सोमवार, 6 अगस्त 2012

क्यूरियोसिटी ने भेजी मंगल की तस्वीरें

क्यूरियोसिटी ने भेजी मंगल की तस्वीरें

वाशिंगटन/ पासाडेना। क्यूरियोसिटी रोवर ने मंगल ग्रह पर सोमवार को सुरक्षित उतरने के कुछ क्षण बाद ही लाल ग्रह की सतह की पहली तीन तस्वीरें पृथ्वी पर भेज दीं। इस रोवर की लैंडिंग से जुड़ी नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी (जेपीएल) की टीम के उप प्रमुख एलन चेन ने कहा, मुझे इस क्षण पर भरोसा नहीं हो रहा है। यह एक अद्भुत पल है।

क्यूरियोसिटी ने मंगल ग्रह की सतह को छूने के बाद तीन तस्वीरें नासा मिशन कंट्रोल को भेजी हैं। इनमें से एक तस्वीर में रोवर के पहियों को देखा जा सकता है। मंगल से तस्वीरों अथवा रेडियो सिग्नल को पृथ्वी तक पहुंचने में 10-20 मिनटों का समय लगता है।

जीवन के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए मंगल ग्रह पर भेजा गया नासा का क्यूरियोसिटी रोवर अपने तय समय सोमवार सुबह 11 बजे मंगल पर सुरक्षित उतर गया। इस रहस्य से अभी तक पर्दा नहीं उठा है कि क्या हम ब्रम्हांड में अकेले हैं। सदियों से यह सवाल हमारे जहन में कौंधता रहा है। इसके प्रयास जारी हैं।

इन्हीं प्रयासों के तहत नासा ने जीवन की संभावना तलाशने के लिए एक बार फिर 900 किलो की चलती फिरती प्रयोगशाला क्यूरियोसिटी रोवर मंगल पर भेजी है। इस अभियान को नाम दिया गया है क्यूरियोसिटी रोवर।

अभियान की लागत है 2.5 अरब डालर -
कोई कुछ भी कहे सच तो यह है कि क्यूरियोसिटी रोवर नामक इस अभियान की लागत है करीब 2.5 अरब डॉलर।

26 नवंबर 2011 को छोड़ा गया था -
इस यान को 26 नवंबर 2011 को छोड़ा गया था और करीब 24 हजार करोड़ मील की दूरी तय कर यह मंगल पर उतरा है। न्यूलियर फ्यूल से चलने वाला रोवर करीब दो सालों तक सूचनाएं भेजेगा।

जीवन की संभावना का पता लगाएगा -
इस मिशन में मंगल के मौसम, वातावरण और भूगोल की जांच होगी। इनसे मिले आंकड़ों से तय होगा कि क्या मंगल पर जीवन की कोई संभावना है। अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए बनाया गया अब तक का सबसे बड़ा रोवर है। यह एक छोटी कार जितना बड़ा है। छह पहियों का यह रोवर छोटे पत्थरों को तोड़ने, मिट्टी और विकिरण की जांच करने के उपकरण साथ ले गया है।

दूसरे अभियानों से अलग है यह -
नासा के मंगल अभियान के डायरेक्टर डूज मैक्विस्टन के अनुसार यह अभियान दूसरे अभियानो से अलग है। इसका कारण यह है कि रोवर को मंगल पर सुरक्षित उतारने के लिए रॉकेटों की मदद से चलने वाली क्रेन की सहायता ली गई है। अभी तक मशीनें समतल जगह पर ही उतारी जाती रही हैं ताकि उनहें कोई नुकसान न पहुंचे। पहली बार इस प्रणाली के जरिए कोशिश की गई कि रोवर मंगल ग्रह के सबसे गहरे गदढ़ों में से एक में उतरे। चूंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगल पर जीवन के रहस्य इसके पत्थरों और चट्टानों में ही छिपे हुए मिल सकते हैं।

ऎसे उतरा मंगल पर -
मंगल ग्रह के वातावरण में घुसते वक्त इसकी गति थी 20,000 किलोमीटर प्रतिघंटा। केवल छह से आठ मिनट में ही जब इसके चक्के मंगल की सतह पर टकराए तो इसकी गति एक मीटर प्रति सेकण्ड से अधिक नहीं होना चाहिए थी और ऎसा हुआ भी। लेकिन 20,000 किलोमीटर प्रति घंटा से एक मीटर प्रति सेकंड तक आने की पूरी योजना बेहद जटिल थी। ऎसा करने के लिए रोवर कासुरक्षा कवच एक खास रास्ते से एक खास कोण के साथ नीचे आया। तेजी के साथ नीचे जाते रोवर को एक खास कोण पर उतारने के लिए इस प्रक्रिया के दौरान भारी वजन के कुछ टुकड़े सुरक्षा कवच से अलग हो गए। एक तारे की तरह नीचे जाते रोवर से कुह ही सेकंड बाद रॉकेट बाहर निकल आए जिन्होंने इसकी तूफानी गति को कम किया।

लेकिन अंतरिक्ष से हजारों किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से नीचे गिरते रोवर को धीमा करने के लिए यह भी पर्याप्त नहीं थ। इसलिए मंगल की सतह से करीब 1.5 किलोमीटर ऊपर इसके पीछे से अभी तक का सबसे बड़ापैराशूट निकला जिसने इसकी गति को कुछ और कम करके 450 किलोमीटर प्रतिघंटा तक कर दिया। लेकिन बावजूद इसके भी यह गति इतनी कम नहीं हुई कि रोवर को सुरक्षित मंगल की जमीन पर उतारा जा सके।

रोवर को उतारने के अंतिम चरण में इसके नीचे का एक कवच का टुकडा जो की अभी तक अंदर के रोवर को जल कर राख होने से बचा रहा था वो अलग हुआ और एक रॉकेटों से लैस एक ऎसी उड़ने वाली क्रेन निकली जिसने रोवर को एक सुरक्षित जगह पर छोड़ा।

कवच ने बचाया तपिश से -
इस मार्स रोवर का वजन 900 किलो है और यह अपनी किस्म के अनोखे कवच में ढंका हुआ है। नासा ने इस तरह का और इतना बड़ा कवच पहले कभी नहीं बनाया। रोवर के ऊपर के कवच ने उसे हजारों किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से नीचे आते समय पैदा हुई 2000 डिग्री की तपिश से बचाया। यह सब स्वयाचिलतथा। पृथ्वी पर से इसका कोई नियंत्रण नहीं था।

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