राजस्थान,यूपी में सर्वाधिक पुलिस अत्याचार
नई दिल्ली। भारत में पुलिस अत्याचार को लेकर संयुक्त राष्ट्र की ओर से पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वष्ाü 2011 में पुलिस फायरिंग में हुई 109 मौत में से सबसे ज्यादा मौतें राजस्थान और उत्तर प्रदेश में हुई थीं। यह रिपोर्ट न्यायेतर,एकपक्षीय एवं निष्पादन को लेकर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक क्रिस्टोफ हेंस ने तैयार की है। भारत सरकार के निमंत्रण पर आए हेंस ने 19 मार्च से लेकर 30 मार्च तक विभिन्न भारतीय शहरों का दौरा किया।
राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड की रिपोर्ट का हवाला देते हुए हेंस ने कहा कि सबसे ज्यादा मौतें तब हुई जब पुलिस ने दंगा नियंत्रण,चरमपंथी गतिविधियां और आतंकवाद के विरूद्ध कार्रवाई की। इस रिपोर्ट को जेनेवा में जून 2013 में होने वाली संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार काउंसिल की बैठक में पेश किया जाएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थिति जम्मू और कश्मीर में भी बेहतर नहीं है। प्रदर्शनों को रोकने के लिए सुरक्षा बलों के असंगत इस्तेमाल से देश के विभिन्न कोनों में कई लोगों की मौतें हो गईं। वर्ष 2010 में जम्मू-कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों पर काबू पाने के लिए प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई में करीब 100 लोग मारे गए।
हेंस ने भारत सरकार से ऎसी हत्याओं का सच जानने के लिए आयोग का गठन करने के लिए सुझाव दिया ताकि लोगों में विश्वास पैदा किया जा सके। उन्होंने कहा कि आयोग को पूर्व में पुलिस की ओर से की गई कार्रवायों की जांच करे ताकि सच सामने आ सके।
उत्तर-पूर्व राज्यों और जम्मू-कश्मीर में विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा आर्मड फोर्सेस (स्पेशल पावर्स) एक्ट को हटाने के लिए उठाई जा रही मांग पर हेंस ने भारत सरकार से इसे पूरी तरह हटाने या फिर इसमें संशोधन करने की मांग की है ताकि इस एक्ट की आड़ में सुरक्षा बल कोई गलत कदम नहीं उठाए।
हेंस ने भारत में न्यायेतर हत्याओं को गंभीर मसला बताया है। इन हत्याओं में कमजोर लोग,खासकर महिलाओं पर सबसे ज्यादा खतरा रहता है। फर्जी मुठभेड़ों पर हेंस ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरएम) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 1993 से लेकर 2008 में 2 हजार 560 लोग मुठभेड़ में मारे गए थे। इनमे से एनएचआरएम ने 1 हजार 224 मामलों को फर्जी करार दिया था।
नई दिल्ली। भारत में पुलिस अत्याचार को लेकर संयुक्त राष्ट्र की ओर से पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वष्ाü 2011 में पुलिस फायरिंग में हुई 109 मौत में से सबसे ज्यादा मौतें राजस्थान और उत्तर प्रदेश में हुई थीं। यह रिपोर्ट न्यायेतर,एकपक्षीय एवं निष्पादन को लेकर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक क्रिस्टोफ हेंस ने तैयार की है। भारत सरकार के निमंत्रण पर आए हेंस ने 19 मार्च से लेकर 30 मार्च तक विभिन्न भारतीय शहरों का दौरा किया।
राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड की रिपोर्ट का हवाला देते हुए हेंस ने कहा कि सबसे ज्यादा मौतें तब हुई जब पुलिस ने दंगा नियंत्रण,चरमपंथी गतिविधियां और आतंकवाद के विरूद्ध कार्रवाई की। इस रिपोर्ट को जेनेवा में जून 2013 में होने वाली संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार काउंसिल की बैठक में पेश किया जाएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थिति जम्मू और कश्मीर में भी बेहतर नहीं है। प्रदर्शनों को रोकने के लिए सुरक्षा बलों के असंगत इस्तेमाल से देश के विभिन्न कोनों में कई लोगों की मौतें हो गईं। वर्ष 2010 में जम्मू-कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों पर काबू पाने के लिए प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई में करीब 100 लोग मारे गए।
हेंस ने भारत सरकार से ऎसी हत्याओं का सच जानने के लिए आयोग का गठन करने के लिए सुझाव दिया ताकि लोगों में विश्वास पैदा किया जा सके। उन्होंने कहा कि आयोग को पूर्व में पुलिस की ओर से की गई कार्रवायों की जांच करे ताकि सच सामने आ सके।
उत्तर-पूर्व राज्यों और जम्मू-कश्मीर में विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा आर्मड फोर्सेस (स्पेशल पावर्स) एक्ट को हटाने के लिए उठाई जा रही मांग पर हेंस ने भारत सरकार से इसे पूरी तरह हटाने या फिर इसमें संशोधन करने की मांग की है ताकि इस एक्ट की आड़ में सुरक्षा बल कोई गलत कदम नहीं उठाए।
हेंस ने भारत में न्यायेतर हत्याओं को गंभीर मसला बताया है। इन हत्याओं में कमजोर लोग,खासकर महिलाओं पर सबसे ज्यादा खतरा रहता है। फर्जी मुठभेड़ों पर हेंस ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरएम) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 1993 से लेकर 2008 में 2 हजार 560 लोग मुठभेड़ में मारे गए थे। इनमे से एनएचआरएम ने 1 हजार 224 मामलों को फर्जी करार दिया था।
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