गरीबों के खाते में सीधे नगद जमा कराने की केंद्र सरकार की भारी-भरकम 'गेमचेंजर' योजना उसके लिए उल्टी भी पड़ सकती है. कम से कम राजस्थान के अलवर में इसके एक साल पुराने पायलट प्रोजेक्ट का अनुभव तो यही दर्शाता है. योजना से जुड़ी मुसीबतों को लेकर कई लोग सरकार के खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं.
केंद्र सरकार कैश सब्सिडी योजना को अपना ब्रह्मास्त्र बता रही है और इसे पूरे देश में लागू करने का ऐलान भी कर चुकी है. इसी योजना के बूते सरकार 2014 के चुनावी रण में विरोधियों को पटखनी देने का मनसूबा भी पाल रही है.
अगले साल 1 जनवरी से योजना लागू करने से पहले इसका पायलट प्रोजेक्ट भी राजस्थान के अलवर जिले में एक साल पहले शुरू किया गया था, लेकिन अलवर की हकीकत पर गौर करें तो यूपीए 2 का यही ट्रंप कार्ड उसके ही खिलाफ असंतोष की वजह बन सकता है.
ऐसा इसलिए क्योंकि बड़ी तादाद में लोग शिकायत कर रहे हैं कि साल भर हो गया उनके खाते में पैसे ही नहीं आए हैं. इसके अलावा बहुत सारे लोगों के खाते ही नहीं खुले हैं. कहीं बैंक गांव से दूर हैं तो कहीं खाते खोलने के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं हैं.
योजना के बारे में अलवर के एक किसान भजन यादव कहते हैं, 'क्या अच्छी है, पैसे देने की योजना. मजदूरी छोड़कर पैसे के लिए बैंक के चक्कर लगाते रहो. वो भी मिलती नही. हमें कोई फायदा नही है. वहीं किसान श्रीराम यादव की शिकायत है कि पहली बार पैसे दिए थे. उसके बाद तो कभी पैसे नहीं मिले. उनका कहना है, 'हमने बैंक में खाते भी खुलवा लिए लेकिन आज दिन तक पैसे नहीं आए.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पहली तिमाही में सभी 13,458 उपभोक्ताओं के खाते में पैसे दिए थे लेकिन दूसरी तिमाही में महज 7415 और तीसरी तिमाही में 3164 उपभोक्ताओं के ही खाते में पैसे जमा हुए. प्रशासन का कहना है कि जिन लोगों ने दिए गए पैसे से केरोसिन नहीं खरीदा उनका पैसा बंद कर दिया गया है.
अलवर के रसद अधिकारी रामचंद्र मीणा का कहना है कि जिन लोगों ने दिए गए पैसे से केरोसिन नहीं खरीदा उनका पैसा हमने बंद कर दिया है.
सवाल उठता है कि अगर किसी महीने में कोई किसी वजह से केरोसिन नहीं ले पाए तो क्या उसका नाम गरीबी लिस्ट से काट देना उचित है. इस योजना के बाद केरोसिन की खपत में 70 फीसदी की कमी आई है लेकिन केरोसिन की कीमत भी 50 रुपये प्रति लीटर हो गई है. जिन्हें खरीदना है वो लोग इस बढ़ी कीमत के लिए सरकार को दोषी मान रहे हैं.
केंद्र सरकार कैश सब्सिडी योजना को अपना ब्रह्मास्त्र बता रही है और इसे पूरे देश में लागू करने का ऐलान भी कर चुकी है. इसी योजना के बूते सरकार 2014 के चुनावी रण में विरोधियों को पटखनी देने का मनसूबा भी पाल रही है.
अगले साल 1 जनवरी से योजना लागू करने से पहले इसका पायलट प्रोजेक्ट भी राजस्थान के अलवर जिले में एक साल पहले शुरू किया गया था, लेकिन अलवर की हकीकत पर गौर करें तो यूपीए 2 का यही ट्रंप कार्ड उसके ही खिलाफ असंतोष की वजह बन सकता है.
ऐसा इसलिए क्योंकि बड़ी तादाद में लोग शिकायत कर रहे हैं कि साल भर हो गया उनके खाते में पैसे ही नहीं आए हैं. इसके अलावा बहुत सारे लोगों के खाते ही नहीं खुले हैं. कहीं बैंक गांव से दूर हैं तो कहीं खाते खोलने के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं हैं.
योजना के बारे में अलवर के एक किसान भजन यादव कहते हैं, 'क्या अच्छी है, पैसे देने की योजना. मजदूरी छोड़कर पैसे के लिए बैंक के चक्कर लगाते रहो. वो भी मिलती नही. हमें कोई फायदा नही है. वहीं किसान श्रीराम यादव की शिकायत है कि पहली बार पैसे दिए थे. उसके बाद तो कभी पैसे नहीं मिले. उनका कहना है, 'हमने बैंक में खाते भी खुलवा लिए लेकिन आज दिन तक पैसे नहीं आए.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पहली तिमाही में सभी 13,458 उपभोक्ताओं के खाते में पैसे दिए थे लेकिन दूसरी तिमाही में महज 7415 और तीसरी तिमाही में 3164 उपभोक्ताओं के ही खाते में पैसे जमा हुए. प्रशासन का कहना है कि जिन लोगों ने दिए गए पैसे से केरोसिन नहीं खरीदा उनका पैसा बंद कर दिया गया है.
अलवर के रसद अधिकारी रामचंद्र मीणा का कहना है कि जिन लोगों ने दिए गए पैसे से केरोसिन नहीं खरीदा उनका पैसा हमने बंद कर दिया है.
सवाल उठता है कि अगर किसी महीने में कोई किसी वजह से केरोसिन नहीं ले पाए तो क्या उसका नाम गरीबी लिस्ट से काट देना उचित है. इस योजना के बाद केरोसिन की खपत में 70 फीसदी की कमी आई है लेकिन केरोसिन की कीमत भी 50 रुपये प्रति लीटर हो गई है. जिन्हें खरीदना है वो लोग इस बढ़ी कीमत के लिए सरकार को दोषी मान रहे हैं.
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