जयपुर.मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही पदोन्नतियों में आरक्षण संबंधी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट का फैसला लागू नहीं कर पा रहे हों, लेकिन राज्यपाल माग्र्रेट आल्वा ने कहा है कि पदोन्नतियों में आरक्षण संबंधी फैसला हमें समुचित रूप से लागू करना है। राज्यपाल ने आश्वस्त किया है कि वे खुद भी पदोन्नतियों में आरक्षण मामले पर एकदम सजग हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने भी इश्यू पूरी तरह समझ लिया है।
राज्यपाल ने कहा कि महिलाओं के गर्भ में बेटा-बेटी परीक्षण संबंधी रिकॉर्ड मैनिप्युलेट किया जाता है। उन्होंने चिंता जताई कि सरकारी एजेंसियां ऐसा अपराध करने वालों के प्रति आंखें मूंदे रहती हैं। महामहिम ने भास्कर से प्रदेश के सभी मुद्दों पर बातचीत की- > जटिल मुद्दों पर फैसले लेने में सरकार सुस्त है। जैसे गुर्जर आरक्षण। आप इस समस्या के हल करने में कैसे मदद करेंगी? ये ऐसे मामले नहीं हैं कि इनका हल आसानी से निकल आए। इनमें बहुत से समूह शामिल हैं। उन सबके अपने हित हैं। अदालतों के बहुत से फैसले और आदेश हैं, जिनका पालन करना है।
सरकार इस मामले में चिंतित है और सबको मंजूर होने वाला समाधान तलाशने में जुटी है। > सरकार को इस बारे में क्या राय देंगी? मैं निश्चित तौर सरकार को रिस्पांस करूंगी, यदि उन्हें मेरी मदद जरूरत हुई या उन्होंने मुझसे मेरी राय मांगी। > कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाएंगी? ये बहुत गंभीर मामला है। लेकिन इसे जड़-मूल से उखाड़ फेंकना पुलिस, एनजीओ, लोकल एथॉरिटी, मीडिया की मदद और भागीदारी के बिना काफी मुश्किल है। (गर्भ में बेटा है या बेटी, इस परीक्षण के लिए) क्लिनिक ले जाई गई गर्भवती महिला भी उसी सामाजिक उपेक्षा की शिकार है, जैसी कि एक नन्ही बालिका। > तो फिर ये अपराध कैसे रुकेगा? इसीलिए तो मैंने कहा कि सामाजिक सोच बदलने की जरूरत है। इतने पॉपुलर सीरियल टीवी पर आते हैं, लेकिन क्या आपने किसी में देखा कि इस बारे में कुछ किया जा रहा है? > उत्तराखंड की तरह क्या राजस्थान में भी विधेयकों में संशोधन कराएंगी? मैंने वही किया, जो मुझे राज्य के हित में लगा। लोगों ने इसे सराहा।
मैंने तीन मुख्यमंत्रियों और दो दलों की सरकारों के साथ काम किया। मैंने दलगत सोच और स्थितियों से दूर रहकर काम किया। यही एक राज्यपाल का काम है। > राजस्थान की महिलाओं के लिए क्या सोचा है? ये सही है कि महिला अधिकारों पर संरक्षण संबंधी कानूनों को बनवाने में मेरी भूमिका रही है। पूरे देश में महिलाओं को इससे फायदा हुआ, लेकिन राजस्थान में तो अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। यहां कन्या हत्या, कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, कुपोषण और एनीमिया जैसी समस्याएं हैं। मेरे पास प्रशासनिक शक्ति तो नहीं है, लेकिन मैं सरकार पर जोर डाल सकती हूं कि महिलाओं-बेटियों के लिए और ज्यादा किया जाए। मैं चाहती हूं कि लोकल बॉडी और पंचायतों में चुनी गई महिलाओं को खास तौर पर प्रशिक्षित किया जाए और ज्यादा ताकत दी जाए, ताकि वे निचले स्तर पर बदलाव का प्रभावी माध्यम बनें। > आप यहां तीसरी महिला राज्यपाल हैं। प्रदेश की महिलाएं आपसे क्या अपेक्षा रखें? मैं यहां सिर्फ महिला होने के नाते नहीं आई हूं। यहां महिला हों या पुरुष, सभी के लिए अधिकारों की रक्षा और संविधान के प्रावधानों के संरक्षण का दायित्व निभाने आई हूं। मैं भरोसा दिला सकती हूं कि मैं महिलाओं पर विशेष ध्यान दूंगी।
