शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

पढ़ी लिखी बहू को देखकर लोगों की सोच में बदलाव आने लगा

बदली सोच, आया बदलाव

बाड़मेर । शिक्षा की दृष्टि से पिछड़ी बाड़मेर जिले की चौहटन पंचायत समिति में पिछले तीन सालों में जोरदार बदलाव आया है। चार साल पहले इस इलाके में अल्पसंख्यक परिवारों की महज साढ़े पांच सौ बेटियां विद्यालय जा रही थी, अब यह आंकड़ा 6150 पहुंच गया है। पांचवीं के बाद बçच्चयों को विद्यालय नहीं भेजने वाले अभिभावक अब बेगटियों को आठवीं, दसवीं और बारहवीं तक पढ़ा रहे हैं। इस बदलाव की वजह है इसी समाज की पढ़ी लिखी बहू। जिसने प्रधान का पद संभालने के बाद लगातार महिलाओं से संपर्क किया और बेटियों को विद्यालय भेजने के लिए राजी किया।

एलएलबी कर चुकी शमा ने प्रधान बनने के बाद पहला उद्देश्य बालिका शिक्षा, विशेषकर अल्पसंख्यक व अनुसूचित जाति जनजाति समुदाय की बालिकाओं की शिक्षा को अपना ध्येय बना लिया। शमा ने सबसे पहले अपने गांव बुरहान का तला में सभी बालिकाओं को विद्यालय से जोड़ा और फिर पूरी पंचायत समिति में बालिका शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने लगी। वे जहां भी कार्यक्रम या समारोह में पहुंचती, दो-पांच बालिकाओं का नामांकन भी कराती। अपने समाज की पढ़ी लिखी बहू को देखकर लोगों की सोच में बदलाव आने लगा और अब नतीजा सामने है।

यह है स्थिति
वर्ष 2009-10 में 2323, 2010-11 में 3303, 2011-12 में 6150 अल्पसंख्यक वर्ग की बालिकाओं का नामांकन कक्षा एक से आठ तक हो चुका है।

साथियों को सिखाया दस्तखत
प्रधान ने पंचायत समिति की अन्य महिला सदस्यों को पहली बैठक में ही समझा दिया कि उनके रजिस्टर में अंगूठा नहीं होगा। इसके चलते आधी से ज्यादा सदस्यों ने दस्तखत सीख लिए।

प्रधानमंत्री करेंगे सम्मानित
अल्पसंख्यकों शिक्षा को लेकर किए गए प्रयासों और पंचायती राज में अहम भूमिका के लिए शमा खान को प्रधानमंत्री द्वारा सम्मानित किया जाएगा। शमा कहती है कि यह उनका नहीं, पढ़ने वाली तमाम अल्पसंख्यक वर्ग की बालिकाओं का सम्मान होगा।

दसवीं-बारहवीं में पहुंची बालिकाएं
इस वर्ष तीन बालिकाएं बारहवीं की और करीब पचास बालिकाएं दसवीं की परीक्षा दे रही हैं।

उल्लेखनीय परिवर्तन
अल्पसंख्यक बेटियों की शिक्षा में अचंभित परिवर्तन आया है। नामांकन इतना बढ़ना और पढ़ाई के लिए परिजनों के सहमत होने के पीछे प्रधान की समझाइश रंग लाई है।
केसरदान रतनू
ब्लॉक प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी, चौहटन

उद्देश्य बनाकर कार्य किया
मैं खुद एलएलबी हूं। मेरी शादी गांव में हुई। यहां आने के बाद शिक्षा का स्तर इतना कमजोर देखकर मन में टीस होती थी। इसके लिए अपने गांव से बुरहान का तला से शुरूआत की। उम्मीद है आने वाले सालों में आमूलचूल बदलावा आएगा। अभी मैं इकलौती स्नातक और एलएलबी डिग्रीधारक हूं, चार साल पांच साल में सौ से ज्यादा होंगी।
- शमां खान, प्रधान, चौहटन

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