सोमवार, 11 जून 2012

"जानवर" से बदत्तर जी रहा है "इंसान"

"जानवर" से बदत्तर जी रहा है "इंसान"

बाड़मेर। बालोतरा-सिवाना का मुख्य मार्ग। नाकोड़ा, आसोतरा, जसोल से जुड़ा होने से व्यस्ततम मार्ग। यहां आने जाने वाले हजारों लोगों को रोज एक इंसान नजर आता है। नंगे बदन भरी दुपहरी में तपता,तड़पता और तरसता। हजारों निगाहें इसे देखती है लेकिन "इनायत" किसी किसी की। मानसिक विक्षिप्तों को बेडियों से मुक्त करवाने, जरूरतमंदों की मदद करने और बेसहारों की हरसंभव सहायता करने के दावा करने वाले तमाम प्रशासनिक अधिकारी भी इस मार्ग से गुजरते है, लेकिन ध्यान कोई नहीं देता। लिहाजा यह जिंदगी पशुओं से बदत्तर जीवन जीने को मजबूर है।

ऎसा आज से नहीं है। पांच-छह साल से यह मानसिक विक्षिप्त इस जगह पर बैठा है। दिमागी संतुलन खो चुके इस व्यक्ति ने इस जगह को नहीं छोड़ा है। पांच साल में जोरदार बारिश, कड़ाके की सर्दी और कड़ी धूप, आंधी, लू तमाम मौसम बीते है, लेकिन इसने ठौर नहीं बदली है।

कुछ इतनी मदद
बताते है कि कुछ धार्मिक प्रवृत्ति व मानवीयता रखने वाले लोग इसको पानी पिलाने और खाना खिलाने का ध्यान रखत है। कपड़े पहनाने के जतन हुए लेकिन इसने विफल कर दिया।  वहीं ऎसे मानसिक विक्षिप्त जो सालों से जंगलों में बंधे थे उनको छुड़वाया और उपचार के लिए भेजा। दर्जनों को उपचार मिला और वे ठीक हो गए। इससे काफी राहत मिली थी। इन दिनों फिर ऎसे लोग बड़ी संख्या में नजर आ रहे है। इनको उपचार की दरकार है।

यह ठीक नहीं
शहर के व्यस्त मार्ग पर एक व्यक्ति नंगे बदन पांच सालों से बैठा है और हर आने जाने वालों को नजर आता है तो यह ठीक नहीं है। यह इंसानियत की तौहीन है। इसको लेकर किसी भी स्तर पर प्रयास होना चाहिए। ऎसी संस्थाएं जहां इन लोगों की मदद होती है पता लगाकर इसको भिजवाया जाए।
- एडवोकेट पुरूषोत्तम सोलंकी,
समाजसेवी

नजर ही नहीं आया
हमें तो आज तक नजर नहीं आया। न नगरपालिका या किसी व्यक्ति ने शिकायत की है। जानकारी मिली तो व्यवस्था करेंगे।
- कमलेश अंबूसरिया,
उपखण्ड अधिकारी बालोतरा

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