मौत के बाद मिली महामहिम की "माफी"
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मौत की सजा पाए 35 कैदियों की सजा को उम्रकैद में बदल कर सबसे दयालु महामहिम बनने के साथ ही एक मरे हुए कैदी को जीवनदान देने का अनोखा मामला भी सामने आया है। शुक्रवार को इसका खुलासा तब हुआ जब 2 जून को 4 और लोगों को माफी देने की खबर आई। इन चार में एक शख्स कर्नाटका का बंधु बाबुराव तिड़के भी शामिल था, जिसकी मौत करीब 5 साल पहले ही हो चुकी है।
सदाशिव अप्पना मठ के स्वामी के रूप में तिड़के ने 16 वर्ष की एक स्कूली छात्रा का अपहरण करके बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी थी। 31 साल का तिड़के एचआईवी पॉजिटिव था और 18 अक्टूबर 2007 को उसकी मौत हो चुकी है। जेल प्रशासन और राज्य सरकार की माने तो तड़के की माफी की फाइल महामहिम को करीब 2-3 साल पहले भेजी गई थी, इसके बाद तड़के की मौत की सूचना भी केन्द्र को भेज दी गई थी।
इतनी बड़ी चूक कैसे?
केन्द्रीय गृह मंत्रालय की सलाह पर आधारित महामहिम की इस माफी पर अब कई सवाल उठ रहे हैं। क्षमादान में इतनी बड़ी चूक आखिर कैसे हुई? यह लापरवाही है या फिर जल्दबाजी? अब सवाल गृहमंत्रालय की संवेदनशीलता पर उठ रहे हैं जिसने 5 साल पहले मारे गए शख्स के जीवनदान की फाइल राष्ट्रपति तक पहुंचाई।
सुप्रीम कोर्ट भी हैरत में
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील की विदाई की घडियां करीब आ रही हैं। उनका कार्यकाल 25 जुलाई को पूरा हो रहा है। उनका कार्यकाल रिकॉर्ड संख्या में मुजरिमों को फांसी के फंदे से बचाने के लिए याद किया जाएगा। इनमें से कई मुजरिम तो ऎसे हैं, जिनके जुर्म बेहद संगीन रहे और उनके बारे में सुनकर सुप्रीम कोर्ट भी हैरत में पड़ गया।
पाटील का रिकॉर्ड
तमिलनाडु का गोविंद स्वामी पहला ऎसा मुजरिम था, जिसने पाटील के क्षमादान के विशेषाधिकार का सर्वप्रथम लाभ उठाया। उसे 1984 में अपने पांच रिश्तेदारों की सोते समय बर्बर तरीके से हत्या के जुर्म में फांसी की सजा सुनाई गई थी। उसने 22 वर्ष अपनी मौत की सजा के इंतजार में बिताए। तीन बार उसकी दया याचिका खारिज हुई। अंतत: 31 दिसंबर 2009 को जारी आदेश के बाद वह कोयंबटूर में नया जीवन जी रहा है।
इसके बाद क्षमादान का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसमें पाटील ने रिकॉर्ड बना दिया। उन्होंने 35 मुजरिमों को सुनाई गई फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। देश के किसी भी राष्ट्रपति ने इतने बड़े पैमाने पर संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत मिले अधिकार का उपयोग नहीं किया। पाटील ने जिन मुजरिमों के लिए अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया, उनमें से कई ने सामूहिक हत्या, अपहरण, दुष्कर्म और बच्चों की हत्या जैसे संगीन जुर्मो को अंजाम दिया।
क्षमादान का अधिकार
अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को किसी मुजरिम की सजा को बदलने, क्षमा करने, लंबित रखने या राहत देने का पूर्ण अधिकार देता है, भले ही यह सजा फांसी हो। कोई भी फैसला करने से पहले मंत्रिपरिषद की सिफारिशों का ध्यान रखना पड़ता है।
अन्य राष्ट्रपतियों का रूख
शंकरदयाल शर्मा (1992-97) : 14 दया याचिकाएं पेश की गई थीं। इनमें से उन्होंने किसी को भी क्षमादान के योग्य नहीं माना था।
केआर नारायणन (1997-2002) : 10 दया याचिकाएं विचारार्थ आई थीं। उन्होंने इन्हें निपटाने के बजाय देरी करने की रणनीति अपनाई।
एपीजे अब्दुल कलाम (2002-07) : 25 दया याचिकाएं आई। उन्होंने धनंजय चटर्जी की याचिका खारिज कर दी थी। उसे फांसी हुई। एक की मौत की सजा को उम्रकैद में बदला था। बाकी याचिकाएं लौटा दी गईं।
समीक्षा का अधिकार :
विधि विशेषज्ञ उदय यू ललित के अनुसार यदि यह पाया जाता है कि क्षमादान का गलत रूप में या नाजायज तौर पर इस्तेमाल किया गया है तो न्यायपालिका को उसकी समीक्षा का अधिकार है।
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मौत की सजा पाए 35 कैदियों की सजा को उम्रकैद में बदल कर सबसे दयालु महामहिम बनने के साथ ही एक मरे हुए कैदी को जीवनदान देने का अनोखा मामला भी सामने आया है। शुक्रवार को इसका खुलासा तब हुआ जब 2 जून को 4 और लोगों को माफी देने की खबर आई। इन चार में एक शख्स कर्नाटका का बंधु बाबुराव तिड़के भी शामिल था, जिसकी मौत करीब 5 साल पहले ही हो चुकी है।
सदाशिव अप्पना मठ के स्वामी के रूप में तिड़के ने 16 वर्ष की एक स्कूली छात्रा का अपहरण करके बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी थी। 31 साल का तिड़के एचआईवी पॉजिटिव था और 18 अक्टूबर 2007 को उसकी मौत हो चुकी है। जेल प्रशासन और राज्य सरकार की माने तो तड़के की माफी की फाइल महामहिम को करीब 2-3 साल पहले भेजी गई थी, इसके बाद तड़के की मौत की सूचना भी केन्द्र को भेज दी गई थी।
इतनी बड़ी चूक कैसे?
