शनिवार, 25 अगस्त 2012

दिसंबर से नहीं "ग्लूकोज के बाटले"

दिसंबर से नहीं "ग्लूकोज के बाटले"

बाड़मेर। आई वी फ्लुड यानि देसी भाषा में "ग्लूकोज की बोतल"। अस्पताल में दाखिल होने वाले मरीज के लिए पहली जरूरत है। अकेले बाड़मेर राजकीय अस्पताल में छह हजार, बालोतरा में पांच हजार और जिलेभर की गणना करें तो महीने में एक लाख के करीब बोतल मरीजों को चढ़ जाती है। मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा की बदइंतजामी का यह हाल है कि दिसंबर माह से इसकी आपूर्ति ही नहीं हुई है। मरीजों को बाजार से यह दवा खरीदनी पड़ रही है।

अक्टूबर 2011 को प्रारंभ हुई यह महत्ती योजना आम आदमी के लाभ के लिए बनी और लाभदायक साबित भी हो रही है लेकिन इसका सुव्यवस्थित संचालन दस माह बाद भी संभव नहीं हो पाया है। "शोर्ट" दवाइयों का सिलसिला इस कदर है कि मरीज को अस्पताल के बाहर से दवा खरीदना मजबूरी हो जाता है।

अन्य के भी यह हाल
दवाओं के शोर्ट होने का सिलसिला 2 अक्टूबर 2011 से बदस्तूर जारी है। चिकित्सक दवा लिखते है, तब तक वह दवा खत्म हो जाती है। मरीज जैसे ही पर्ची लेकर दुकान पर पहुंचता है,उसको बता दिया जाता है कि अमुक दवा नहीं है। ऎसे में मरीज को मजबूरी में बाहर से दवा खरीदनी ही पड़ती है।

दो-तीन सौ का खर्चा
आईवी फ्लुड की बोतल सत्तर से सौ रूपए के बीच में आती है। तीन चार बोतल एक मरीज को चढ़ा ही दी जाती है। ऎसे में मरीज को तीन चार सौ का खर्चा हो जाता है। शेष दवाइयां नि:शुल्क मिलने पर भी मरीजों का उपचार मुफ्त में तो नहीं हो रहा है।

नहीं है आईवी फ्लुड
दिसंबर माह से आई वी फ्लुड नहीं आया है। इस कारण आपूर्ति नहीं हुई है।
बी एस गहलोत प्रभारी नि:शुल्क दवा

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-डॉ. आरके माहेश्वरी,पीएमओ, राजकीय चिकित्सालय, बाड़मेर

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