इस शनिवार--21 अप्रैल,2012 को शनिश्चरी अमावस्या पर शनिदेव को करें प्रसन्न---
शास्त्रों के मुताबिक दण्डाधिकारी शनिदेव शुभ व मंगल विचार, व्यवहार और कर्मों को अपनाने वाले का मंगल ही करते हैं। जिससे शनि की इंसान पर ऐसी कृपा होती है कि सफलता, सुख, वैभव, भाग्य में आने वाली सारी बाधाओं का अंत होता है। इस तरह शनि की प्रसन्नता रंक को राजा बनाने वाली भी होती है।
यही कारण है कि 21 अप्रैल ,2012 को शनिश्चरी अमावस्या यानी शनिवार-अमावस्या के संयोग में शनि दशाओं जैसे साढ़े साती, ढैय्या में या शनि दोष से दु:ख-दुर्भाग्य से बचने और दूर करने के लिये शास्त्रों में बताए इस शनि मंगल मंत्र का पाठ बहुत ही अचूक फल देने वाला होगा।
जानिए, इस शुभ संयोग पर यह छोटे-सा शनि मंगल स्त्रोत व सरल शनि पूजा विधि ----
- शनिवार को सुबह व शाम जल में काले तिल डालकर स्नान के बाद यथासंभव काले या नीले वस्त्र पहन शनि मंदिर में शनि की काले पाषाण की चार भुजा युक्त मूर्ति का पवित्र जल से स्नान कराकर तिल या सरसों का तेल अर्पित करें।
काले तिल, काले या कोई भी फूल, काला वस्त्र, तेल से बने पकवान का भोग लगाकर नीचे लिखें शनि मंगल मंत्र स्त्रोत को नीले आसन पर बैठ सुख, यश, वैभव, सफलता व शनि पीड़ा से मुक्ति की कामना के साथ बोलें -
मन्द: कृष्णनिभस्तु पश्चिममुख: सौराष्ट्रक: काश्यप:
स्वामी नक्रभकुम्भयोर्बुधसितौ मित्रे समश्चाङ्गिरा:।
स्थानं पश्चिमदिक् प्रजापति-यमौ देवौ धनुष्यासन:
षट्त्रिस्थ: शुभकृच्छनी रविसुत: कुर्यात् सदा मंङ्गलम्।।
- यह मंत्र स्तुति बोलने के बाद धूप, तेल के दीप व कर्पूर से आरती करें व तेल के पकवान का प्रसाद ग्रहण करें व शनि का समर्पित किया काला धागा दाएं हाथ की कलाई या गले में पहने।
===============================
दशरथकृत शनि स्तोत्र-------
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण् निभाय च। नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च । नमो विशालनेत्रय शुष्कोदर भयाकृते॥2॥
नम: पुष्कलगात्रय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुख्रर्नरीक्ष्याय वै नम: । नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते। सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते। नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च । नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे । तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सि ् विद्याधरोरगा: । त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:॥9॥
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत । एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥
===================================
स्वामी विशाल चैतन्य(पंडित दयानंद शास्त्री )
मोब.—-09711060179(DELHI), Mob.No.-09024390067(RAJ.),
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें