रविवार, 10 जून 2012

पूर्व नरेश गजसिंह के राजतिलक के 60 वां वर्ष, नुसरत के शिष्यों ने बंधा समां!



जोधपुर.मरुप्रदेश के सिंहद्वार सूर्यनगरी में शनिवार की शाम को पाकिस्तान के मशहूर कव्वाल रिजवान और मुअज्जम ने अपने रूहानी नातिया-कलाम और खूबसूरत नज्मों को ध्रुवपद की गरजती गमक तथा परंपरागत कव्वाली से यादगार बना दिया। विख्यात गायक एवं संगीतकार नुसरत फतेहअली खान के इन शिष्यों ने शास्त्रीय संगीत की लय के साथ कानों में रस घोलती गायकी की ऐसी जुगलबंदी पेश की कि सुधि श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।
 
खान बंधुओं ने ये जमीं जब न थी, ये जहां जब न था.चांद सूरज जब न थे, आसमां जब न था.जब न था कुछ यहां.था मगर तू ही तू ..अल्ला हू अल्ला हू.सांसों की माला पे सिमरूं मैं पी का नाम.तेरे दरवाजे पे चिलमन देखी नहीं जाती.मनवा जप ले अली अली.जिस्म अली जान अली जैसे सूफियाना कलाम.और ये जो हलका हलका सुरूर है.जो तेरी नजर का कुसूर है. जिसने शराब पीना सिखा दिया.तेरी बहकी बहकी निगाह ने मुझे शराबी बना दिया.जैसे श्रृंगार रस में घुले अनवर फिरोजपुरी के कलाम की प्रस्तुति से श्रोताओं को दाद देने पर मजबूर कर दिया।

पूर्व नरेश गजसिंह के राजतिलक के साठ वें वर्ष में मनाए जा रहे उत्सवों के तहत स्वरसुधा व मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित शाम-ए-कव्वाली में पाकिस्तान से आए कव्वाल रिजवान व मुअज्जम के साथ हारमोनियम पर राहत अली व मुश्ताक अहमद खान ने, तबले पर जफर अली व कोरस में मोहम्मद औरंगजेब, बशीर अली व तारीफ ने शिरकत की। पाकिस्तान से आए ग्रुप प्रबंधक अजीम अहमद का संस्थान अध्यक्ष आरके कासट व सचिव बीडी जोशी ने स्वागत किया। संचालन अनुराधा आडवानी व जफर खान सिंधी ने किया। ध्रुपद से रॉक व पॉप तक
बीबीसी एशिया अवार्ड व फ्रेंच म्यूजिकल अवार्ड पाने वाले रिजवान और मुअज्जम का कहना था कि सात सौ वर्ष से कव्वाली का परचम लहराने वाले उनके संगीत घराने ने दुनिया भर में कव्वाली को कुछ अलग तरह से ही पेश किया है। परंपरागत कव्वाली में ध्रुपद के पदों से लेकर शास्त्रीय आलाप और आधुनिक रॉक व पॉप तक का फ्यूजन करते हुए कव्वाली का रंग ही बदल डाला है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स में हाजिरी लगाकर जोधपुर पहुंचे रिजवान और मुअज्जम का कहना था कि संगीत को कोई सीमाओं मे नहीं बांध सकता।

मोहम्मद गजनवी के साथ भारत आए थे

रिजवान के पूर्वज आठ सौ साल पहले मोहम्मद गजनवी के साथ भारत आए व बाद में जालंधर में ही बस गए। पार्टीशन के बाद फैसलाबाद में बसने वाले इस संगीत घराने को नुसरत फतेहअली खां व उनके वालिद मुजाहिद अली खान ने कव्वाली के साथ हिंदुस्तानी संगीत को परवान चढ़ाया।

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