स्मृति शेष
रचनात्मक कर्मयोगी श्री शंभूदान रतनू
मरुभूमि आहत है उनके असमय चले जाने पर
- डॉ. दीपक आचार्य
जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी,
जैसलमेर
जैसलमेर के लिए मंगलवार की रात अमंगल की खबर ले कर आयी। खबरों के सर्जक और खबरों के जरिये लोक जागरण के प्रणेता रहे पूर्व जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी, स्वतंत्र पत्रकार श्री शंभूदान रतनू के महाप्रयाण की खबर सभी को विचलित कर गई।
छब्बीस वर्ष तक की जैसलमेर की सेवा
श्री शंभूदान रतनू राजस्थान सूचना एवं जनसंपर्क सेवा के ऎसे अधिकारी रहे हैं जिन्होंने अकेले जैसलमेर में जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी के रूप में 26 साल तक अपनी सेवाएं दीं और मरुभूमि की बहुआयामी सेवा का कीर्तिमान कायम किया। श्री शंभूदान रतनू का जन्म 6 जुलाई 1948 को जोधपुर जिला अन्तर्गत उनके पैतृक गांव चौपासनी चारणान में पिता हिंगलाजदान रतनू के घर हुआ।
कई जिलों में रहे जनसंपर्क अधिकारी
साधारण परिवार के श्री रतनू की शिक्षा-दीक्षा जोधपुर में हुई। हिन्दी तथा इतिहास विषय में एम.ए. की उपाधि हासिल करने के बाद सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में सहायक जन संपर्क अधिकारी के रूप में नियुक्त पायी तथा इस पद पर उन्होंने जोधपुर, अजमेर, जैसलमेर में कार्य किया। इसके बाद उन्होंने नागौर,चित्तौड़गढ़, झालावाड़ में जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं दीं तथा 21 अक्टूबर1977 से लेकर 31 जुलाई 2008 तक के अलग-अलग समयावधि के कुल पांच कार्यकालों को मिलाकर कुल 26साल तक जैसलमेर में जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी के रूप में अपनी उल्लेखनीय एवं उत्कृष्ट सेवाओें का इतिहास कायम किया।
जैसलमेर के इतिहास में कर्मठ एवं बहुआयामी प्रतिभाशाली अधिकारी के रूप में अविस्मरणीय सेवाओं के पूर्ण होने पर वे जैसलमेर से ही 31 जुलाई 2008 को सेवानिवृत्त हुए।
मरुभूमि की सेवा का अनूठा ज़ज़्बा
मरुभूमि की सेवा का जज्बा और समर्पण का उनका अतिरेक देखने लायक था। जैसलमेरवासियों से मिले अपार प्रेम, स्नेह और आदर का ही परिणाम था कि उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय जैसलमेर की सेवाओं के लिए समर्पित कर दिया। यहाँ तक कि उन्होंने जैसलमेर की सेवाओं को निरन्तर जारी रखने के उद्देश्य से विभागीय पदोन्नतियाँ तक ठुकरा दी।
महानरेगा को दिया राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार
श्रेष्ठ जनसंपर्क अधिकारी के रूप में उनका कार्यकाल जैसलमेर के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। सेवानिवृत्ति के उपरान्त भी उन्होंने अपने कर्मयोग को निरन्तर जारी रखा तथा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के आईईसी प्रभाग में जिला समन्वयक(प्रचार) के पद पर दो वर्ष तक अपनी उल्लेखनीय सेवाएं दीं और महानरेगा की गतिविधियों को राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर उभारा तथा श्रेय दिलवाया।
अतिरिक्त कार्यभार ने दी नई पहचान
श्री शंभूदान रतनू की सेवाएं भारत सरकार के क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय ने भी प्राप्त की तथा उन्हें जैसलमेर में ही क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी के पद पर प्रतिनियुक्ति पर लगाया। इस पद पर उन्होंने डेढ़ वर्ष सेवाएं दीं। कर्मनिष्ठ अधिकारी के रूप में उनकी बेहतर सेवाओं को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा नेहरू युवा केन्द्र में जिला युवा समन्वयक, महिला एवं बाल विकास विभाग में बाल विकास परियोजना अधिकारी(सम ब्लॉक) आदि का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा जिसे उन्होंने बखूबी निभाया और इन विभागों की गतिविधियों को भी नई पहचान दी।
लोक कलाकारों के विकास में भागीदारी
कला और संस्कृति जगत के प्रति उनका समर्पण इतना प्रगाढ़ था कि स्थानीय कलाकारों को संरक्षण प्रदान करने, उन्हें सरकारी और गैर सरकारी प्रचार गतिविधियों से जोड़ने, कलाकारों को प्रोत्साहित करने तथा मंच प्रदान करने आदि के लिए उनकी भूमिकाओं को सदियों तक याद रखा जाएगा।
सन् 1988 में तत्कालीन जिला कलक्टर श्री ललित के. पंवार के कार्यकाल में जैसलमेर के गरीब लोक कलाकारों को अत्यन्त अल्प दरों पर भूखण्ड आवंटन करा कर कलाकार कॉलोनी बसवाने में उनकी सक्रिय भूमिका रही जिसके लिए कलाकार उन्हें आज भी श्रद्धा और आदर के साथ याद करते हैं।
