मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

युवाओं को उद्योग के लिए पैसों के साथ जमीन भी मिलेगी



जयपुर। प्रदेश में 35 साल से कम आयु वाले युवाओं को सरकार अब अपना उद्योग लगाने के लिए धन के साथ-साथ जमीन भी देगी। इसके साथ ही राजस्थान औद्योगिक प्रोत्साहन योजना में रियायतें देकर आगे बढऩे में मदद की जाएगी। चुनावी साल को देखते हुए सरकार ने अब रीको, उद्योग विभाग और आरएफसी के जरिए मध्यम, लघु और अति लघु उद्योगों को क्लस्टर के रूप में विकसित करने का फैसला किया है। सरकार ने हाल ही युवा उद्यमियों के लिए प्रोत्साहन योजना लागू की है। इसमें प्रतिस्पद्र्धा के आधार पर युवाओं के प्रोजेक्टों का चयन किया जाएगा।


चयनित युवा को बहुत ही आसान शर्तों और कम ब्याज पर ऋण दिया जाएगा। रीको की ओर से आरक्षित दर से भी कम राशि में औद्योगिक क्षेत्रों में भूखंड आवंटन करने के साथ ही उद्योग विभाग के माध्यम से इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी, वैट, उत्पाद शुल्क में छूट आदि रियायतें भी दी जाएंगी। रीको के नियमों में अभी औद्योगिक क्षेत्रों में लघु उद्योगों को 30 प्रतिशत भूखंड आरक्षित दर पर दिए जाने का प्रावधान है। परंतु अब आरक्षित दर से भी कम दरों पर 30 प्रतिशत से भी ज्यादा भूखंड आवंटित किए जाएंगे।

इसलिए करना पड़ा फैसला : प्रदेश में लघु और मध्यम उद्योग काफी संकट में हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाले कुटीर उद्योग तो कमजोर गुणवत्ता, आधुनिक तकनीक कमी और मार्केटिंग नेटवर्क नहीं मिल पाने के कारण लगभग बंद से हो गए हैं। सरकारों ने भी पिछले एक दशक के दौरान राज्य में पूंजी निवेश बढ़ाने के नाम पर बड़े उद्योगों को ही बढ़ावा देने का काम किया है। इस दौरान लघु उद्योगों की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। अब सरकार चाहती है कि मध्यम, लघु और अति लघु उद्योगों से आबादी का एक बड़ा तबका जुड़ा है, इसलिए इसे वोट बैंक में तब्दील करने के लिए इस क्षेत्र पर ध्यान दिया जाए।

सरकारी उपक्रम भी हैं संकट में : राज्य में लघु उद्योगों, हस्तशिल्पियों और कारीगरों को राहत पहुंचाने वाले राजकीय उपक्रम भी पिछले कई साल से वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहे हैं। इनमें कई उपक्रम तो ऐसे हैं जिनमें वेतन तक के लाले पड़ रहे हैं। इनमें से कुछ की तो हाल ही सरकार ने आर्थिक मदद भी की है। इनमें राजस्थान राज्य बुनकर संघ, राजस्थान स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन (राजसिको), नेशनल हैंडलूम कॉरपोरेशन, स्पिनफैड, खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, राजस्थान गैर कृषि विकास अभिकरण (रूडा) आदि प्रमुख हैं।

निवेश बढ़ा, उद्योग और रोजगार नहीं: पिछले 7 साल में प्रदेश के लघु उद्योगों में निवेश तो बढ़ा है, लेकिन छोटे उद्योगों और उनमें स्थानीय स्तर पर मिलने वाले रोजगारों में कोई वृद्धि नहीं हुई है। उद्योग विभाग के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2006-07 में जहां लघु उद्योगों में पूंजी निवेश 155192.90 लाख रुपए था, वहीं यह वर्ष 2012-13 में बढ़कर 278806.43 लाख रुपए हो गया। जबकि उद्योग और रोजगार की संख्या वर्ष 2006-07 की तुलना में कम ही है।

स्वयं सहायता समूहों को नहीं मानते लघु उद्योग: राज्य में करीब 2.50 लाख महिला स्वयं सहायता समूह बने हुए हैं। ग्रामीण और आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग की बहुलता वाले क्षेत्रों के ये स्वयं सहायता समूह पापड़, राखियां, मंगोड़ी, अचार, सिलाई, कढ़ाई, आरी-तारी जैसे कई छोटे-बड़े काम कर रहे हैं। कुछ महिलाएं तो स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से डेयरी भी चला रही हैं। परंतु इन्हें लघु उद्योग का दर्जा नहीं मिलने से सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। उद्योग विभाग के अधिकारियों का कहना है कि लघु उद्योग के रूप में एक ही प्रॉपराइटर नहीं होने से इनके पंजीयन में परेशानी आती है और बैंक भी इनके प्रोजेक्ट को आसानी से सपोर्ट नहीं करते हैं। स्वयं सहायता समूह चाहे तो संस्था को लघु उद्योग के रूप में पंजीकृत करवा सकता है।

ये है लघु उद्योगों की समस्याएं: बाजार में बढ़ती प्रतिस्पद्र्धा। मार्केटिंग नेटवर्क की कमी। प्रबंधकीय क्षमता और स्टाफ की कमी। दक्ष एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों का अभाव। उत्पादों की गुणवत्ता में कमी। सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिलना। उपयुक्त संसाधन न होना। लागत बढऩे और मुनाफा घटने से बंद होने की नौबत। मार्जिनल मनी का अभाव।

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