सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

रेगिस्तान पर हुआ बादल मेहरबान




एक महीने पहले तक अकाल के साये में जीवन यापन कर रहे रेगिस्तानी इलाकों के लोगों को अब हरे-भरे खेत देखकर उम्मीद की किरण नजर आने लगी है. पिछले दिनों हुई अच्छी बरसात ने पूरे माहौल को बदल दिया है. चारों तरफ हरियाली की चादर बिछी हुई है, तालाब और नादियां लबालब भरे हुए हैं. बढिय़ा मॉनसून की वजह से राज्य के 33 में से 32 जिलों में खरीफ की शानदार फसल होने की संभावना है. इस साल करीब 10 जिलों में सामान्य से अधिक बारिश हुई है, 13 जिलों में सामान्य बारिश हुई है, जबकि नौ जिलों में 75 फीसदी से भी ज्यादा बारिश दर्ज की गई है.

मॉनसून में देरी की वजह से 27 जिलों में सूखे की स्थिति पैदा हो गई थी. लोग पानी की एक बूंद-बूंद के लिए तरस रहे थे और जब जुलाई बीत जाने के बाद भी रेगिस्तान पर बादल मेहरबान नहीं हुए तो पाकिस्तान सीमा पर बसे गांवों में सूखे सरीखे हालात पैदा हो गए. पशुओं के लिए चारा-पानी की कमी हो गई तो किसानों के लिए हाहाकार जैसी स्थिति पैदा हो गई थी.

अगस्त माह के दो-तीन सप्ताह तक जब बारिश की एक बूंद भी नहीं गिरी तो अशोक गहलोत सरकार ने रेगिस्तानी इलाके के पांच जिलों को सूखा घोषित कर दिया. सीमा पर रहने वाले लोगों के लिए खाने-पीने के लाले पड़ गए. लोग बादलों को मनाने के लिए कई टोटके करने लगे तो कोई राग मल्हार गाकर बादलों को खुश करने में लग गया. जब अगस्त माह के अंत तक बादल बरसने को राजी नहीं हुए तो सीमा पर बसे गांवों के लोगों ने यह मान लिया कि इस साल सूखे के साथ जिंदगी बितानी पड़ेगी.

लेकिन सितंबर के पहले सप्ताह में बादल इस कदर मेहरबान हो गए कि पूरे रेगिस्तान में झमाझम बारिश होने लगी और इतना पानी बरसा कि कई नाले और तालाब उफन गए. लोग जिस बारिश की बूंदों के लिए तरस रहे थे, उन्हीं की वजह से उनके सामने आफत खड़ी हो गई और उनका जीना मुहाल हो गया.

5 सितंबर को सूखे का जायजा लेने के लिए केंद्रीय अध्ययन दल नागौर, बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर और जोधपुर आया, जिसने सीमा के दर्जनों गांवों का दौरा किया और लोगों की समस्याओं के बारे में पूछताछ की. मजे की बात यह थी कि केंद्रीय दल जहां-जहां जाता, एक रात पहले ही वहां जोरदार बारिश हो चुकी होती थी. दल को हर जगह पानी-ही-पानी भरा मिलता. जैसलमेर आए केंद्रीय अध्ययन दल के मुखिया यू.के. सिंह के अनुसार, समय पर बारिश न होने की वजह से इन इलाकों में फसल थोड़ी कम हो पाएगी, लेकिन किसानों को निराश नहीं होना पड़ेगा. गौरतलब है कि सिर्फ जैसलमेर ही इकलौता रेगिस्तानी जिला है, जहां सामान्य से कम बारिश होने की वजह से मात्र 37 फीसदी बुआई हो सकी. बहरहाल, इस दल के जाने के बाद रेगिस्तान में इस कदर बारिश हुई कि बाड़मेर शहर की निचली बस्तियों में पानी घुस गया, कई सड़कें पानी में बह गईं तो मुनाबाओ रेल खंड की पटरियों के नीचे की रेत बह गई.

लेकिन बढिय़ा मॉनसून की वजह से किसानों को अतिरिक्त जमीन पर बुआई करने का मौका मिल गया. कृषि निदेशालय के प्रवक्ता के मुताबिक, राज्य में पहले 1.5 करोड़ हेक्टेयर में बुआई का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन किसानों ने 15 सितंबर तक अतिरिक्त 38.40 लाख हेक्टेयर में बुआई की. निदेशालय के मुताबिक, 10 जिलों में लक्ष्य से ज्यादा बुआई हुई है, और 13 जिलों में 90 फीसदी से ज्यादा बुआई हुई है. नौ जिलों ने 60 से 89 फीसदी तक लक्ष्य हासिल कर लिया है. आज उनके खेतों में हरियाली है. उन्हें मूंगफली, सूरजमुखी, सोयाबीन, मक्का, बाजरा और कपास की अच्छी फसल होने की उम्मीद है. सबसे ज्यादा फायदा तो लाखों पशुओं को हुआ है, जिनके सामने पहले चारे का संकट था.

मॉनसून के अंतिम चरण में जोरदार बारिश से न केवल खरीफ की बंपर फसल की संभावना है बल्कि रबी की फसल भी बेहतर हो सकती है. किसान इस महीने से रबी की फसल की तैयारी कर रहे हैं. लेकिन एक ओर जहां उनके ऊपर प्रकृति मेहरबान है, वहीं उन्हें सरकार से कोई राहत नहीं मिल पा रही है. उन्हें फर्टिलाइजर और डीजल की कीमत में इजाफे की मार झेलनी पड़ेगी. यही नहीं, रबी की फसल के लिए उन्हें प्रमाणित बीज के लिए 45 फीसदी अतिरिक्त पैसा चुकाना होगा.

बहरहाल, राजस्थान में पिछले कुछ समय से मौसम का मिजाज बदल रहा है. अकाल और रेगिस्तान एक-दूसरे के पर्याय हुआ करते थे. पहली बार रेगिस्तान में 2006 में भयंकर बारिश से बाढ़ आई. उसके बाद हर साल राज्य के रेगिस्तानी इलाकों में बारिश हो रही है. बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर और जोधपुर जैसे रेगिस्तानी जिलों में औसत से अधिक बारिश हुई.

वैज्ञानिक डॉ. जे.पी. सिंह के अनुसार, ''मौसम में बदलाव का सबसे बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग है. पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग के कारण जो उठापटक हो रही है, उसका असर मौसम पर पड़ा है. राजस्थान में इसका असर नजर आ रहा है. अब हम पहले की तरह अनुमान नहीं लगा सकते कि मॉनसून कब आएगा.” माना जा रहा है कि मौसम में बदलाव की वजह से आने वाले समय में राज्य का बड़ा हिस्सा खेती योग्य हो जाएगा. कहते हैं, हर चीज के दो पहलू होते हैं. राजस्थान के लोग ग्लोबल वार्मिंग के सुखद पहलू को देख रहे हैं.

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