.दुर्लभ व शर्मीला हमारा राज्य पक्षी गोडावण शोकलिया संरक्षित क्षेत्र में कब से है, इसके बारे में खुद वन विभाग ठीक से नहीं जानता। 1977 में अरब के शहजादे शेख बदर के बाड़मेर और जैसलमेर में गोडावण का शिकार करने के बाद इस पक्षी के बारे में लोगों को जानकारी मिली। या यूं भी कह सकते हैं कि शेख बदर के कारण ही गोडावण जाना गया।
सीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) मोहन लाल मीणा के मुताबिक गोडावण प्रदेश में कब से हैं, यह बताना मुश्किल है, लेकिन जब 1977 के आसपास अरब के शहजादे यहां शिकार को आए थे। अरब शहजादे लगातार शिकार के लिए यहां आते थे। इस पर वन्य जीव संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हर्षवर्धन आदि ने इसके खिलाफ आवाज उठाई और तब से ही वन विभाग भी इस दिशा में सक्रिय हुआ। राज्य सरकार से इसके शिकार को निषिद्ध कराया गया।
नर सुंदर और बड़ा होता है :
गोडावण का भोजन कीड़े मकोड़े हैं। नर और मादा की पहचान आसान भी है। नर शारीरिक रूप से बड़ा होता है। गर्दन सफेद रंग की होती है। मादा की गर्दन हल्के ग्रेविश रंग की होती है। दोनों साथ भी होते हैं, तब भी पहचाना जा सकता है।
कभी अवशेष नहीं मिले :
मीणा के मुताबिक आमतौर पर इस पक्षी की आयु 20 साल की होती है। लेकिन कभी किसी मृत पक्षी के अवशेष विभाग के हाथ नहीं लगे हैं।
लगातार कम हो रहे हैं :
गोडावण की संख्या दिनों दिन कम हो रही है। इसकी खास वजह है कि इसका हैबिटेट प्रभावित हो रहा है। हैबिटेट प्राइवेट लैंड है और वहां वन विभाग का असर नहीं होता।
छोटे क्लोजर बनाकर दी जा सकती है सुरक्षा :
मीणा के मुताबिक अब विभाग यह प्रयास कर रहा है कि वन खंडों की तर्ज पर ही गोडावण संरक्षण के लिए क्लोजर विकसित किए जाएं। इस एरिया की फेंसिंग कर दी जाए, ताकि गोडावण से संबंधित हैबिटेट विकसित हो सके। इस प्रयास में आमजन को भी सहायता देनी चाहिए।
राज्य पक्षी को दें जीने की जगह
मीणा के मुताबिक राज्य पक्षी गोडावण के हैबिटेट में नर का डिस्पले आकर्षक होता है। मादा को आकर्षित करने के लिए नर गोडावण भूमि से 5 फीट तक ऊंचा उठता है। इस डिस्पले से ही मादा गोडावण नर की ओर आकर्षित होती है और ब्रीडिंग शुरू होती है। विभिन्न कारणों से डिस्पले ग्रांउड कम हो रहे हैं। इसका असर ब्रीडिंग पर पड़ रहा है। लोगों को समझा रहे हैं कि गोडावण की हैबिटेट वाली एक दो पहाड़ी छोड़ दें, इससे डिस्पले प्रोपर होगा और ब्रीडिंग भी होगी।
डिस्पले पीरियड :
मार्च से सितंबर होता है। सामान्यतया बच्चा पहली बारिश से पूर्व ही निकल आता है। अप्रैल, मई और जून में गोडावण का ब्रीडिंग पीरियड होता है। अंडा सामान्य अंडों से बड़ा होता है।
एक नर के साथ 5-7 मादाएं
वनकर्मी राजेंद्र सिंह के मुताबिक गोडावण रंगीन मिजाज पक्षी है। गोडावण नर भी बाघ की तर्ज पर अपना घर खुद बनाता है। एक नर के साथ सामान्यत: 5-7 मादाएं होती हैं। कोई अन्य नर इनके इलाके में घुसे तो गोडावण हू-हू करके चेतावनी देता है। वे शोकलिया में ही एक नर को 10-12 साल से देख रहे हैं। दो साल से एक अन्य नर झड़वासा, भटियानी और कुम्हारिया में नजर आता है।
बिना दूरबीन के कैसे गिनेंगे वनकर्मी
राज्य पक्षी गोडावण की मंगलवार को होने वाली गणना वनकर्मी बिना दूरबीन के ही करेंगे। विभाग की ओर से शोकलिया समेत 39 गांवों में गणना कराई जाएगी। बिना संसाधनों के होने वाली गणना कितनी सटीक होगी, यह देखना होगा।
