गुरुवार, 31 मई 2012

दादा का पोता भी बना दादा

jaipurबाड़मेर। जीवन के 104 बसंत देख चुके हाजी अब्दुल गनी खां का पोता हाजी रमजान खां भी दादा बन गया है। रमजान उसके पिता हाजी अब्दुल गफूर कहते हैं कि यह खुदा की नेमत है। अल्लाह का लाख-लाख शुक्र है कि वह हमारे कुनबे पर इस कदर मेहरबान है। 

बाड़मेर शहर के तेलियों का वास (वीर दुर्गादास मार्ग) में रहने वाले हाजी अब्दुल गनी खां के कुनबे में तीन दिन पहले बिटिया के रूप में आई नए मेहमान के जन्म पर मिठाइयां बंटी और खुदा का शुक्राना किया गया। नए मेहमान का नाम आमना खातून रखा गया है। आमना के पिता 22 वर्षीय सलीम ने अभी तक अपनी पुत्री का ठीक से दीदार भी नहीं किया। परिवार में दादा, परदादा, दादियां, परदादियां, बुआएं, नाना, नानियां इतने हैं कि सलीम की बारी ही नहीं आती। फिर उसे सबके सामने अपनी बिटिया का दीदार करने में संकोच भी होता है।


पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार


हाजी अब्दुल गनीखां (104) के पुत्र हाजी अब्दुल गफूर की उम्र 70 वष्ाü है। गफूर का पुत्र रमजान खां 42 का और रमजान का पुत्र सलीम 22 बारावफात का गवाह है। सलीम की पुत्री आमना तीन दिन की हो गई है। हाजी अब्दुल गनीखां के परिवार में कुल मिलाकर 120 से भी अघिक सदस्य हैं। चालीस वर्ष से अघिक उम्र के सदस्य हज कर चुके हैं और पूरा परिवार स्वस्थ व खुशहाल है।


दूध, दही व बाजरे की रोटी


परिवार के मुखिया हाजी अब्दुल गनी खां के दीर्घायु व स्वस्थ होने का एक ही राज है कि वे नशा नहीं करते। पूरे परिवार मे कोई चाय तक नहीं पीता। इस उम्र में भी गनी मस्जिद जाकर दिन में पांच बार नमाज अदा करते हैं और दूध, दही और बाजरे की रोटी खाते हैं। परिवार के अन्य सदस्य उनका अनुकरण करते हैं। मुस्लिम समाज के पूर्व सदर अशरफ अली कहते हैं कि यह परिवार वाकई खुशनसीब है और समाज के कामकाज में भी इनकी अग्रणी भूमिका रहती है। शायद इसी वजह से खुदा इतना मेहरबान है।

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