बाड़मेर जिले में निकल सकती है सिन गैस
संभवत: देश में बाड़मेर पहला ऎसा जिला होगा जहां भूमिगत गैसीकरण से निकलने वाली सिन गैस से देश में बिजली और फर्टीलाइजर उत्पादन सम्भव हो सकेगा। वर्तमान में विश्व के चार देशों में लिग्नाइट के गैसीकरण से सिन गैस का उत्पादन किया जाता है। अब बाड़मेर में भी सिन गैस निकलने की सम्भावना है। इसे देखते हुए राजस्थान और गेल इंडिया के बीच समझौता हुआ था और पिछले माह विशेषज्ञों के दल ने बाड़मेर का दौरा कर सिन गैस के उत्पादन की सम्भावनाओं का पता लगाया था।
हुआ था समझौता
बाड़मेर जिले में सिणधरी-गोलिया क्षेत्र के निकट गहराई में उपलब्ध लिग्नाइट के भण्डार जो कि व्यवहारिक रूप से खनन योग्य नहीं है, को भूमिगत गैसीकरण परियोजना से दोहन के लिए विकसित करने के लिए राजस्थान सरकार और गेल इंडिया के बीच समझौता हुआ था। गेल ने तकनीकी सहयोग के लिए उज्बेकिस्तान के राजकीय विभाग उज्बेक कोल के साथ एमओयू किया है। इन दोनों एमओयू के बाद उज्बेक कोल के विशेषज्ञों का एक दल ने गेल व पेट्रोलियम निदेशालय के प्रतिनिधि मंडल के साथ 21 से 23 सितम्बर को बाड़मेर क्षेत्र का दौरा किया।
वहां गोलिया-ब्लॉक के पास गहराई में उपलब्ध भण्डार का प्रारम्भिक अध्ययन कर भूमिगत गैसीकरण प्रक्रिया से सिन गैस के उत्पादन की सम्भावनाओं का पता लगाया गया। इससे पूर्व उज्बेक कोल, गेल एवं पेट्रोलियम निदेशालय के अधिकारियों ने जयपुर में बीस सितम्बर को परियोजना के संचालन के लिए विचार-विमर्श किया गया। बाड़मेर दौरे के बाद विशेषज्ञों के दल ने गिराल एवं कपूरड़ी स्थित ओपन कास्ट लिग्नाइट के लिए इसकी उपयुक्तता के बारे में जानकारी प्राप्त की।
ऎसी निकाली जाती है...
गहराई में लिग्नाइट के प्रचुर भण्डार हैं। अधिक गहराई के कारण इसका दोहन नहीं किया जा सकता है। ऎसे में उपलब्ध लिग्नाइट वाले इलाके में विशिष्ट आकार के दो कुएं बनाए जाते हैं। इसमें एक इन्जेक्शन कुआं होता है और दूसरा प्रोड्यूसर कुआं। इंजेक्शन वेल में हवा या ऑक्सीजन व वाष्प डाला जाता है ताकि भूमिगत लिग्नाइट को जलाया जा सके। प्रोड्यूसर कुएं से गैस को प्राप्त किया जाता है। इन दोनों के बीच 50 से 100 मीटर की दूरी होती है।
साथ ही जमीन के नीचे दोनों में होरिजॉन्टल कनेक्शन किया जाता है। लिग्नाइट के भूमिगत जलने से सिन गैस उत्पन्न होती है। इसमें कार्बन मोनो ऑक्साइड, हाइड्रोजन, मिथेन, कार्बन डाई ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन आदि गैस उत्सर्जित होती है। ज्वलनशील गैसों को मुख्यत: सिन गैस के रूप में विद्युत उत्पादन के काम में लिया जाता है। जबकि अज्वलनशील (कार्बन डाई ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन) को फर्टीलाइजर उत्पादन में उपयोग में लिया जाता है।
देश की पहली परियोजना
वर्तमान में उज्बेकिस्तान, चीन, आस्ट्रेलिया व रूस में लिग्नाइट के गैसीकरण से सिन गैस का उत्पादन किया जाता है। यह परियोजना बाड़मेर क्षेत्र के गोलिया ब्लॉक में सफल होती है तो वृहद स्तर पर सिन गैस का उत्पादन कर विद्युत एवं फर्टीलाइजर संयंत्र विकसित किए जा सकते है। बीकानेर व नागौर में भी गहराई में उपलब्ध भण्डारों का समुचित उपयोग सम्भव हो सकेगा।
डॉ. गोविन्द शर्मा प्रमुख शासन सचिव, खनिज विभाग
