रविवार, 25 अगस्त 2013

यहां श्रीकृष्ण ने त्यागे थे प्राण

सोमनाथ तीर्थ क्षेत्र भगवान शिव के साथ ही भगवान श्री कृष्ण के जीवन से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। भागवत पुराण में श्रीकृष्ण के देवलोक गमन की कथा आती है। कृष्ण के पांव में जरा नामक व्याध का तीर लगा था। त्रिवेणी के तट पर श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेव से वार्ता हुई। श्रीकृष्ण ने कहा, ‘भैया अब इस लोक से जाने का वक्त आ गया है।’ इसके बाद श्रीकृष्ण विद्युत बनकर मेघमाला में विलीन हो गए। इस तरह उन्होंने धरती छोड़ बैकुंठ धाम का सफर तय किया। इसके साथ ही बलदेव ने भी अपना असली रूप (शेषनाग का) धारण किया और नदी के मार्ग से पाताल लोक को प्रस्थान कर गए।
सोमनाथ मंदिर से छह किलोमीटर दूर वेरावल मार्ग पर भालुका तीर्थ वही जगह है, जहां वन में विश्राम करते समय कृष्ण को जरा नामक व्याध का तीर लगा था। कहा जाता है त्रेता युग में राम ने बालि को धोखे से तीर मारा था। प्रभु ने कहा था मैं भी तुम्हें मौका दूंगा। द्वापर युग में बालि बहेलिये के रुप में था। यहां श्रीकृष्ण की लेटी हुई विशाल प्रतिमा है। इसके बगल में प्रेम भिक्षु जी महाराज द्वारा स्थापित अखंड रामनाम कीर्तन मंदिर और प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का संग्रहालय भी है।

समुद्र के किनारे वाणगंगा है, जहां समुद्र की जलधारा के बीच दो शिवलिंग स्वयं प्रकट हो गए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि वे 40 सालों से इसी तरह इन शिवलिंगों को देख रहे हैं। त्रिवेणी तट पर तीन नदियों का संगम है। हिरण्या, कपिला और सरस्वती। यहां पर सुंदर घाट बनाए गए हैं। इसका पुनरुद्धार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के प्रयास से हुआ। इसके पास ही है गोलोकधाम तीर्थ, जिसमें गीता मंदिर समेत कई मंदिर हैं। गीता मंदिर में कृष्ण की आदमकद प्रतिमा है। यहां पीपल वृक्ष के पास श्रीकृष्ण की चरण पादुका बनी है। यहां बलदेव की गुफा भी हैं, जहां से उन्होंने पाताल लोक के लिए प्रस्थान किया था।

इसके बगल में हिंगलाज गुफा भी है। कहा जाता है कि पांडव अज्ञातवास के दौरान कुछ समय यहां भी रहे। गीता मंदिर के बगल में शारदापीठ है। ये शंकराचार्य जी का आश्रम है। सोमानाथ तीर्थ न सिर्फ हिंदू धर्म में, बल्कि जैन मतालंबियों के लिए भी पवित्र तीर्थ स्थल है। सोमनाथ शहर में बड़ी संख्या में मुस्लिम परिवार हैं, जिनकी रोजी रोटी बाबा सोमनाथ के सहारे चलती है।

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