उनकी भूमिका की बदौलत आज जैसलमेर के कलाकारों को आवासीय सुकून मिला तथा प्रादेशिक,राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर पहचान कायम करने के अवसर प्राप्त हुए।
जैसलमेर को दी ख्यात
कर्म के प्रति समर्पण का भाव उनमें इतना प्रगाढ़ था कि उन्होंने विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले तथा देश के सर्वाधिक क्षेत्रफल में फैले जैसलमेर जिले के सभी क्षेत्रों का खूब भ्रमण किया तथा यहां की लोक संस्कृति, कलाओं, स्थानीय परंपराओं आदि की जानकारी पाने और सरहदी जिले की खासियतों को देश भर में प्रचारित करने में अतुलनीय भागीदारी निभायी। इन ढाई दशकों के कार्यकाल में उन्होंने सरकारी गतिविधियों का अपूर्व प्रचार किया और जन-जन तक सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों की जानकारी पहुंचायी।
मानवीय संवेदनाओं की प्रतिमूत्रि्त
सादगी की प्रतिमूत्रि्त, सरल, सहज एवं सौम्य व्यक्तित्व के धनी, निश्छल एवं उदात्त स्वभाव वाले श्री शंभूदान रतनू का मानवीय पक्ष संवेदनाओं का पर्याय तो था ही सामाजिक सरोकारों के प्रति उनकी समर्पित भागीदारी अनुकरणीय रही।
जो उनके पास किसी काम से आता वे अत्यन्त सहजतापूर्वक संपादित कर दिया करते। इतने बड़े जिलाधिकारी के रूप में लोकप्रिय होने के बावजूद निराभिमानी रहे श्री शंभूदान रतनू में लेश मात्र भी अहंकार नहीं था जैसा कि आजकल मामूली पद-प्रतिष्ठा पाने वालों में सर चढ़कर बोलने लगता है।
लोकस्पर्शी व्यक्तित्व
आम जन से लेकर विशिष्टजनों तक में आत्मीय भावों के साथ सर्वस्पर्शी छवि रखने वाले श्री रतनू और पीआरओ पद जैसलमेर जिले के लिए एक दूसरे के पर्याय ही हो चुके थे। जिला प्रशासन से लेकर विभागीय अधिकारियों तक में उनकी छवि बेहतर अधिकारी के रूप में थी और यही वजह है कि उन्हें अपने से ऊपर के अधिकारियों से हमेशा पृष्ठबल और स्नेह प्राप्त होता रहा।
अपने मातहत कर्मचारियों के साथ उनका आत्मीय रिश्ता और हर सुख-दुःख में पूरी भागीदारी निभाना तथा सभी के साथ माधुर्यपूर्ण व्यवहार उनके जीवन की वह विशेषता थी जिसकी वजह से लोग उन्हें सच्चे मन से आदर देते थे।
जनसंपर्क विधा से इतने लम्बे समय तक जुड़े रहे श्री रतनू का मीडियाकर्मियोंं से भी बेहतर संबंध रहा तथा मीडियाकर्मी भी उन्हें पूरा आदर-सम्मान एवं श्रद्धा देते थे। उनका शुचितापूर्ण जीवन इतना पाक-साफ था कि वे सार्वजनिक जीवन में खूब रमे होने के बावजूद किसी भी प्रकार का नशा उन्हें छू तक नहीं पाया।
मस्त मौला स्वभाव के धनी
उनके स्वभाव में धीर-गंभीरता, शांति और अपनी ही मस्ती में रमे रहना शामिल था। खुले विचारों वाले श्री रतनू हमेशा मस्त रहने वाले उन बिरले लोगों में थे जिन्हें शायद ही किसी ने तनाव या गुस्से में देखा हो। जनसंपर्क के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए उन्हें कई बार सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया।
सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के आयोजनों तथा विभिन्न गतिविधियों में आत्मीयता के साथ सहयोग प्रदान किया और अपनी सेवाओं से दिल जीता।
पारिवारिक दायित्वों का बखूबी निर्वाह
अपने पारिवारिक दायित्वों को पूरा करते हुए श्रेष्ठतम अभिभावक के रूप में उन्होंने हर क्षण को सार्थक किया। इसे पूर्वाभास कहें या कुछ और, लेकिन यह सच है कि अपने अंतिम समय से एक माह पूर्व तक भी उनकी इच्छा रही कि वे अपने बच्चों को स्थापित कर दें और इसी वजह से उन्होंने कुछ दिन पहले जोधपुर में अपने मकान में रहने का मानस बनाया और जैसलमेर से पूरे परिवार सहित वहाँ शिफ्ट हो गए। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था । इस कारण वे जोधपुर में बालसमंद नगर स्थित अपने मकान में मात्र तेरह दिन से ज्यादा नहीं रह पाए। बाह्य आडम्बरों से दूर लेकिन ईश्वर के प्रति भीतरी आसक्ति रखने वाले श्री शंभूदान रतनू भगवान श्रीराम के परम भक्त थे। कुल देवी करणी माता के प्रति उनकी अटूट आस्था थी।
भावपूर्ण श्रद्धांजल
जैसलमेर को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले हर दिल अजीज श्री शंभूदान रतनू का हमारे बीच से चले जाना मरु अंचल के लिए वह क्षति है जिसकी पूत्रि्त नहीं की जा सकती। मरुभूमि आज अपने इस रत्न को खोकर अत्यन्त आहत अनुभव कर रही है। मरु रत्न श्री शंभूदान रतनू के महाप्रयाण पर कोटि-कोटि श्रद्धांजलि .....।
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