इंदिरा की आंख से कांप उठता था पाक
मुंबई। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तारीफ करते हुए कहा है कि लिखा है कि इंदिरा की त्योरियां चढ़ते ही पाकिस्तान कांप उठता था। ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना में "लातों के भूत बातों से नहीं मानते" शीर्षक से संपादकीय में लिखा है कि पाकिस्तान से दुश्मनी हिंदुस्तान की मजबूरी है। पाकिस्तान का जन्म ही हिंदुस्तान के द्रोह की बुनियाद पर हुआ है। उसकी दुश्मनी का परिणाम हमें बीता साठ सालों में लगातार भोगना पड़ा है।
महाराष्ट्र के बीड़ जिले का रहने वाला आतंकी सैयद जबीउद्दीन उर्फ अबू हमजा उर्फ अबू जिंदाल हिंदुस्तान से हथियारों की बरामदगी के बाद फरार हो जाता है। पाकिस्तान जाकर उसे वहां की नागरिकता और पासपोर्ट मिल जाता है। वह जिंदाल से रियासत अली बन जाता है। क्या पाकिस्तान के सरकारी तंत्र के बिना यह संभव था? जब उसे सऊदी अरब में गिरफ्तार किया गया तो पाकिस्तान ने उसे अपना नागरिक बताकर बचाने की कोशिश की। रियासत अली के लिए पाकिस्तान का यह प्रेम क्या आईएसआई के दबाव के बिना संभव है? यह वहां के आतंकियों के आका के रूप में काम कर रही आईएसआई या सत्ता में बैठे लोगों के बिना संभव नहीं है।
सारे ठोस सबूत होने के बाद हिंदुस्तान को पाकिस्तान से सीधी बात करनी चाहिए कि वह मुंबई हमले में शामिल आतंकियों को ईमानदारी से सौंपेगा या फिर भारत की संप्रभुता पर प्रहार करने के लिए जंग झेलेगा। ठाकरे लिखते हैं कि अगर आज इंदिरा गांधी का शासनकाल होता तो भारतीय राजनय की भाषा कुछ इसी प्रकार होती। इंदिरा गांधी हिंदुस्तानी थी। इसलिए उनके अंतर्मन में हिंदुस्तानियों की मौत पर प्रतिशोध का भाव उठता था। इंदिरा की त्योरियां चढ़ेते ही पाक कांप जाता था। मुंबई हमले के बाद प्रणब मुखर्जी ने ऎसी ही भाषा बोली थी तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी आईएसआई के तत्कालीन चीफ शुजा पाशा को भारत भेजने पर राजी हुए थे। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढीले रवैए के कारण जरदारी पलट गए।
मुंबई। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तारीफ करते हुए कहा है कि लिखा है कि इंदिरा की त्योरियां चढ़ते ही पाकिस्तान कांप उठता था। ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना में "लातों के भूत बातों से नहीं मानते" शीर्षक से संपादकीय में लिखा है कि पाकिस्तान से दुश्मनी हिंदुस्तान की मजबूरी है। पाकिस्तान का जन्म ही हिंदुस्तान के द्रोह की बुनियाद पर हुआ है। उसकी दुश्मनी का परिणाम हमें बीता साठ सालों में लगातार भोगना पड़ा है।
महाराष्ट्र के बीड़ जिले का रहने वाला आतंकी सैयद जबीउद्दीन उर्फ अबू हमजा उर्फ अबू जिंदाल हिंदुस्तान से हथियारों की बरामदगी के बाद फरार हो जाता है। पाकिस्तान जाकर उसे वहां की नागरिकता और पासपोर्ट मिल जाता है। वह जिंदाल से रियासत अली बन जाता है। क्या पाकिस्तान के सरकारी तंत्र के बिना यह संभव था? जब उसे सऊदी अरब में गिरफ्तार किया गया तो पाकिस्तान ने उसे अपना नागरिक बताकर बचाने की कोशिश की। रियासत अली के लिए पाकिस्तान का यह प्रेम क्या आईएसआई के दबाव के बिना संभव है? यह वहां के आतंकियों के आका के रूप में काम कर रही आईएसआई या सत्ता में बैठे लोगों के बिना संभव नहीं है।
सारे ठोस सबूत होने के बाद हिंदुस्तान को पाकिस्तान से सीधी बात करनी चाहिए कि वह मुंबई हमले में शामिल आतंकियों को ईमानदारी से सौंपेगा या फिर भारत की संप्रभुता पर प्रहार करने के लिए जंग झेलेगा। ठाकरे लिखते हैं कि अगर आज इंदिरा गांधी का शासनकाल होता तो भारतीय राजनय की भाषा कुछ इसी प्रकार होती। इंदिरा गांधी हिंदुस्तानी थी। इसलिए उनके अंतर्मन में हिंदुस्तानियों की मौत पर प्रतिशोध का भाव उठता था। इंदिरा की त्योरियां चढ़ेते ही पाक कांप जाता था। मुंबई हमले के बाद प्रणब मुखर्जी ने ऎसी ही भाषा बोली थी तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी आईएसआई के तत्कालीन चीफ शुजा पाशा को भारत भेजने पर राजी हुए थे। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढीले रवैए के कारण जरदारी पलट गए।
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