बाड़मेर पेयजल संकट अधिकारियों की देंन
बाड़मेर। पानी के महकमे में अफसरों के हाथ में न तो जल संकट के समाधान का तरीका है, न ही उनके अधीन कार्यरत कर्मचारियों से निपटने का अधिकार है। छोटी-मोटी खरीददारी भी उनके हाथ में नहीं है। एक तरह से अफसर बस नाम के अफसर रह गए हैं। यूं तो पानी की समस्या सब जगह है, लेकिन सीमावर्ती जिले बाड़मेर में स्थिति कुछ ज्यादा ही जटिल है।प्रति व्यक्ति प्रतिदिन सत्तर लीटर पानी उपलब्ध करवाने का मानक भले ही तय है, लेकिन हकीकत यह है कि यह मानक कागजों तक ही सीमित है। जिला मुख्यालय पर बाड़मेर शहर में हालत यह है कि प्रति व्यक्ति चालीस लीटर से भी कम पानी मिल रहा है। ग्रामीण अंचलों में स्थिति काफी भयावह है। इतनी विकट स्थिति में भी जलदाय विभाग के अधिकारियों के पास न के बराबर अधिकार है। फील्ड में काम करने वाले कर्मचारियों की शिकायतें आम तौर पर अधिकारियों के पास आती रहती है, जिसमें अवैध कनेक्शन को शह देने, पानी की उपलब्धता के बावजूद समय पर आपूर्ति नहीं करने, डयूटी से गायब रहने, क्षतिग्रस्त पाइप लाइनों की समय पर मरम्मत नहीं करने, ग्राम स्तर पर स्थानीय राजनीति में उलझने और कुछ ढाणियों को जानबूझकर पेयजल से वंचित रखने के आरोप प्रमुख है। इतनी गंभीर शिकायतें होने के बाद भी कर्मचारी आश्वस्त रहते हैं कि अधिकारी उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते। उनके आश्वस्त रहने का सबसे बड़ा कारण अधिकारियों के पास अधिकार नहीं होना है। विभाग के सबसे निचले स्तर के कर्मचारी पम्प चालक, फीटर व हेल्पर को स्थानान्तरित करने का अधिकार कनिष्ठ अभियंता, सहायक अभियंता, अधिशासी अभियंता, यहां तक कि अधीक्षण अभियंता के पास भी नहीं है। उनका तबादला करने का अधिकार एक तरह से सरकार के पास ही है। अतिरिक्त मुख्य अभियंता स्तर का अधिकारी ही उनका तबादला कर सकता है। ऎसे में कार्मिक केवल राजनेताओं की गरज करते हैं और अधिकारियों को न तो गांठते हैं, न ही उनकी मानते हैं। हालांकि कई अधिकारी इससे खुश है क्योंकि वे मानते हैं कि ये अधिकार यदि उनके पास आ जाए तो वे तबादलों की राजनीति में उलझकर रह जाए। यही स्थिति कमोबेश खरीद संबंधी मामलों में है। निचले स्तर के अधिकारियो को केवल एक हजार रूपए तक की खरीद का अधिकार है। अकसर ऎसा होता है कि खरीद प्रक्रिया की जटिलता व अधिकारों पर अंकुश होने के चलते मोटरें व अन्य सामग्री खराब पड़ी रहती है और जलापूर्ति ठप हो जाती है। जहां तक पेयजल व्यवस्था सुचारू होने की बात है, उस पर प्रश्न चिन्ह लगा ही रहता है। प्रशासन व जन प्रतिनिधियों के साथ होने वाली बैठकों में शामिल होने वाले जलदाय विभाग अधिकारी ये मानकर चलते हैं कि प्रशासनिक अधिकारी व जन प्रतिनिधि जल संकट को लेकर खरी खोटी सुनाएंगे और तर्क वितर्क के जरिए वे पार नहीं पड़ सकते। लिहाजा उन्हें दृढ़ मानसिकता के साथ सब कुछ सुनना है और यस सर बोलना है। एक तरह से उनकी सोच बन चुकी है कि वे तो सुनाएंगे, हम सुनेंगे। 25 में से 20 हैण्डपम्प खराब
चौहटन. भीषण गर्मी के चलते उपखण्ड क्षेत्र के कई गांवों में इन दिनों पीने के पानी की गंभीर समस्या बनी हुई है। सूदूर बाखासर क्षेत्र के भंवरिया पंचायत क्षेत्र के गांवों में बने 25 हैण्डपम्पों में से 20 हैण्डपम्प खराब है। वहीं जलदाय विभाग द्वारा कमीशंड गांवों में टैंकरों के जरिए की जा रही जलापूर्ति में भी कर्मचारियों ठेकेदारों द्वारा गड़बड़ी किए जाने से ग्रामीणों को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
भंवरिया निवासी राजन खां ने जिला कलक्टर को पत्र भेजकर बताया कि क्षेत्र के भंवरिया, पांडरवाली, गीड़ा, गंगासरिया और अंबावा में भीषण गर्मी के मौसम में टैंकरों से होने वाली जलापूर्ति में भारी गड़बड़झाला हो रहा है तथा बड़ी संख्या में हैण्डपंप खराब पड़े होने से लोगों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है। भंवरिया सरपंच कलाराम भील ने इस समस्या से निजात की जिला कलक्टर से गुहार की है।
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