गुरुवार, 19 जुलाई 2012

अथः.रक्षम ग्रीन बाडमेर.....एक सार्थक पहल एक ख़ास रिपोर्ट


अथः.रक्षम 

चन्दनसिंह भाटी 

ग्रीन बाडमेर.....एक सार्थक पहल 

जीवन का आधार हैं वृक्ष,धरती का श्रृंगार हैं वृक्ष॥ 



आपके लोकप्रिय ई सूमाचार पत्र बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक का अंक जब आपके हाथ में होगा,बाडमेर जिला ग्रीन बाडमेर का आगाज कर चुका होगा।स्थानीय आर्दश  स्टेडियम में पोधारोपण के जरिऐ बाडमेर में नई इबादत लिखने की ओर अग्रसर हुऐ।जिला प्रासन की सार्थक पहल ओर सोच को सलाम।जिसकी सकारात्मक सोच के कारण एक बार फिर पर्यावरण सरंक्षण के प्रति आम जन जागरूक होने की ओर अग्रसर होगा।अफ़सोस की जिला कलेक्टर ने जितना उत्साह पोधारोपन को लेकर दिखाया बाड़मेर की जनता ने उतना ही निराश किया .



प्राचीनकाल में भारत में पर्यावरणीय सोच अद्भूत थी और पर्यावरण या प्रकृति के साथ अनुकरणीय सामंजस्य था।समभाव प्रर्दान के साथ साथ पेड.पौधों की पूजा की जाती थी।राजसथान में आज भी यह एक परम्परा के रूप में मौजूद हैं।

जीव जन्तुओं को विभिन्न देवताओं के वाहन मानते हुऐ आदर और श्रद्घा के साथ पूजा जाता था।गा्रमीण क्षेत्रों में आज भी ाणियों की पहचान पेड बने हुऐ हैं।इन्सान के जन्म से मौत तक का सफर पेड पोधो के साथ ही तय करना होता हैं।पैडों की रक्षा के लिऐं खेजडली में अमृतादेवी के नेतृत्व में किऐ आत्मबलिदान को कौन भूल सकता हैं।

आधुनिक काल में विभिन्न अधिनियमों के माध्यम से जल ,थल और आका को प्रदुशण रहित रखने के प्रयास किऐ जा रहे हैं।अतीत में झांके तो तत्करलीन उप वन सरंक्षक भरत तैमनी ओर पी के उपाध्याय को सलाम करुंगा जिन्होने रेगिस्तान को नखलिस्तान बनाने का सपना देखा ओर दस सपने को पूरा करने का सार्थक प्रयास कर बाडमेर में लाखों पोधे एक ही दिन एक ही समय रोपित कर अनूठा उदाहरण पो किया ।इन लोगों ने पोधे रोपित काने के बाद भी उनकी पूरी देख रेख की।जिसके कारण जिले में पौधों की जीवितता अनुपात नब्बे फीसदी से अधिक रही।यह कागजी आंकडे नही थे।

उनका प्रमाण आज भी सिणधरी,चौहटन ,गडरारोड,धोरिमन्ना,सिवाना,बालोतरा में देखे जा सकते हैं।पौधारोपण ना केवल समय की जरूरत हैं बल्कि इसके जरिऐ धार्मिक आस्था का ज्वर पुनः लोगों के दिलों में धरने का बेहतरीन अवसर हैं।नैतिक ओर सामाजिक प्र्यावरणीय दायित्व समझातें हुऐ आम जन में स्पश्ट भावना उभरनी चाहिऐं कि प्र्यावरण ईवर हैं,पर्यावरण ही धर्म हैं,पर्यावरण ही पूजा हैं,पर्यावरण ही जीवन का आधार हैं।


आजकल दो चार पोधे रोप कर फोंटों खींचकर समाचार पत्रों में वाह वाही कराने वालों की अधिकता हो जाने से वास्तविक पर्यावरण प्रेंमी खामोा हो गऐं।ऐसी संस्थाओं द्घारा बीते पांच सालों में लगाऐं गयें पौधों की वास्तविक स्थिति जिला प्रासन जॉच के वास्तविकता सामने आ जाऐगी।दूर जाने की जरूरत नहीं कलेक्टर कार्यालस परिसर में बीते सालों में हजारों पौधें रोपे गऐ थें।प्रासनिक अधिकारीयों की दनके देखरेख की जिम्मेदारिया। कागजों में तैयार की थी ,आज दन पौधें का अस्तित्व ही नही हैं।ऐसे ही अगर खानापूर्ती और सरकारी लक्ष्य पूर्ति की गरज से जिला प्रासन पौधे लगा रहा हैं तो इस नौटंकी को बन्द कर देना चाहिऐ।मनरेगा में र्नसरी स्थापना के साथ पर्यावरण सांक्षण की कई योजनाओं को कागजों में दफन कर लिया गया।जिला कलेक्टर डॉ वीणा प्रधान कर नियत साफ लगती हैं।उनके मन में पौधें और पर्यावरण के प्रति दृ संकल्पता नजर आती हैं।उन्हें मावरा हैं कि समाचार पत्रों में महज फोटों खींचवानें वाली संस्थओं से किनारा करें क्योंकि ये लोग फिर हजारों पौधों की भ्रूण हत्या करेंगें।

बाडमेर पर्यावरणीय दुश्टि से काफी पिछडा हैं।आवयक्ता हैं आमजन को जागरूक करने की।आम आदमी जागेगा तभी यफल पौधरोपण होगा।सरकारी योजनाओं में बनें लाखों टांकों कें आगोर में पाधारोपण के आदों की कितनी पालना हुई यह जिला प्रासन बता पाऐगा।नहीं।बीते सालों मनरेगा में पौधरोपण का काम पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों को दिऐ गऐ थे।क्या हश्र हुआ उन पौधों का ।पंचायत समितियों की चाहरदीवारी में पौधे सड गऐ या जल गये।कभी जिला प्रायन या जिला परिशद ने विकास अधिकारियों और ग्राम सेवकों से इस बारें में पूछा।बजट आया और बन्ट गया मगर पौधे नही लगे।प्रासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारी के साथ गैर जिम्मेदारी का दण्ड भी साथ में तय करें ।

मशवरा...जिला कलेक्टर को पौधरोपण के लिऐं पूरे जिले में एके दिन और एक समय निचत कर एक साथ लाखों पौधे रोपित करनें का लक्ष्य निधारित कर सार्थक पहल करनी चाहिऐ जिससे समाज ओर जिलें में ऐक व्यापक संदो प्र्यावरण जागरूकता का जाऐं।

आम जनता ,युवा वर्ग तथा छात्र वर्ग को अभियान से जोडनें का प्रयास किया जाना चाहिऐ अन्यथा ग्रीन बाडमेर का हश्र साफ दिखाई दे रहा हैं।निसंदेह मनुश्य सर्वश्रेश्ठ प्राणी हैं।मनुश्यसंयम,सादगी,नैतिकता,दायित्व,समानता,भातृत्व एवं प्रकृति के अनुकूलन के साथ ही श्रेश्ठ अन सकता हैं।वस्तुतः भारतीय दार्न की वसुधैव कुंटुम्बकम की अवधरण को सही अर्थों में समझकर अनुकरण करनें में ही पृथ्वी,प्रकृति एवं मानव का कल्याण सम्भव हो सकता हैं।

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