मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

आईओसी ने भारत को करा सस्पेंड


नई दिल्ली। भारतीय खेलों के इतिहास में चार दिसंबर 2012 की तारीख काले दिन के रूप में दर्ज हो गई। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के चुनावों में सरकारी हस्तक्षेप को ओलंपिक चार्टर का उल्लंघन बताते हुए मंगलवार को आईओए को ओलंपिक आंदोलन से निलंबित कर दिया।

आईओसी के कार्यकारी बोर्ड की स्विट्जरलैंड के लुसाने में शुरू हुई दो दिवसीय बैठक में आईओए को निलंबित करने का फैसला किया गया। आईओसी ने आईओए के चुनाव खेल संहिता के तहत कराने पर पहले ही नाराजगी व्यक्त करते हुए स्पष्ट कर दिया था कि वह कार्यकारी बोर्ड की बैठक में भारत के निलंबन का प्रस्ताव पेश करेगा और उसने आखिर अब आईओए को निलंबित कर दिया।

आईओए के निलंबन के फैसले का मतलब है कि भारत की सर्वोच्च खेल संस्था को आईओसी से किसी तरह की कोई मदद नहीं मिलेगी और उसके अधिकारी ओलंपिक बैठकों में हिस्सा लेने तथा खिलाडी ओलंपिक स्पर्द्धाओं में हिस्सा लेने से वंचित हो जाएंगे। भारतीय एथलीट अपने राष्ट्रध्वज के तहत ओलंपिक स्पर्द्धाओं में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। हालांकि आईओसी उन्हें ओलंपिक ध्वज के तहत भाग लेने की अनुमति दे सकता है।

भारत के खेल मंत्री जितेन्द्र सिंह, आईओए के निर्विरोध अध्यक्ष बने अभय सिंह चौटाला और कार्यवाहक अध्यक्ष विजय कुमार मल्होत्रा ने आईओसी के इस फैसले को गलत और एकतरफा कदम बताया है। हालांकि खेल मंत्रालय और आईओए की तरफ से आईओसी को इस मामले को सुलझाने के लिए पत्र भी लिखे गए थे और आईओए दो सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भेजने को तैयार था लेकिन आईओसी ने इन पत्रों का न तो कोई जवाब दिया और न ही प्रतिनिधिमंडल को लुसाने आने की मंजूरी दी।

आईओसी का आरोप है कि भारतीय ओलिंपिक संघ के चुनावों में पिछले दो सालों से सरकार का हस्तक्षेप रहा है। आईओसी की नवंबर के आखिर में दी गई इस चेतावनी के बावजूद आईओए के अधिकारी दावा करते रहे थे कि आईओसी के साथ बातचीत कर मामला सुलझा लिया जाएगा। आईओए के कार्यवाहक अध्यक्ष विजय कुमार मल्होत्रा ने खेल संहिता के प्रति अपना विरोध व्यक्त करते हुए आईओसी के गत 29 नवंबर को पत्र लिखा था कि उनके लिए यह चुनाव दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के तहत कराना मजबूरी है।

आईओसी ने मल्होत्रा के इस पत्र का कोई जवाब नहीं दिया और आईओए के दो सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को भी लुसाने आने के लिए अपनी मंजूरी नहीं दी। हालांकि आईओए ने लुसाने जाने वाली उड़ान के लिए तीन दिन के अपने टिकट बुक करा रखे थे। इस प्रतिनिधिमंडल में हाकी इंडिया के महासचिव नरेन्द्र बत्रा और एडवोकेट आर के आनंद शामिल थे। इस बीच आईओए के निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए अभय सिंह चौटाला ने आईओसी के इस फैसले को पूरी तरह गलत और एकतरफा बताया है। चौटाला ने मीडिया में निलंबन का फैसला आते ही अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा कि हमें इसकी अभी कोई जानकारी नहीं मिली है।

आईओए के चुनाव गत 25 नवंबर को होने थे लेकिन चुनाव पैनल के अध्यक्ष के इस्तीफा देने के बाद इन चुनावों के लिए पांच दिसंबर की तारीख तय की गई। आईओए का चुनाव बुधवार को होना है लेकिन इससे पहले ही आईओसी का यह फैसला आ गया।

अध्यक्ष पद के लिए आईओए के महासचिव और आईओसी के सदस्य रणधीर सिंह के अपना नामांकन वापस लिए जाने के बाद चौटाला निर्विरोध अध्यक्ष बन गए थे। चौटाला के साथ-साथ दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल घोटालों के आरोपी ललित भनोट निर्विरोध महासचिव, वीरेन्द्र नानावटी वरिष्ठ उपाध्यक्ष और एन रामचंद्रन कोषाध्यक्ष चुन लिए गए थे। इन चार पदाधिकारियों के चयन के बावजूद आईओए पर निलंबन की तलवार लटकी हुई है।

आईओए के अधिकारी हालांकि यह तो बराबर कहते रहे कि वे खेल संहिता का विरोध करते रहेंगे लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के तहत चुनावों को खेल संहिता और आईओए संविधान के तहत कराया जाना था। मल्होत्रा ने खेल संहिता वापस लेने के लिए प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था और आईओए का नौ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल खेल मंत्री जितेन्द्र सिंह से मिला था।

इस बीच मल्होत्रा ने कहा कि आईओए को अभी तक निलंबन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है। आईओए के निलंबन का मतलब है कि भारत की सर्वोच्च खेल संस्था को आईओसी से किसी तरह की कोई मदद नहीं मिलेगी और उसके अधिकारी ओलंपिक बैठकों में हिस्सा लेने तथा खिलाड़ी ओलंपिक स्पर्द्धाओं में हिस्सा लेने से वंचित हो जाएंगे। भारतीय एथलीट अपने राष्ट्रध्वज के तहत ओलंपिक स्पर्द्धाओं में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। हालांकि आईओसी उन्हें ओलंपिक ध्वज के तहत भाग लेने की अनुमति दे सकता है।

आईओसी ने हाल ही में कुवैत की ओलंपिक समिति को भी निलंबित करने की धमकी दी थी लेकिन इस खाड़ी देश ने आईओसी के प्रतिबंध से बचने के लिए पिछले सप्ताह अपने खेल कानून में संशोधन कर लिया था। मल्होत्रा ने आईओसी को जो पत्र लिखा था उसका कोई जवाब हमारे पास नहीं आया है। इसलिए मेरा मानना है कि यह बिल्कुल गलत और एकतरफा फैसला है। हम इस मामले को लेकर फिर से आईओसी के पास जाएंगे।

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