हिंदू रीतिरिवाज के मुताबिक महिलाएं अपने सुहाग के प्रतीक के रुप में सिंदूर लगाती हैं। लेकिन राजस्थान का एक इलाका ऐसा है जहां महिलाएं सिंदूर नहीं मिट्टी लगाती हैं। जानकर आश्चर्य होगा कि कहने को तो ये मिट्टी पीली है लेकिन रंग इसका लाल है। ये इलाका है हल्दीघाटी का।
झीलों के शहर, उदयपुर से महज 40-45 किलोमीटर की दूरी पर है हल्दीघाटी। चारों तरफ ऊबड़-खाबड़ पहाड़ और बीच में एक सूनसान घाटी। इस घाटी का नाम यहां के रंग के कारण पड़ा था। पहले इस घाटी का रंग बिल्कुल पीला था—एक दम हल्दी के सामान। लेकिन पिछले 400 सालों से ये घाटी लाल है। इसी घाटी की मिट्टी से यहां की महिलाएं अपनी मांग भरती हैं,सन् 1576 में मुगल सम्राट अकबर और मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के बीच इसी जगह हल्दीघाटी का ऐतिहासिक (और घमासान) युद्ध हुआ था। इतिहासकारों के मुताबिक एक ही दिन में इस युद्ध में करीब 18 हजार सैनिक मारें गए थे। इस घाटी में इतना खून बहा था कि हल्दीघाटी, पीली के बजाय लाल हो गई थी। यही वजह है कि हल्दीघाटी (बाहर से) देखने में तो पीली दिखाई पड़ती है लेकिन अगर मिट्टी को थोड़ा सा खुरेचा जाए तो वो लाल दिखाई पड़ती है।
मेवाड़ राज्य के अंतर्गत ही आती है इतिहास प्रसिद्ध ये रणस्थली, यानि हल्दीघाटी। मेवाड़ राज्य का क्षेत्रफल आज के उदयपुर, चित्तौड़गढ और भीलवाड़ा जिलों तक फैला था। इतिहास में वैसे तो मेवाड़ राज्य ने कई सूरमा राजा पैदा किए, लेकिन इन सबमें अग्रणी स्थान है महाराणा प्रताप का। महाराणा प्रताप ही पूरे राजपूताना (राजस्थान) के अकेले ऐसे राजा थे जिन्होनें मुगलों की गुलामी नहीं की थी। मुगलकाल में राजस्थान दर्जनों छोटे-बड़े राज्यों (मेवाड़, मारवाड़, बीकानेर, जैसलमेर, आमेर आदि) में विभाजित था। मुगल सम्राट अकबर पूरे वृहत भारत का राजा बनने का सपना देखता था। उसने राजपूत घरानों से शादी करके या फिर उन्हें हराकर पूरे राजस्थान को अपने कब्जे में कर लिया था। लेकिन मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप को ये कतई बर्दाश्त नहीं था। फिर क्या था अकबर ने राजपूत सेनापति मानसिंह (जयपुर घरानें) के नेतृत्व में एक विशाल सेना मेवाड़ की और कूच कर दी। उस वक्त मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ हुआ करती थी। लेकिन युद्ध के लिये जगह चूनी गई चित्तौड़गढ़ से डेढ सौ किलोमीटर दूर हल्दीघाटी।मुगल सेना के सामने मेवाड़ की सेना कुछ नहीं थी, लेकिन अपनी छापेमार शैली (गुरिल्ला स्टाइल) से महाराणा प्रताप की सेना ने मुगलों के दांत खट्टे कर दिये। लेकिन अचानक महाराणा प्रताप का स्वामीभक्त घोड़ा, चेतक घायल हो गया। घायल अवस्था में ही चेतक पांच किलोमीटर दूर तक महाराणा प्रताप को लेकर रणभूमि से भाग निकला। जिस जगह चेतक ने अपने प्राण त्यागे, उस जगह उसकी याद में महाराणा ने एक स्मारक बनाया था—जो आज भी मौजूद है।
राजस्थान सरकार ने इस रणभूमि को पर्यटन स्थल घोषित कर रखा है। हर रोज बड़ी तादाद में लोग यहां बने म्यूजियम (महाराणा प्रताप म्यूजियम) को देखने आते हैं—हल्दीघाटी को कम लोग देखते हैं। इस म्यूजियम में हल्दीघाटी, महाराणा प्रताप की वीरता और वनवासी जीवन, चेतक की बहादुरी और छापेमार शैली (गौरिल्ला युद्ध) पर लाईट एंड साउंड शो दिखाया जाता है। इसके साथ-साथ म्यूजियम में मध्यकालीन अस्त्र-शस्त्र, अलग-अलग जातियों के वेश-भूषा और साहित्य को संजोकर रखा गया है। महाराणा प्रताप के वक्त तक मेवाड़ राज्य की राजधानी चित्तौड़गढ और कुंभलगढ़ थी। लेकिन सौगंध खाने के बाद महाराणा ने अपनी राजधानी को त्याग दिया। सौगंध थी कि जबतक वे मुगल सेना को मेवाड़ से खदेड़ नहीं देते तबतक ना तो बिस्तर पर सोएंगे और ना ही रोटी खाएंगे। मुगल सेना को आखिरकार वहां से अपना बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ा, लेकिन महाराणा प्रताप फिर कभी चित्तौड़गढ़ किले नहीं गए। उन्होंने अपनी नई राजधानी बनाई चावण्ड (उदयपुर से 50 किलोमीटर)। पूरा मेवाड़ इलाका, किलों और महलों से पटा पड़ा है और इन्हीं से जुड़ा है यहां का इतिहास।
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