विभाग की ओर से गणना के लिए शोकलिया और आसपास के 39 गांवों में 76 वनकर्मी लगाए हैं। लेकिन इन वनकर्मियों को दूरबीन उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। विभाग ने यह कह कर हाथ खड़े कर दिए हैं कि निदेशालय से भी दूरबीन नहीं मिली है। मंडल वन कार्यालय में भी दूरबीन उपलब्ध नहीं है। दो-तीन दूरबीन हैं, वो वनकर्मियों को उपलब्ध करा दी गई है। शेष कर्मी बिना दूरबीन के ही कार्य करेंगे।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि गोडावणों की गणना करने निकले वनकर्मी अनुमान से ही पता लगा सकेंगे कि उन्हें सामने नजर आ रही गोडावण नर है या मादा। बहुत दूर उड़ रहे पक्षी को देख भी पाएंगे या नहीं, इसमें भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है। इसी प्रकार किसी झाड़ी में छिपे गोडावण को भी बिना दूरबीन वनकर्मी नहीं देख पाएंगे।
सीसीएफ करेंगे निगरानी
वन विभाग की ओर से मंगलवार को शोकलिया में गोडावणों की गणना कराई जाएगी। गणना के लिए लगाए सभी वनकर्मियों को सोमवार को संबंधित पाइंटों पर रवाना कर दिया गया है। मुख्य वन संरक्षक(सीसीएफ) डॉ. सुरेश चंद्र समेत विभिन्न अधिकारी गणना की मॉनिटरिंग करेंगे।
डॉ. सुरेश चंद्र के मुताबिक इस बार प्रयास यही किया जा रहा है कि गोडावणों की गिनती सटीक हो। कुछ महीने पूर्व मध्यप्रदेश और देहरादून का एक दल शोकलिया पहुंचा था। इस दल ने भी गोडावणों की सही संख्या की आवश्यकता बताई थी। इसे देखते हुए इस बार 39 गांवों में वनकर्मी लगाए गए हैं। यह सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक गणना करेंगे।
प्रत्येक एक किलोमीटर के एक छोर से दूसरे छोर पर दो वनकर्मी लगाए गए हैं। ये वनकर्मी 500 मीटर का एरिया कवर करेंगे। कुछ पुराने वनकर्मी मौके पर ही रहेंगे। डीएफओ सुधीर जैन के मुताबिक क्षेत्र में लगाए गए वनकर्मियों को बीर नर्सरी से शाम को रवाना कर दिया गया है। मंगलवार को मौके पर सीसीएफ डॉ. सुरेश के अतिरिक्त डॉ. लक्ष्मण सिंह और एसीएफ कर्ण सिंह भी रहेंगे।
दिल्ली से आई हैं जीव प्रेमी जया
इधर, शोकलिया में हो रही गणना को देखने और प्रक्रिया समझने के लिए एक वन्य जीव प्रेमी जया भी यहां पहुंची हैं। जया ने ‘भास्कर’ से बातचीत में बताया कि महाराष्ट्र के शोलापुर में भी गोडावणों की संख्या काफी होती थी। लेकिन अब यह पक्षी वहां लुप्तप्राय: हो चुका है। राजस्थान में इस पक्षी के संरक्षण के लिए प्रयास तेजी से होना चाहिए। यहां वनकर्मी किस प्रकार गणना करते हैं, इसके बारे में जानकारी लेने वे यहां पहुंची हैं।
अब नरेगा के तहत गोडावणों के लिए विकसित हो सकेगा ग्रास लैंड
शोकलिया में गोडावण के संरक्षण के लिए वन विभाग 40 हैक्टेयर में ग्रास लैंड विकसित करेगा। कलेक्टर के निर्देश पर विभाग ने मनरेगा के तहत इसकी कार्य योजना तैयार कर जिला परिषद को भेज दी है। डीएफओ सुधीर जैन ने बताया कि गोडावण के संरक्षण व प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए यह कार्य कराया जाएगा। विभाग द्वारा भूमि का चिह्न्ीकरण किया जा चुका है। बारिश के मौसम में यह कार्य कराया जाएगा।
ग्रास लैंड विकसित होने से क्षेत्र में रहने वाले गोडावणों के भोजन की समस्या का समाधान हो सकेगा। लंबे समय से यहां ग्रास लैंड विकसित करने की आवश्यकता जताई जा रही है। पिछले वर्ष नवंबर में कलेक्ट्रेट में हुई बैठक में भी टूरिज्म एंड वाइल्ड लाइफ के सदस्यों ने भी पक्षियों के संरक्षण के लिए ग्रास लैंड विकसित करने के लिए कहा था। इस पर कलेक्टर ने वन अधिकारियों को प्रस्ताव तैयारी के निर्देश दिए थे।
सीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) मोहन लाल मीणा के मुताबिक गोडावण प्रदेश में कब से हैं, यह बताना मुश्किल है, लेकिन जब 1977 के आसपास अरब के शहजादे यहां शिकार को आए थे। अरब शहजादे लगातार शिकार के लिए यहां आते थे। इस पर वन्य जीव संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हर्षवर्धन आदि ने इसके खिलाफ आवाज उठाई और तब से ही वन विभाग भी इस दिशा में सक्रिय हुआ। राज्य सरकार से इसके शिकार को निषिद्ध कराया गया।
नर सुंदर और बड़ा होता है :
गोडावण का भोजन कीड़े मकोड़े हैं। नर और मादा की पहचान आसान भी है। नर शारीरिक रूप से बड़ा होता है। गर्दन सफेद रंग की होती है। मादा की गर्दन हल्के ग्रेविश रंग की होती है। दोनों साथ भी होते हैं, तब भी पहचाना जा सकता है।
कभी अवशेष नहीं मिले :
मीणा के मुताबिक आमतौर पर इस पक्षी की आयु 20 साल की होती है। लेकिन कभी किसी मृत पक्षी के अवशेष विभाग के हाथ नहीं लगे हैं।
लगातार कम हो रहे हैं :
गोडावण की संख्या दिनों दिन कम हो रही है। इसकी खास वजह है कि इसका हैबिटेट प्रभावित हो रहा है। हैबिटेट प्राइवेट लैंड है और वहां वन विभाग का असर नहीं होता।
छोटे क्लोजर बनाकर दी जा सकती है सुरक्षा :
मीणा के मुताबिक अब विभाग यह प्रयास कर रहा है कि वन खंडों की तर्ज पर ही गोडावण संरक्षण के लिए क्लोजर विकसित किए जाएं। इस एरिया की फेंसिंग कर दी जाए, ताकि गोडावण से संबंधित हैबिटेट विकसित हो सके। इस प्रयास में आमजन को भी सहायता देनी चाहिए।
राज्य पक्षी को दें जीने की जगह
मीणा के मुताबिक राज्य पक्षी गोडावण के हैबिटेट में नर का डिस्पले आकर्षक होता है। मादा को आकर्षित करने के लिए नर गोडावण भूमि से 5 फीट तक ऊंचा उठता है। इस डिस्पले से ही मादा गोडावण नर की ओर आकर्षित होती है और ब्रीडिंग शुरू होती है। विभिन्न कारणों से डिस्पले ग्रांउड कम हो रहे हैं। इसका असर ब्रीडिंग पर पड़ रहा है। लोगों को समझा रहे हैं कि गोडावण की हैबिटेट वाली एक दो पहाड़ी छोड़ दें, इससे डिस्पले प्रोपर होगा और ब्रीडिंग भी होगी।
डिस्पले पीरियड :
मार्च से सितंबर होता है। सामान्यतया बच्चा पहली बारिश से पूर्व ही निकल आता है। अप्रैल, मई और जून में गोडावण का ब्रीडिंग पीरियड होता है। अंडा सामान्य अंडों से बड़ा होता है।
एक नर के साथ 5-7 मादाएं
वनकर्मी राजेंद्र सिंह के मुताबिक गोडावण रंगीन मिजाज पक्षी है। गोडावण नर भी बाघ की तर्ज पर अपना घर खुद बनाता है। एक नर के साथ सामान्यत: 5-7 मादाएं होती हैं। कोई अन्य नर इनके इलाके में घुसे तो गोडावण हू-हू करके चेतावनी देता है। वे शोकलिया में ही एक नर को 10-12 साल से देख रहे हैं। दो साल से एक अन्य नर झड़वासा, भटियानी और कुम्हारिया में नजर आता है।
बिना दूरबीन के कैसे गिनेंगे वनकर्मी
राज्य पक्षी गोडावण की मंगलवार को होने वाली गणना वनकर्मी बिना दूरबीन के ही करेंगे। विभाग की ओर से शोकलिया समेत 39 गांवों में गणना कराई जाएगी। बिना संसाधनों के होने वाली गणना कितनी सटीक होगी, यह देखना होगा।
