को पूरे सूबे में अभिशप्त माना जाता है। यहां एक-दो नहीं बल्कि पूरे इलाके में की डायनों का बसेरा है।
एक खास सख्त हिदायत है कि यह खबर किसी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देती बल्कि समाज में रहने वाले सभी वर्गों को इससे सचेत करने के भाव से प्रकाशित की जा रही है। खबर में तस्वीरों का प्रयोग केवल प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है।
क्या है डायन प्रथा
डायन शब्द का अस्तित्व डाकिनी शब्द से आया है। डाकिनी को मां काली की सेविका माना जाता है। डायन इसी डाकिनी का रूप होती हैं। डायनों में मां काली समेत उनकी सेविका डाकिनी और योगिनियों की पूजा की जाती है। डायन चुड़ैल और योगनियों में वैसे ही फर्क है जैसा फर्क तांत्रिक, अघोरी और तांत्रोक्त तपस्वी में होता है। जांजगीर में प्रचलित है कि यहां कई साल पहले एक महिला के साथ गांव के कुछ लोगों ने बलात्कार किया उसे बंदी बनाकर रखा और बाद में उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। जिसके बाद वही यहां डायन बनकर अपना बदला पूरा करती है।
डायन और खून की प्यास
डायन को मानव रक्त से विशेष लगाव होता है। वो इस खून का प्रयोग तांत्रोक्त क्रिया से लेकर काम क्रिया तक में इसका उपयोग करती है।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के निकट जांजगीर इलाके में आज भी डायनों का बसेरा है। इनके लिए कहा जाता है कि यहां रात में आने वालों को डायन पहले अपने वश में करती है और बाद में उसके खून को पीकर खुद को अमर रखने का प्रयास करती है।
कहा जाता है कि ये डायन का इलाका है। यहां कदम रखना खतरे से खाली नहीं है। और अगर आ भी गए तो किसी तरह की लापरवाही आपके लिए काफी नुक्सानदायक साबित हो सकती है। अगर यकीन न हो तो यहां के अभिशप्त पेड़ों में कील गाड़ कर देख लीजिए.....यकीनन आपका मौत से सामना हो जाएगा...आपको भले ही यह अंधविश्वास लगे मगर इस गांव का तो यही दस्तूर है...इस गांव को पूरे सूबे में अभिशप्त माना जाता है। यहां एक-दो नहीं बल्कि पूरे इलाके में की डायनों का बसेरा है।
एक खास सख्त हिदायत है कि यह खबर किसी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देती बल्कि समाज में रहने वाले सभी वर्गों को इससे सचेत करने के भाव से प्रकाशित की जा रही है। खबर में तस्वीरों का प्रयोग केवल प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है।
डायन शब्द का अस्तित्व डाकिनी शब्द से आया है। डाकिनी को मां काली की सेविका माना जाता है। डायन इसी डाकिनी का रूप होती हैं। डायनों में मां काली समेत उनकी सेविका डाकिनी और योगिनियों की पूजा की जाती है। डायन चुड़ैल और योगनियों में वैसे ही फर्क है जैसा फर्क तांत्रिक, अघोरी और तांत्रोक्त तपस्वी में होता है। जांजगीर में प्रचलित है कि यहां कई साल पहले एक महिला के साथ गांव के कुछ लोगों ने बलात्कार किया उसे बंदी बनाकर रखा और बाद में उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। जिसके बाद वही यहां डायन बनकर अपना बदला पूरा करती है।
डायन और खून की प्यास
डायन को मानव रक्त से विशेष लगाव होता है। वो इस खून का प्रयोग तांत्रोक्त क्रिया से लेकर काम क्रिया तक में इसका उपयोग करती है।
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