बाड़मेर लाशो के सौदागरों का शहर मानवीयता और इंसानियत शर्मसार हे
बाड़मेर पकिस्तान की सरहद से सता रेगिस्तानी जिला बाड़मेर जहां कभी लोक संस्कृति परम्पराए और मानवीयता हिलोरे मारती थी .आपसी सौहार्द और भाई चारा पहचान थी समय के साथ सब बदल रहा हे .बाड़मेर में तेल गैस की खोज में जब से कंपनिया आई हे वहां की मानवता और मानवीय संवेदनाओ को लोगो ने भूलाना शुरू कर दिया .पहले केयर्न फिर एल एंड टी .फिर जे एस डब्लू जैसी कंपनियों ने बाड़मेर की जनता के सामने पैसो का ऐसा खेल रचा की लोग उसके आवरण में खो गए कभी शगुन की जन्दगी जीने वाले थार वासी पैसो के पीछे भागने लगे .पैसा सही तरीके से आये या गलत तरीके से बस पैसा आना चाहिए .इस पैसे ने भोलीभाली जनता की मानवीय संवेदनाये और इंसानियत ख़त्म कर दी .वो दिन बाड़मेर की आबोहवा में ज़हर घोलने वाला पहला काला दिन था जब एक कंपनी में कार्यरत कार्मिक की हादसे में मौत हो गयी .इस मौत से विवाद उपजा की सम्बंधित कंपनी दोषी हे उसके खिलाफ मुक़दमा दर्ज कर कानूनी कार्यवाही की जाए .गाँव के मौजिज लोगो के बीच बात चली जो कंपनी और जिला प्रशासन तक गयी .कंपनी प्रबंधको ने कानूनी प्रावधानों से बचने के लिए मृतक लके आश्रित को नौकरी और 20 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोसना कर मामला शांत किया .यह घटना वाजिब थी कार्मिक था उसकी म्रत्यु का करते हुई कंपनी ने मुआवजा दे दिया।थोड़े दिनों बाद राज वेस्ट पॉवर प्लांट भादरेश में कंपनी की जे सी बी की टक्कर से गाय के बछड़े की मौत हो गयी .पूरा गाँव इस घटना को लेकर आन्दोलन रत हो गया आक्रोश फेल गया पुलिस ,प्रशासन पहुंचे .कंपनी के अधिकारियो जिला प्रशासन पुलिस प्रशासन तथा ग्रामीणों की समझौता वार्ता चली अंत में कंपनी ने गाय के बछड़े की मौत की जिम्मेदारी लेकर भरी मुआवजा लाखो में दिया .ईन दो घटनाओं ने बाड़मेर की जनता के मन में लालच भर दिया ,कंपनी में काम करे ना करे किसी हादसे में भी मौत हो जाए तो लोग रास्ता जाम कर शव को सड़क के बीचो बीच रख कर भारी मुआवजे की मांग कर सारी मानवता और इंसानियत तक को भूल जाते हें कंपनियों ने भी जनता की नब्ज पकड़ ली की जनता पैसे की लालची हे तुकडे दाल दो अपना कम करते जाओ बाड़मेर में आज लाशो को नहीं उठाना उस पर राजनीति करना ,लाश रख कर उसका अनुचित मुआवजा अनुचित तरीके से मांगना फितरत बन गयी हें शुक्तावार को अस्पताल में एक मासूम बचे की मौत हो गयी .हम भी अस्पताल पहुचें ,बचे के परिजनों से बात की तो बताया की डोक्टर ने गलत इंजेक्सन दिया जिससे बचे की मौत हो गयी ,हमारी मानवता जागी उनकी मदद की ठानी ,बाद में पता चला बचे के परिजनों ने पुलिस ,प्रशासन अस्पताल प्रशासन के सामने बचे की मौत पर मुआवजा मांगा जब तक मुआवजा नहीं दे तब तक शव नहीं उठाने की धमकिया दी इस घटना ने मुझे एक बार फिर झकझोर के रख दिया की बाड़मेर जो कभी मानवता और इंसानियत के लिए जाना जता था आज साड़ी मानवता इंसानियत पैसे के आगे ख़त्म हो गयी ,हम ऐसे तो नहीं थे की मृतक व्यक्ति की देह को जल्द से जल्द डाह करने की बजाय उसकी आत्मा को बीच सड़क कई दिनों तक छोड़ दे ,लाशो पर कितने अधिक पैसे कंपनियों से बटोरे जाए लाश पर सौदे तय होते हे .शव रख कर तीस लाख पेंतीस लाख की बोलिया लगाती हे .जिला प्रशासन पुलिस प्रशासन ऐसे मामलो में सख्ती बरतने की बजाये कंपनियों पर अपना दबाव बनाने में जुट जाते हे ,बहरहाल बाड़मेर में आदिवासी इलाको की माफिक मौताने ने मुआवजे का रूप ले कर इंसानियत और मानवता की सारी हदे पार कर ली
Really true one...........
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