गुरुवार, 29 नवंबर 2012

foto..बाड़मेर की प्राचीन राजधानी जूना: जर्रा जर्रा इतिहास




बाड़मेर की प्राचीन राजधानी जूना: जर्रा जर्रा इतिहास



सरहदी जिले बाड़मेर पश्चिम  दिशा  में सिहाणी की अटल पहाड़ियो के मध्य कभी आबाद राह जूना गढ  आज इतिहास का साक्षी है। जिले के स्वर्णिम इतिहास को गौरव प्रदान करने वाला जूना का किला जो पूर्व बाहड़मेर था।

काले भूरे रंग की पहाड़ी नगरी में पाशाण ही पाशाण है। रेतीले टीलो की कतारे मन्दिरो से भरा पानी के सूखे तालाब, कंटिली झाड़ियो में कभी आबाद राह ऐतिहासिक जूना आज सूना है। जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर दुर्गम काली पहाड़ियो को तीन किलोमीटर पैदल चलकर पार करने पर जूना का स्वरुप दिखाई देता है।

भग्नावोश किले की िल्पकला, अनायास ही अपनी ओर आकिशर्त करती है। सोलंकी सम्राटो की कभी राजधानी रही जूना के पाशाण आज सिसकारियों ले रहे है, मुगल सम्राटो के कोपभाजन का िकार 12 वी भाताब्दी में चौहान सामंत सिंह ने जूना का किला बनाया था जिस पर 16वीं भाताब्दि में सोलकी राजा भीमदेव का आधिपत्य था उनकी उदारता कर्तव्यनिश्ठा, वीरता आज भी जूना के पाशाणो में बोलती है। वीरता तथा पराक्रम का प्रतीक जूना जहां उनकी चमचमाती तलवारे चमकती थी शहनाई बजी युद्व के शंखनाद हुए मांगलिक गान की झंकार उठी, रात्री में आरती के थाल सजें।

इसका साक्षी पहाड़ी के चोटी पर वीरो की स्मृति में बना जूना दूर्ग है। जिसके भग्नावोश दस मील की परिधि में बिखरे पड़े है। कभी बाड़मेर नगरी रही जूना आज मानव जाति को तरस रहा है।

भग्नावोशों से स्पश्ट है कि जूना कभी समृद्व नगरी रही है। यहां स्थित भग्नावोश इमारतो से यहां व्यापार केन्द्र होने का आचर्य जनक तथ्य सामने आता है। यहां स्थित भग्न प्रसादो में समृद्वि की झलक दिखाई देती है। पहाड़ो की गोद में बिखलती जूना नगरी का जर्राजर्रा जर्जर अवस्था में पहुंच चुका है। 11वीं सदी के ऊंचे तोरण वाला मन्दिर स्वर्णिम इतिहास का साक्षी है। जूना में तीन मन्दिर है जो सम्भवतः सोमेवर मन्दिर है। मन्दिरो की िल्प कला नक्काी में उच्च श्रेणी की है।

मन्दिरो की दिवारो पर अंकित काम कलाकृतियों काम क्रीडाओ की जीता जागता उदाहरण है। मन्दिरो के गुम्बज पूर्णतः गिर चुके है। जगहजगह जूना का इतिहास बिखेरा पड़ा है। आवयकता समेटने वालो की है। सुरक्षित स्थान की सोच के साथ निर्मित हुआ यह किला मुगलो की दृश्टि से बच नही सका। चारो ओर काली भूरी पहाड़ियो के मध्य में भग्नावेोश मन्दिर यहां आक्रमण की कल्पना बेमानी सी लगती होगी मगर मुगलो की कुटिल नजरो से यह नगरी बच नही पाई। महानतम िल्प कला का उत्कृश्ट नमूना जूना दुर्ग भग्नावोश इतिहास बनकर रह गया है। इतिहास का अंतिम स्वर्णिम साक्षी जो गौरवाली है। भाूरवीरो की कर्म भूमि जहां मर्यादा स्वतः बोलती है। कणकण में लोक संस्कृति की झलक दिखाई देती है। 12वीं भाताब्दि का साक्षी जूना आज जर्जरावस्था में है।

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