लखनऊ। 23 वर्षीय छात्रा के जिंदगी की जंग हार जाने से जहां गांव ने अपनी लाडली को खो दिया, वहीं दूसरी ओर दो भाइयों ने अपनी ट्यूटर बहन से जुदा हो गई। ‘दामिनी’ अपने भाइयों की खुद ही ट्यूशन देती थी। भाइयों की गाइड बन चुकी दामिनी को हमेशा उनकी फिक्र रहती थी। उसके चाचा यह बताते हुए फफक-फफक कर रो पड़े। कुछ संभले और उनकी जुबान थम गई। आंख में आंसू और चेहरे पत्थर सा हो गया।
बलिया स्थित अपने गांव में दामिनी पांच साल पहले एक शादी में शरीक होने आई थी। इसके लिए उसने मेडिकल के दाखिले की तैयारी से बमुश्किल से थोड़ा वक्त निकाला था। वह चार दिन यहां रुकी थी। अब गांव के लोग उसका चेहरा नहीं देख पाएंगे। लोगों के पास उत्सव और दामिनी की धुंधली यादें बची हैं।
गम में डूबे उसके चाचा सिसकते हुए बताते हैं, “सामान्य तौर पर लड़कियों के ख्वाब पारिवारिक होते हैं, लेकिन भतीजी के दिमाग में एक ही बात थी, पढ़ाई। वह डॉक्टर बनना था। इसके लिए वह कुछ महीने के लिए देहरादून भी गई थी। वहां कड़ी मेहनत कर मेडिकल की तैयारी की और दाखिला पाकर खानदान का सिर ऊंचा कर दिया था। अब सिर्फ उसका इंटर्नशिप बचा था।”
उसके चाचा बताते हैं कि भतीजी बेहद शांत स्वभाव की थी। उसका कहना भी था कि “हमारे मां-बाप ने बहुत परिश्रम से पढ़ाया है।” उसकी तमन्ना थी, डॉक्टर बने और सबकी सेवा करे। उसकी मां हाउस वाइफ है और कभी भी तीनों संतानों में बेटी का फर्क नहीं किया।
25 साल पहले दामिनी के मां-पिता बलिया से दिल्ली आ गए थे। दामिनी का जन्म भी यहीं हुआ और आगे की पढ़ाई लिखाई भी। पिता प्राइवेट नौकरी करते हैं और बेहद सामान्य सा उनका परिवार है। दामिनी के चाचा 15 साल तक उसके साथ ही दिल्ली में रहे। उसके चाचा की एक ही बेटी है। वह बीए में पढ़ती है। दामिनी जब भी फोन पर बात कर अपनी चचेरी बहन को हमेशा साहस और उत्साह से उसे भर देती थी।
महिलाओं के सम्मान करने का लें संकल्प
भारत का युवा इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक प्रदर्शन कर रहा है। कानून जब बनेगा, तब बनेगा। महिलाओं के खिलाफ अपराध तब रूकेंगे जब हम उनकी दिल से इज्जत करेंगे। इस बार इसी संकल्प को करने का मौका है, हमारे महाअभियान से जुड़कर। हमारे इस महाअभियान से जुड़िए और संकल्प लीजिए कि मैं महिलाओँ का सम्मान करूंगा।
भाटीजी, लखदाद सा। आप दामिनी री कथा सांमी लाया। परमपिता परमात्मा सूं अरज करूं कै दामिनी री आत्मा नैं सांती मिळै अर उण रा दोसियां नैं इत्ती लूंठी सजा मिले कै दूजा लोग इस्सो भूंडो काम करण री सोच भी नीं सके।
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