दुनिया के टॉप टैन में 'घूमर' चौथे नम्बर पर
राजस्थानी मान्यता संघर्ष समिति ने जताई खुशी
राजस्थानी मान्यता संघर्ष समिति ने जताई खुशी
कहा- अब तो राजस्थानी को मान्यता दे सरकार
जयपुर/उदयपुर. राजस्थानी लोकनृत्य 'घूमर' दुनिया के सर्वोत्कृष्ट दस लोकनृत्यों में चौथे स्थान पर शुमार हुआ है और इस उपलब्धि पर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने खुशी जताते हुए प्रदेश व केन्द्र सरकार के प्रति आक्रोश व्यक्त किया है कि एक तरफ तो राजस्थानी भाषा, साहित्य, संगीत और संस्कृति दुनियाभर में देश का गौरव बढ़ा रही है वहीं इसे अपने ही प्रदेश में उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है।
समिति का आरोप है कि राजस्थान में विद्यार्थी को उसकी भाषा और संस्कृति से अवगत करवाने वाला कोई पाठ्यक्रम नहीं है। यहां के बालक को प्राथमिक शिक्षा अपनी मातृभाषा में प्राप्त करने का अधिकार तक नहीं है। राजस्थानी मान्यता के लिए 25 अगस्त 2003 को जो संकल्प विधानसभा में सर्वसम्मति से लिया गया उसे 10 वर्ष होने को है, मगर केन्द्र सरकार इस मसले को लेकर मौन है। वहीं इस हेतु राज्य सरकार भी केन्द्र पर किसी प्रकार का दबाव नहीं बना रही है। समिति का आरोप है कि भाषा और संस्कृति के सवाल पर विपक्ष भी सत्ता के चरित्र का अनुगमन कर रहा है।
समिति ने रविवार को जारी एक बयान में लिखा है कि एक इंटरनेशनल ऑनलाइन ट्रैवल पोर्टल ने दुनिया के सभी नृत्यों को विभिन्न मानदण्डों पर परखते हुए 'घूमर' को चौथा स्थान दिया है। इस कड़ी में यह भारत का एकमात्र नृत्य है। समिति के अंतरराष्ट्रीय संगठक व संस्थापक लक्ष्मणदान कविया ने कहा है कि इस घोषणा से राजस्थानी संगीत एवं नृत्य का ही नहीं अपितुदेश का गौरव बढ़ा है। समिति के प्रदेशाध्यक्ष के.सी. मालू ने कहा है कि इससे न केवल 'घूमर' की अपितु राजस्थानी संगीत व नृत्य की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता साबित हुई है। समिति के प्रदेश महामंत्री डॉ. राजेन्द्र बारहठ ने खुशी जताई कि प्रदेश के कालबेलिया नृत्य को संयुक्त राष्ट्र संघ ने जब विश्व विरासत घोषित किया तो राजस्थानी संस्कृति का गौरव बढ़ा था और 'घूमर' ने राजस्थानी संस्कृति की ख्याति को शिखर पर पहुंचा दिया है। प्रदेश मंत्री डॉ. सत्यनारायण सोनी, अंतरराष्ट्रीय संयोजक प्रेम भंडारी व राष्ट्रीय सलाहकार ओम पुरोहित 'कागद' सहित समिति से जुड़े संगठनों राजस्थानी मोट्यार परिषद, राजस्थानी चिंतन परिषद, राजस्थानी फिल्म परिषद, राजस्थानी महिला परिषद व मायड़भाषा राजस्थानी छात्र मोर्चा ने इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए राजस्थानी भाषा को शीघ्र मान्यता दिए जाने की मांग की है।
जयपुर/उदयपुर. राजस्थानी लोकनृत्य 'घूमर' दुनिया के सर्वोत्कृष्ट दस लोकनृत्यों में चौथे स्थान पर शुमार हुआ है और इस उपलब्धि पर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने खुशी जताते हुए प्रदेश व केन्द्र सरकार के प्रति आक्रोश व्यक्त किया है कि एक तरफ तो राजस्थानी भाषा, साहित्य, संगीत और संस्कृति दुनियाभर में देश का गौरव बढ़ा रही है वहीं इसे अपने ही प्रदेश में उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है।
समिति का आरोप है कि राजस्थान में विद्यार्थी को उसकी भाषा और संस्कृति से अवगत करवाने वाला कोई पाठ्यक्रम नहीं है। यहां के बालक को प्राथमिक शिक्षा अपनी मातृभाषा में प्राप्त करने का अधिकार तक नहीं है। राजस्थानी मान्यता के लिए 25 अगस्त 2003 को जो संकल्प विधानसभा में सर्वसम्मति से लिया गया उसे 10 वर्ष होने को है, मगर केन्द्र सरकार इस मसले को लेकर मौन है। वहीं इस हेतु राज्य सरकार भी केन्द्र पर किसी प्रकार का दबाव नहीं बना रही है। समिति का आरोप है कि भाषा और संस्कृति के सवाल पर विपक्ष भी सत्ता के चरित्र का अनुगमन कर रहा है।
समिति ने रविवार को जारी एक बयान में लिखा है कि एक इंटरनेशनल ऑनलाइन ट्रैवल पोर्टल ने दुनिया के सभी नृत्यों को विभिन्न मानदण्डों पर परखते हुए 'घूमर' को चौथा स्थान दिया है। इस कड़ी में यह भारत का एकमात्र नृत्य है। समिति के अंतरराष्ट्रीय संगठक व संस्थापक लक्ष्मणदान कविया ने कहा है कि इस घोषणा से राजस्थानी संगीत एवं नृत्य का ही नहीं अपितुदेश का गौरव बढ़ा है। समिति के प्रदेशाध्यक्ष के.सी. मालू ने कहा है कि इससे न केवल 'घूमर' की अपितु राजस्थानी संगीत व नृत्य की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता साबित हुई है। समिति के प्रदेश महामंत्री डॉ. राजेन्द्र बारहठ ने खुशी जताई कि प्रदेश के कालबेलिया नृत्य को संयुक्त राष्ट्र संघ ने जब विश्व विरासत घोषित किया तो राजस्थानी संस्कृति का गौरव बढ़ा था और 'घूमर' ने राजस्थानी संस्कृति की ख्याति को शिखर पर पहुंचा दिया है। प्रदेश मंत्री डॉ. सत्यनारायण सोनी, अंतरराष्ट्रीय संयोजक प्रेम भंडारी व राष्ट्रीय सलाहकार ओम पुरोहित 'कागद' सहित समिति से जुड़े संगठनों राजस्थानी मोट्यार परिषद, राजस्थानी चिंतन परिषद, राजस्थानी फिल्म परिषद, राजस्थानी महिला परिषद व मायड़भाषा राजस्थानी छात्र मोर्चा ने इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए राजस्थानी भाषा को शीघ्र मान्यता दिए जाने की मांग की है।
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