सोमवार, 8 जुलाई 2013

foto...जैसलमेर सफारी के मायने समय के साथ बदल गए













विशेष आलेख जैसलमेर पर्यटन सीजन ..भाग 2 

जैसलमेर सफारी के मायने समय के साथ बदल गए 
चन्दन सिंह भाटी

जैसलमेर पश्चिमी राजस्थान के ऐतिहासिक जैसलमेर जिले में जुलाई माह के आरम्भ होते ही पर्यटन व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों ने आगामी सीजन के कारोबार की त्यारिया आरम्भ कर दी हें .देश-विदेश के सैलानियों के दिल में बसा रंग बिरंगा राजस्थान अब जेठ की गर्मी में भी पर्यटकों की पहली पसंद बन रहा है। पश्चिम राजस्थान के ग्रामीण जनजीवन को नजदीक से देखने की चाह में इन दिनों सैलानी राज्य के जैसलमेर-बाड़मेर-जोधपुर आदि स्थानों की यात्रा कर रहे हैं। ढलते सूरज के साथ बहती ठंडी हवा की नमी प्रदेश के रेतीले टीलों को पर्यटकों का पसंदीदा स्थल बना देती है। हल्की रोशनी में मरु टीलों पर लोक संगीत का रोमांच और तंबुओं में रात्रि का स्वादिष्ट भोजन उनकी यात्रा को अविस्मरणीय बनाता है

सफारी के बदले मायने

देशी विदेशी शैलानियों को रेगिस्तानी धोरों के बीच बसे गाँवो में सफारी करने का बड़ा शौक होता हें .बीस साल पहले सफारी व्यवसाय से जुड़ेरियों का मानना हें की बीस साल पहले सफारी तीन से पांच दिन की होती थी .तब सैलानी बड़े ही बिंदास आते थे दिल खोल कर खर्च करते थे .सत्यम टूर एंड ट्रेवल्स के मालिक शैतान सिंह देवड़ा ने बताया की बीस साल पहले विदेशी पर्यटकों के लिए सफारी टूर आयोजित करना किसी रोमांच से कम नहीं होता था .तब तीन से पांच दिन की सफारी आयोजित होती थी ,जैसलमेर से आरम्भ होने वाली सफारी बड़ा बाग़ ,राम कुंडा ,रूपसी ,लोदारवा .काहला ,दामोदरा ,कनोई ,सैंड डुनेस सम ,खाभा ,जसेरी ,कुलधरा ,मूल सागर ,अमर सागर होते हुए जैसलमेर वापस यह रूट तय होता था इसी में धोरों पर कैमल सफारी भी शामिल होती थी ,एक रात के पांच हज़ार रुपये लिए जाते थे जिसमे उनके लिए रात को राजस्थानी भोजन ,राजस्थानी लोक गीत संगीत के साथ टेंटों में ठहराने की व्यवस्था होती थी ,उन्होंने बताया की तब पांच दिन का शेड्यूल तय होता .हमारे आदमी उनके साथ साथ व्यवस्था में जुड़े रहते ,उनके लिए चाय ,नास्ते की व्यवस्था भी समय समय पर की जाती थी . उनके रेगिस्तानी धोरों पर भ्रमण के लिए ऊंठों की व्यवस्था भी की जाती थी .चार रात और पांच दिनों तक सैलानी राजस्थान की लोक कला , संस्कृति ,परंपरा और रेगिस्तानी जीवन से रूबरू होते .राजस्थानी भोजन का आनंद उठाते थे .अब समय के साथ सफारी के मायने बदल गए .शायद यह पहला व्यवसाय से जिसकी बाज़ार दर समय के साथ बढ़ने की बजे घटी हें .अब विदेशी पर्यटक सफारी में ज्यादा दिचास्पी नहीं लेते जिसका कारण गाँवों में अब वो परंपरागत वातावरण नहीं रहा ,गाँव शहरों की होड़ करने लगे हें .विदेशी जो देखना चाहते हें अब गाँवों में देखने को नहीं मिलता .मिटटी के घर ,पनघट पर पनिहारियाँ ,खेतों में चरति भेड़ बकरिया ,मासूम से बच्चे ,मखमली ऊँचे ऊँचे धोरे और गाँव का शांत वातावरण जन्हा शोर गुल से दूर एकांतवास पाकर पर्यटक निहाल हो जाते थे .ऊपर से गाँवों का स्वरुप विंड पावर प्रोजेंट ने ख़त्म कर दिया .पर्यटकों के घूमने फिरने की जगह अब बची हीँ नहीं .पर्यटकों का सफारी से मोहभंग हो रहा हें .सफारी व्यवसाय में बीस साल पहले जहां पांच एजेंसियां थी आज पचास से अधिक हो जाने से प्रतिस्पर्धा बढ़ गई .पर्यटक भी एक दो दिन या कुछ घंटों की सफारी पर जाना ही पसंद करते हें .जिसके लिए महज़ बारह सौ से पन्द्र सौ रुपये चुकाते हें ,इसी में उनके लिए खाने ,पानी ,चाय ,कैमल सफारी और रात ठहराने की व्यवस्था करनी होती हें .

इसी व्यवसाय से जुड़े रजाक खान ने बताया की बीस साल पहले आने वाले टूरिस्ट दिल खोल कर खर्चा करते बेहतर व्यवस्था पर अलग से राशि भी देते थे .सफारी के साथ जाने वाले कर्मचारियों को परिवार सा मानते और उनके साथ जुड़ जाते ,अब एक दिन की सफारी में ऐसा कुछ नहीं होता .टूरिस्ट भागने में रहते हें .सफारी व्यवसाय पर काली छाया मंडरा रही हें .कैमल सफारी चलाने वाले बरियाम खान ने बताया की पहले धोरों पर सफारी के आठ सौ से हज़ार रुपये तक मिल जाते थे अब डेढ़ सौ मुस्किल से मिलते हें .पहले विदेशी बक्शीश में अच्छा पैसा देते थे अब तो बख्शीश मिले लंबा समय हो गया .उसने बताया की जर्मन की एक महिला को सफारी के दौरान बातों बातों में मैंने बताया की किस प्रकार अकाल में उसके ऊंट मर गए .जिसके चलते दूसरों से ऊंट मांग लाते हें सफारी करते हें .जर्मन महिला ने संवेदन शील होते हुए उसे दो ऊंट नए खरने की कीमत बातो बातों में पूछ ली .दो माह बाद मेरे पास तीस हज़ार रुपये मनी आर्डर से आये मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ की इतने सारे पैसे किसने भेज पोस्ट मैन ने बताया की जर्मन से आये हें .बाद में पता चला की उस जर्मन महिला ने सफारी टूर ट्रेवल्स के मालिक से मेरा पता लिया था .उनकी नेकदिली के कारण आज मेरा परिवार चल रहा हें .ऐसे पर्यटक अब कँहा .अब तो कैमल सफारी का मतलब फोटो खिंचवाने तक समित हो गया हें .

बहरहाल जैसलमेर में पर्यटक सीजन जल्द शुरू होने वाली हें .सफारी टूर ट्रेवल्स के काम में जुड़े व्यवसायी तैयारियों में जुटे हें .is आशा के साथ की फिर सुहाने दिन लौटेंगे

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