संभवत: देश में बाड़मेर पहला ऎसा जिला होगा जहां भूमिगत गैसीकरण से निकलने वाली सिन गैस से देश में बिजली और फर्टीलाइजर उत्पादन सम्भव हो सकेगा। वर्तमान में विश्व के चार देशों में लिग्नाइट के गैसीकरण से सिन गैस का उत्पादन किया जाता है। अब बाड़मेर में भी सिन गैस निकलने की सम्भावना है। इसे देखते हुए राजस्थान और गेल इंडिया के बीच समझौता हुआ था और पिछले माह विशेषज्ञों के दल ने बाड़मेर का दौरा कर सिन गैस के उत्पादन की सम्भावनाओं का पता लगाया था।
हुआ था समझौता
बाड़मेर जिले में सिणधरी-गोलिया क्षेत्र के निकट गहराई में उपलब्ध लिग्नाइट के भण्डार जो कि व्यवहारिक रूप से खनन योग्य नहीं है, को भूमिगत गैसीकरण परियोजना से दोहन के लिए विकसित करने के लिए राजस्थान सरकार और गेल इंडिया के बीच समझौता हुआ था। गेल ने तकनीकी सहयोग के लिए उज्बेकिस्तान के राजकीय विभाग उज्बेक कोल के साथ एमओयू किया है। इन दोनों एमओयू के बाद उज्बेक कोल के विशेषज्ञों का एक दल ने गेल व पेट्रोलियम निदेशालय के प्रतिनिधि मंडल के साथ 21 से 23 सितम्बर को बाड़मेर क्षेत्र का दौरा किया।
वहां गोलिया-ब्लॉक के पास गहराई में उपलब्ध भण्डार का प्रारम्भिक अध्ययन कर भूमिगत गैसीकरण प्रक्रिया से सिन गैस के उत्पादन की सम्भावनाओं का पता लगाया गया। इससे पूर्व उज्बेक कोल, गेल एवं पेट्रोलियम निदेशालय के अधिकारियों ने जयपुर में बीस सितम्बर को परियोजना के संचालन के लिए विचार-विमर्श किया गया। बाड़मेर दौरे के बाद विशेषज्ञों के दल ने गिराल एवं कपूरड़ी स्थित ओपन कास्ट लिग्नाइट के लिए इसकी उपयुक्तता के बारे में जानकारी प्राप्त की।
ऎसी निकाली जाती है...
गहराई में लिग्नाइट के प्रचुर भण्डार हैं। अधिक गहराई के कारण इसका दोहन नहीं किया जा सकता है। ऎसे में उपलब्ध लिग्नाइट वाले इलाके में विशिष्ट आकार के दो कुएं बनाए जाते हैं। इसमें एक इन्जेक्शन कुआं होता है और दूसरा प्रोड्यूसर कुआं। इंजेक्शन वेल में हवा या ऑक्सीजन व वाष्प डाला जाता है ताकि भूमिगत लिग्नाइट को जलाया जा सके। प्रोड्यूसर कुएं से गैस को प्राप्त किया जाता है। इन दोनों के बीच 50 से 100 मीटर की दूरी होती है।
साथ ही जमीन के नीचे दोनों में होरिजॉन्टल कनेक्शन किया जाता है। लिग्नाइट के भूमिगत जलने से सिन गैस उत्पन्न होती है। इसमें कार्बन मोनो ऑक्साइड, हाइड्रोजन, मिथेन, कार्बन डाई ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन आदि गैस उत्सर्जित होती है। ज्वलनशील गैसों को मुख्यत: सिन गैस के रूप में विद्युत उत्पादन के काम में लिया जाता है। जबकि अज्वलनशील (कार्बन डाई ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन) को फर्टीलाइजर उत्पादन में उपयोग में लिया जाता है।
देश की पहली परियोजना
वर्तमान में उज्बेकिस्तान, चीन, आस्ट्रेलिया व रूस में लिग्नाइट के गैसीकरण से सिन गैस का उत्पादन किया जाता है। यह परियोजना बाड़मेर क्षेत्र के गोलिया ब्लॉक में सफल होती है तो वृहद स्तर पर सिन गैस का उत्पादन कर विद्युत एवं फर्टीलाइजर संयंत्र विकसित किए जा सकते है। बीकानेर व नागौर में भी गहराई में उपलब्ध भण्डारों का समुचित उपयोग सम्भव हो सकेगा।
डॉ. गोविन्द शर्मा प्रमुख शासन सचिव, खनिज विभाग
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