केन्द्रीय गृह मंत्रालय की सलाह पर आधारित महामहिम की इस माफी पर अब कई सवाल उठ रहे हैं। क्षमादान में इतनी बड़ी चूक आखिर कैसे हुई? यह लापरवाही है या फिर जल्दबाजी? अब सवाल गृहमंत्रालय की संवेदनशीलता पर उठ रहे हैं जिसने 5 साल पहले मारे गए शख्स के जीवनदान की फाइल राष्ट्रपति तक पहुंचाई।
सुप्रीम कोर्ट भी हैरत में
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील की विदाई की घडियां करीब आ रही हैं। उनका कार्यकाल 25 जुलाई को पूरा हो रहा है। उनका कार्यकाल रिकॉर्ड संख्या में मुजरिमों को फांसी के फंदे से बचाने के लिए याद किया जाएगा। इनमें से कई मुजरिम तो ऎसे हैं, जिनके जुर्म बेहद संगीन रहे और उनके बारे में सुनकर सुप्रीम कोर्ट भी हैरत में पड़ गया।
पाटील का रिकॉर्ड
तमिलनाडु का गोविंद स्वामी पहला ऎसा मुजरिम था, जिसने पाटील के क्षमादान के विशेषाधिकार का सर्वप्रथम लाभ उठाया। उसे 1984 में अपने पांच रिश्तेदारों की सोते समय बर्बर तरीके से हत्या के जुर्म में फांसी की सजा सुनाई गई थी। उसने 22 वर्ष अपनी मौत की सजा के इंतजार में बिताए। तीन बार उसकी दया याचिका खारिज हुई। अंतत: 31 दिसंबर 2009 को जारी आदेश के बाद वह कोयंबटूर में नया जीवन जी रहा है।
इसके बाद क्षमादान का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसमें पाटील ने रिकॉर्ड बना दिया। उन्होंने 35 मुजरिमों को सुनाई गई फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। देश के किसी भी राष्ट्रपति ने इतने बड़े पैमाने पर संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत मिले अधिकार का उपयोग नहीं किया। पाटील ने जिन मुजरिमों के लिए अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया, उनमें से कई ने सामूहिक हत्या, अपहरण, दुष्कर्म और बच्चों की हत्या जैसे संगीन जुर्मो को अंजाम दिया।
क्षमादान का अधिकार
अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को किसी मुजरिम की सजा को बदलने, क्षमा करने, लंबित रखने या राहत देने का पूर्ण अधिकार देता है, भले ही यह सजा फांसी हो। कोई भी फैसला करने से पहले मंत्रिपरिषद की सिफारिशों का ध्यान रखना पड़ता है।
अन्य राष्ट्रपतियों का रूख
शंकरदयाल शर्मा (1992-97) : 14 दया याचिकाएं पेश की गई थीं। इनमें से उन्होंने किसी को भी क्षमादान के योग्य नहीं माना था।
केआर नारायणन (1997-2002) : 10 दया याचिकाएं विचारार्थ आई थीं। उन्होंने इन्हें निपटाने के बजाय देरी करने की रणनीति अपनाई।
एपीजे अब्दुल कलाम (2002-07) : 25 दया याचिकाएं आई। उन्होंने धनंजय चटर्जी की याचिका खारिज कर दी थी। उसे फांसी हुई। एक की मौत की सजा को उम्रकैद में बदला था। बाकी याचिकाएं लौटा दी गईं।
समीक्षा का अधिकार :
विधि विशेषज्ञ उदय यू ललित के अनुसार यदि यह पाया जाता है कि क्षमादान का गलत रूप में या नाजायज तौर पर इस्तेमाल किया गया है तो न्यायपालिका को उसकी समीक्षा का अधिकार है।
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