गाँवो में पहुंचा राजस्थानी रो हेल्लो
विशाला में राजस्थानी रो हेल्लो जनजागरण और पोस्टकार्ड अभियान आयोजित
राजस्थानी में हो शुरुआती प्राथमिक शिक्षा
.बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर और राजस्थानी मोटियार परिषद् के तत्वाधान में राजस्थानी भाषा को संवेधानिक मान्यता देने के लिए चलाये जा रहे राजस्थानी रो हेल्लो जनजागरण कार्यक्रम के तहत गुरूवार को विशाला के राजकीय माध्यमिक विद्यालय में कार्यक्रम किया ,गया कार्यक्रम में ग्रामीणों में सेकड़ो की में प्रधानमंत्री ,सांसद और गृह मंत्री को पोस्टकार्ड लिखे ,संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने बताया की राजस्थान की स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर राजस्थानी भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल करने विषय पर सम्मलेन आयोजित किया गया जिसमे विशाला सरपंच बलवंत सिंह भाटी ने कहा कि अनिवार्य शिक्षा कानून में कहा गया है कि प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को मातृभाषा में ही पढ़ाना होगा। इससे प्रदेश के भाषाविदों में नई बहस छिड़ गई है।
उन्होंनेबताया - राज्य के 90 लाख बच्चों की शुरुआती पढ़ाई राजस्थानी भाषा में ही होनी चाहिए। वक्ताओं ने कहा- बच्चों को समझाने के लिए मातृभाषा सहज माध्यम होती है। मुद्दा यह भी उठा कि जिस मातृभाषा में पढ़ाई की बात हो रही है उसे मान्यता क्यों नहीं है? कवि कन्हैयालाल सेठिया की ये पंक्तियां आज सही मालूम होती है-
खाली धड़ री कद हुवै, चेहरे बिन पिछाण, राजस्थानी रै बिनां,क्यां रो राजस्थान।
यानी राजस्थानी भाषा के बिना कैसा राजस्थान
विशाला में आयोजित जनजागरण अभियान को संबोधित करते हुए रिखब दास सोनी ने कहा की
ने बताया की बच्चों को सबसे पहले वही भाषा सिखानी चाहिए जिसके वह सबसे नजदीक हो। शुरुआती शिक्षा राजस्थानी में देने में कोई हर्ज नहीं है और इसके लिए मान्यता की भी जरूरत नहीं है। विद्वानों का तर्क था कि प्रदेश में तीन विश्वविद्यालयों में राजस्थानी भाषा पढ़ाई जाती है और आरपीएससी इस भाषा के व्याख्याताओं की भर्तियां करता है फिर स्कूल में यह क्यों नहीं शुरू हो सकती।
नगर अध्यक्ष रमेश सिंह इन्दा ने कहा कि राजस्थानियों के लिए मायड़ भाषा, भावनाओं को समझने का सबसे सशक्त माध्यम है। जोधपुर में लोगों का मत था कि राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता मिलनी ही चाहिए। मातृभाषा में शुरुआती पढ़ाई के साथ ही राजस्थानी, हिन्दी और अंग्रेजी की त्रिस्तरीय शिक्षण व्यवस्था को भी लागू करने की जरूरत है।अनिवार्य शिक्षा कानून के अनुच्छेद 29 के प्रावधान को लागू करने से पहले खासकर राजस्थान के संदर्भ में ंमातृभाषाा शब्द की समुचित व्याख्या आवश्यक है। अजमेर के साहित्यकारों ने अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत राज्य में प्राथमिक स्तर पर राजस्थानी में ही शिक्षा देने पर बल दिया है।
मोटियार परिषद् के जिला सह संयोजक दिग्विजय सिंह चुली ने कहा की अनिवार्य शिक्षा और प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने संबंधी विधेयक के अनुच्छेद 29 की पूरी तरह पालना हो। उन्होंने कहा कि मातृभाषा वह है जिसमें दूध पीता बच्चा अपनी मां के साथ संवाद करता है। उन्होंने कहा कि राज्य के 90 लाख बच्चे प्राथमिक स्तर पर राजस्थानी में पढ़ने के अधिकार से वंचित किए जाने के कारण ही आधी से ज्यादा संख्या में निरक्षर हैं। अनुच्छेद में यह कहीं नहीं लिखा है कि प्राथमिक शिक्षा के लिए मातृ भाषा का संवैधानिक अनुसूची में होना जरूरी है।
समिति के सचिव खेत दान चारण कहा है कि शिक्षा का माध्यम प्रारंभिक स्तर से ही मातृभाषा का हो, हमारी मातृभाषा राजस्थानी है जो दुनिया की सर्वाधिक समृद्ध भाषओं में से एक है। यदि शिक्षामंत्री यह कहते हैं कि फिलहाल मातृभाषा हिंदी है तो उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि मां और मातृभाषा स्थायी होती है, यहां कोई ईफिलहालल का प्रावधान नहीं होता।
वोट मायड़ भाषा में तो अधिकार क्यों नहीं
दीपक जोशी कहा की मातृभाषा बच्च मां की कोख से सीखकर आता है और उसी भाषा में वह चीजों को बेहतर तरीके से जान-समझ सकता है। ऐसे में राजस्थान के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मायड़ भाषा राजस्थानी ही होना चाहिए।इस अवसर पर विद्यालय प्राचार्य ,सहित बड़ी तादाद में ग्रामीण ,विद्यालय स्टाफ उपास्थित ,था ग्रामीणों ने छात्रो के साथ मिल कर सेकड़ो की तादाद में राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए प्रधान मंत्री ,सांसद ,और गृह मंत्री को पोस्टकार्ड लिखे ,
इस अवसर पर दीपक जोशी ,रिखबदास सोनी ,पिताम्बरदास सोनी ,जीतेन्द्र सोलंकी ,हेम सिंह भाटी ,दिनेश कुमार ,अमराराम ,बाबूलाल ,जीतेन्द्र खत्री ,प्रतापराम ,सवाई राम ,सहित कर जने उपस्थित थे ,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें