शनिवार, 30 मार्च 2013

पहचान को तरसती राजस्थानी!

पहचान को तरसती राजस्थानी!

बाड़मेर। आज राजस्थान दिवस है और प्रदेश राजस्थानी की मान्यता को लेकर बात कर रहा है, लेकिन एक भाषा के रूप में राजस्थानी मरूधरा में भी पहचान नहीं बना पाई है। सालों से उच्च माध्यमिक स्तर पर राजस्थानी विषय होने के बावजूद यहां अधिकांश विद्यालयों में राजस्थानी भाषा नहीं पढ़ाई जा रही है। महाविद्यालय स्तर पर तो इस विषय को शामिल ही नहीं किया गया है। हजारों की संख्या में राजस्थानी पढ़ने वालों की तादाद अंगुलियों पर गिनने लायक ही है।

राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठ रही है। इससे राजस्थानी को पहचान मिलेगी तो यहां के युवा इस विषय का अध्ययन कर रोजगार के अवसर पर सकेंगे, लेकिन विद्यालय स्तर पर राजस्थानी की स्थिति सुखद नहीं है। जिले में उच्च माध्यमिक स्तर पर राजस्थानी भाषा को शामिल किए करीब बारह साल हो चुके हैं। इस दौरान इस विषय को मात्र दो-तीन विद्यालयों में ही पढ़ाया जा रहा है। ऎसे में यह विषय आरम्भिक तौर पर ही दम तोड़ता नजर आ रहा है।

महाविद्यालय में नहीं शामिल
उच्च माध्यमिक विद्यालयों में यह विषय शामिल है, लेकिन महाविद्यालय स्तर पर यह शामिल नहीं है। ऎसे में अधिकांश विद्यार्थी आगे इसका भविष्य नहीं होने की बात कहते हुए इसे पढ़ने से परहेज कर रहे हैं।

यहां है राजस्थानी
जिले में उच्च माध्यमिक स्तर के 145 विद्यालय हैं, इनमें से मात्र राउमावि स्टेशन रोड बाड़मेर, खड़ीन, कल्याणपुर और जसोल में ही राजस्थानी भाषा पढ़ाई जा रही है। करीब पचपन निजी विद्यालय हैं, जिसमें से एक में भी राजस्थानी नहीं पढ़ाई जा रही।

प्रोत्साहन की जरूरत
प्रदेश की भाषा राजस्थानी की मान्यता नहीं होने से दिक्कत हो रही है। राजस्थानी को प्राथमिक स्तर से विषय के रूप में शामिल कर प्रोत्साहन देने की जरूरत है।
- भोमसिंह बलाई, छात्र नेता
राजस्थानी आवश्यक हो
राजस्थान में राजस्थानी आवश्यक विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। राजस्थानी भाषा की मान्यता मिले इसके प्रयास जरूरी है।
- अशोक सारला, जिलाध्यक्ष, राजस्थानी भाषा छात्र परिषद

मान्यता जरूरी
राजस्थानी की मान्यता जरूरी है। इससे हमारी संस्कृति व सभ्यता के प्रति युवाओं की सोच बढ़ेगी और युवाओं को रोजगार में भी फायदा मिलेगा। - नीम्बाराम जांगिड़, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य

मांग नहीं आ रही
किसी विद्यालय में पन्द्रह विद्यार्थी मांग करते हैं तो वहां यह विषय पढ़ाया जा सकता है। जिले में तीन-चार विद्यालयों में यह विषय है। अन्य जगह से मांग नहीं आ रही है, ऎसे में विष्ाय नहीं पढ़ाया जा रहा। - गोरधनलाल पंजाबी, जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक शिक्षा)

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