विभाग की ओर से गणना के लिए शोकलिया और आसपास के 39 गांवों में 76 वनकर्मी लगाए हैं। लेकिन इन वनकर्मियों को दूरबीन उपलब्ध नहीं कराई गई हैं। विभाग ने यह कह कर हाथ खड़े कर दिए हैं कि निदेशालय से भी दूरबीन नहीं मिली है। मंडल वन कार्यालय में भी दूरबीन उपलब्ध नहीं है। दो-तीन दूरबीन हैं, वो वनकर्मियों को उपलब्ध करा दी गई है। शेष कर्मी बिना दूरबीन के ही कार्य करेंगे।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि गोडावणों की गणना करने निकले वनकर्मी अनुमान से ही पता लगा सकेंगे कि उन्हें सामने नजर आ रही गोडावण नर है या मादा। बहुत दूर उड़ रहे पक्षी को देख भी पाएंगे या नहीं, इसमें भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है। इसी प्रकार किसी झाड़ी में छिपे गोडावण को भी बिना दूरबीन वनकर्मी नहीं देख पाएंगे।
सीसीएफ करेंगे निगरानी
वन विभाग की ओर से मंगलवार को शोकलिया में गोडावणों की गणना कराई जाएगी। गणना के लिए लगाए सभी वनकर्मियों को सोमवार को संबंधित पाइंटों पर रवाना कर दिया गया है। मुख्य वन संरक्षक(सीसीएफ) डॉ. सुरेश चंद्र समेत विभिन्न अधिकारी गणना की मॉनिटरिंग करेंगे।
डॉ. सुरेश चंद्र के मुताबिक इस बार प्रयास यही किया जा रहा है कि गोडावणों की गिनती सटीक हो। कुछ महीने पूर्व मध्यप्रदेश और देहरादून का एक दल शोकलिया पहुंचा था। इस दल ने भी गोडावणों की सही संख्या की आवश्यकता बताई थी। इसे देखते हुए इस बार 39 गांवों में वनकर्मी लगाए गए हैं। यह सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक गणना करेंगे।
प्रत्येक एक किलोमीटर के एक छोर से दूसरे छोर पर दो वनकर्मी लगाए गए हैं। ये वनकर्मी 500 मीटर का एरिया कवर करेंगे। कुछ पुराने वनकर्मी मौके पर ही रहेंगे। डीएफओ सुधीर जैन के मुताबिक क्षेत्र में लगाए गए वनकर्मियों को बीर नर्सरी से शाम को रवाना कर दिया गया है। मंगलवार को मौके पर सीसीएफ डॉ. सुरेश के अतिरिक्त डॉ. लक्ष्मण सिंह और एसीएफ कर्ण सिंह भी रहेंगे।
दिल्ली से आई हैं जीव प्रेमी जया
इधर, शोकलिया में हो रही गणना को देखने और प्रक्रिया समझने के लिए एक वन्य जीव प्रेमी जया भी यहां पहुंची हैं। जया ने ‘भास्कर’ से बातचीत में बताया कि महाराष्ट्र के शोलापुर में भी गोडावणों की संख्या काफी होती थी। लेकिन अब यह पक्षी वहां लुप्तप्राय: हो चुका है। राजस्थान में इस पक्षी के संरक्षण के लिए प्रयास तेजी से होना चाहिए। यहां वनकर्मी किस प्रकार गणना करते हैं, इसके बारे में जानकारी लेने वे यहां पहुंची हैं।
अब नरेगा के तहत गोडावणों के लिए विकसित हो सकेगा ग्रास लैंड
शोकलिया में गोडावण के संरक्षण के लिए वन विभाग 40 हैक्टेयर में ग्रास लैंड विकसित करेगा। कलेक्टर के निर्देश पर विभाग ने मनरेगा के तहत इसकी कार्य योजना तैयार कर जिला परिषद को भेज दी है। डीएफओ सुधीर जैन ने बताया कि गोडावण के संरक्षण व प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए यह कार्य कराया जाएगा। विभाग द्वारा भूमि का चिह्न्ीकरण किया जा चुका है। बारिश के मौसम में यह कार्य कराया जाएगा।
ग्रास लैंड विकसित होने से क्षेत्र में रहने वाले गोडावणों के भोजन की समस्या का समाधान हो सकेगा। लंबे समय से यहां ग्रास लैंड विकसित करने की आवश्यकता जताई जा रही है। पिछले वर्ष नवंबर में कलेक्ट्रेट में हुई बैठक में भी टूरिज्म एंड वाइल्ड लाइफ के सदस्यों ने भी पक्षियों के संरक्षण के लिए ग्रास लैंड विकसित करने के लिए कहा था। इस पर कलेक्टर ने वन अधिकारियों को प्रस्ताव तैयारी के निर्देश दिए थे।
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