बुधवार, 25 जनवरी 2012

क्षात्र धर्म की शान रखाने -स्व.श्री तन सिंह बाड़मेर


क्षात्र धर्म की शान रखाने -स्व.श्री तन सिंह बाड़मेर


क्षात्र धर्म की शान रखाने वीर जाति फिर जाग उठे ,

हल्दी घाटी के नालो से हर-हर की हुँकार उठे |

जग रक्षक का जयकार उठे ||



परशुराम ने कई बार जग क्षत्रिय विहीन करवाया |

यवनों ने गद्दारों ने फिर फूट डालकर कटवाया | |

अंग्रेजों ने आकर हमको हाँ हुजुर ही सिखलाया |

फिर भी जब-जब पड़ी भीड़ तब जौहर शाका दिखलाया |

बुझी हुई उस चिनगारी से विप्लव की सी आग उठे ||

जड़ चेतन सब जाग उठे ||



कुतुबुद्दीन की ऊँची अट्टा खड़ी-खड़ी क्या बता रही |

ये लाल किले ये मोती मस्जिद हाय -हाय क्या सुना रही |

काबुल में जाकर देखो कबरें अब भी सिसक रही |

नव्वाबों की संताने अब तांगे इक्के चला रही ||

म्यानों में तलवारें तडफे शत्रु को ललकार उठे |

संघ मन्त्र गुंजार उठे ||



लहरें बन शत्रु जब आए चट्टानें बन भिडे हमीं |

प्यासी भारत माता के हित खूं के बादल बने हमीं ||

इस समाज की ढाल बने हम , शत्रु दल के काल हमीं |

दीवाने बन ऊंटाले में हमने ही तो फाग रमी ||

गली-गली में एक बार वही रंग सब घोल उठे |

होली की भी ज्वाल उठे ||

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