राज्यपाल ने कहा कि महिलाओं के गर्भ में बेटा-बेटी परीक्षण संबंधी रिकॉर्ड मैनिप्युलेट किया जाता है। उन्होंने चिंता जताई कि सरकारी एजेंसियां ऐसा अपराध करने वालों के प्रति आंखें मूंदे रहती हैं। महामहिम ने भास्कर से प्रदेश के सभी मुद्दों पर बातचीत की- > जटिल मुद्दों पर फैसले लेने में सरकार सुस्त है। जैसे गुर्जर आरक्षण। आप इस समस्या के हल करने में कैसे मदद करेंगी? ये ऐसे मामले नहीं हैं कि इनका हल आसानी से निकल आए। इनमें बहुत से समूह शामिल हैं। उन सबके अपने हित हैं। अदालतों के बहुत से फैसले और आदेश हैं, जिनका पालन करना है।
सरकार इस मामले में चिंतित है और सबको मंजूर होने वाला समाधान तलाशने में जुटी है। > सरकार को इस बारे में क्या राय देंगी? मैं निश्चित तौर सरकार को रिस्पांस करूंगी, यदि उन्हें मेरी मदद जरूरत हुई या उन्होंने मुझसे मेरी राय मांगी। > कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाएंगी? ये बहुत गंभीर मामला है। लेकिन इसे जड़-मूल से उखाड़ फेंकना पुलिस, एनजीओ, लोकल एथॉरिटी, मीडिया की मदद और भागीदारी के बिना काफी मुश्किल है। (गर्भ में बेटा है या बेटी, इस परीक्षण के लिए) क्लिनिक ले जाई गई गर्भवती महिला भी उसी सामाजिक उपेक्षा की शिकार है, जैसी कि एक नन्ही बालिका। > तो फिर ये अपराध कैसे रुकेगा? इसीलिए तो मैंने कहा कि सामाजिक सोच बदलने की जरूरत है। इतने पॉपुलर सीरियल टीवी पर आते हैं, लेकिन क्या आपने किसी में देखा कि इस बारे में कुछ किया जा रहा है? > उत्तराखंड की तरह क्या राजस्थान में भी विधेयकों में संशोधन कराएंगी? मैंने वही किया, जो मुझे राज्य के हित में लगा। लोगों ने इसे सराहा।
मैंने तीन मुख्यमंत्रियों और दो दलों की सरकारों के साथ काम किया। मैंने दलगत सोच और स्थितियों से दूर रहकर काम किया। यही एक राज्यपाल का काम है। > राजस्थान की महिलाओं के लिए क्या सोचा है? ये सही है कि महिला अधिकारों पर संरक्षण संबंधी कानूनों को बनवाने में मेरी भूमिका रही है। पूरे देश में महिलाओं को इससे फायदा हुआ, लेकिन राजस्थान में तो अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। यहां कन्या हत्या, कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, कुपोषण और एनीमिया जैसी समस्याएं हैं। मेरे पास प्रशासनिक शक्ति तो नहीं है, लेकिन मैं सरकार पर जोर डाल सकती हूं कि महिलाओं-बेटियों के लिए और ज्यादा किया जाए। मैं चाहती हूं कि लोकल बॉडी और पंचायतों में चुनी गई महिलाओं को खास तौर पर प्रशिक्षित किया जाए और ज्यादा ताकत दी जाए, ताकि वे निचले स्तर पर बदलाव का प्रभावी माध्यम बनें। > आप यहां तीसरी महिला राज्यपाल हैं। प्रदेश की महिलाएं आपसे क्या अपेक्षा रखें? मैं यहां सिर्फ महिला होने के नाते नहीं आई हूं। यहां महिला हों या पुरुष, सभी के लिए अधिकारों की रक्षा और संविधान के प्रावधानों के संरक्षण का दायित्व निभाने आई हूं। मैं भरोसा दिला सकती हूं कि मैं महिलाओं पर विशेष ध्यान दूंगी।
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