रविवार, 6 मई 2012

पो फटते ही प्यास बुझाने की मशक्कत

पो फटते ही प्यास बुझाने की मशक्कत

चांधन। पेयजल योजनाओं पर लाखों रूपए खर्च होने के बावजूद जिले में अभी भी ऎसे स्थान है जहां पानी का प्रबंध लोगों की पहली समस्या बना हुआ है। विशेषकर पशुधन के सहारे जीवन यापन करने वाले शाहगढ़ बल्ज के वासियों की दिनचर्या पानी की व्यवस्था से शुरू होती है व समाप्त भी पानी की चिंता के साथ ही होती है। राबलाऊ फकीरेवाला जैसे गांव में अभी भी पेयजल की किसी भी योजना से लाभाविंत नहीं हो पा रहे है। छितरी ढाणियों में बसे यहां के बाशिंदे अपने व पशुओं के लिए पानी की व्यवस्था में ही जीवन बिता रहे हैं।

एक कुआं बुझाता है प्यास
ग्राम पंचायत हरनाऊ के राजस्व गांव राबलाऊ फकीरेवाला में पेयजल का कोई सरकारी स्त्रोत नहीं है। लगभग 6 00 जनो की आबादी व 5000 से अधिक पशुधन वाले इस गांव की प्यास एकमात्र कुंए से बुझ रही है। गांव के पश्चिम दिशा में लगभग को किमी दूर स्थित इस कुएं से ग्रामीण दिनभर पानी ढोते रहते हैं। पानी निकासी के लिए अभी भी चड़स व रस्सी से काम लिया जाता है। अल सुबह भोर होते ही यहां ग्रामीण पानी निकासी का काम शुरू कर देते हैं। जो रात दस बजे तक चलता रहता है।

वरदान से कम नहीं
रेतीले धोरों के बीच बने करीब दो सौ फीट गहरे इस कुए में अथाह पानी है। यह कुआं राबलाऊ फकीरेवाला गांव के अलावा आसपास की अनेक ढाणियो की प्यास बुझाता है। ग्रामीण बारी-बारी से यहां से पानी निकालकर पखालों के माध्यम से अपनी ढाणियों मे पानी ले जाते हैं। इस कुए से एक साथ दो चड़सों से पानी निकाला जाता है। जिससे पूरे क्षेत्र के लोगों को पानी मिल जाता है।

गर्दभ बने सहारा
कुंए से पानी निकासी के लिए निकासी के लिए ग्रामीण गधों से काम ले रहे हैं। गहराई में पानी होने के कारण एकसाथ तीन गधों को जोतकर पानी की निकासी की जाती है। दूर-दूर रेतीले धोरों में स्थित ढाणियों तक पानी की ढुलाई भी गदर्भो के माध्यम से की जाती है। छोटी-छोटी पखाले लादकर ग्रामीण इनसे ही पानी का परिवहन करते हैं।

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