जोधपुर। भारत-पाक के बीच चलने वाली थार एक्सप्रेस 11 घंटे देरी से जोधपुर पहुंची। इसके चलते रक्षाबंधन मनाने आए भाई-बहनों को खासी निराशा हुई। थार एक्सप्रेस में पाकिस्तान से 144 यात्री शनिवार रात 11:50 के स्थान पर रविवार सुबह 10:50 बजे जोधपुर के भगत की कोठी स्टेशन पर पहुंचे। इन यात्रियों को लेने आए रिश्तेदारों के लिए हर पल गुजारना भारी लग रहा था। जैसे ही यात्री भगत की कोठी स्टेशन से बाहर आए, अपने रिश्तेदारों को देख उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।
बहनों का मिलन, छलके आंसू
बड़ी और छोटी बहन का मिलन देख यहां मौजूद हर व्यक्ति की आंख नम हो गई। सीमा असलम कराची से आई थीं और उन्हें मुंबई से लेने छोटी बहन आई थीं। सीमा जैसे ही रेलवे स्टेशन से बाहर आई दोनों ही बहनें गले लगकर सुबकने लगी। सीमा ने कहा ट्रेन के देरी से आने से एक-एक पल भारी लग रहा था। सीमा इस बार ईद पीहर में ही मना कर जाएगी।
21 साल बाद आया था राखी बंधवाने
मीरपुर खास के मथुरादास 21 साल से भारत नहीं आ पा रहे थे। वे बताते हैं कि उनकी बहन अहमदाबाद में रहती हैं। हर साल वीजा नहीं मिलने से राखी का दिन भारी पड़ता था। इस बार एक सप्ताह पहले बहन की राखी मिली और दूसरे दिन वीजा मिलने से खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उम्मीद थी बहन से रक्षाबंधन के दिन राखी बंधवाएंगे, लेकिन अब सोमवार सुबह अहमदाबाद पहुंच कर राखी बंधवा पाऊंगा।
भाई की मौत के तीन साल बाद आए
सिंध प्रांत से आए बुजुर्ग बीरमदास ने बताया बाड़मेर में उनके बड़े भाई रहते थे। उनकी तीन साल पहले मौत हो गई थी। वीजा नहीं मिलने से वे भाभी को सांत्वना देने नहीं आ पाए। उन्होंने बताया कि स्टेशन पर भतीजे की बहू ज्योत्सना लेने आई हैं। बीरमदास बताते हैं कि वे अपनी पत्नी मीरादेवी व बेटी सुशीला को लेकर आए हैं। उन्होंने बताया कि करीब 14 साल पहले भतीजे की शादी पर आना था, लेकिन उस वक्त भी वीजा नहीं मिल पाया था।
43 साल बाद देखा मौसी को
पाकिस्तान की मोहिनी स्टेशन से बाहर आईं तो उनकी बड़ी बहन बाड़मेर निवासी 63 वर्षीय देवी ने गले लगा दिया। देवी ने जब मोहिनी को अपने 43 वर्षीय पुत्र खेमचंद से मिलाया तो मौसी की आंखों से आंसू छलक पड़े। मोहनी पहली बार खेमचंद से मिल रही थीं।
43 साल बाद देखा मौसी को
पाकिस्तान की मोहिनी स्टेशन से बाहर आईं तो उनकी बड़ी बहन बाड़मेर निवासी 63 वर्षीय देवी ने गले लगा दिया। देवी ने जब मोहिनी को अपने 43 वर्षीय पुत्र खेमचंद से मिलाया तो मौसी की आंखों से आंसू छलक पड़े। मोहनी पहली बार खेमचंद से मिल रही थीं।
बहनों का मिलन, छलके आंसू
बड़ी और छोटी बहन का मिलन देख यहां मौजूद हर व्यक्ति की आंख नम हो गई। सीमा असलम कराची से आई थीं और उन्हें मुंबई से लेने छोटी बहन आई थीं। सीमा जैसे ही रेलवे स्टेशन से बाहर आई दोनों ही बहनें गले लगकर सुबकने लगी। सीमा ने कहा ट्रेन के देरी से आने से एक-एक पल भारी लग रहा था। सीमा इस बार ईद पीहर में ही मना कर जाएगी।
21 साल बाद आया था राखी बंधवाने
मीरपुर खास के मथुरादास 21 साल से भारत नहीं आ पा रहे थे। वे बताते हैं कि उनकी बहन अहमदाबाद में रहती हैं। हर साल वीजा नहीं मिलने से राखी का दिन भारी पड़ता था। इस बार एक सप्ताह पहले बहन की राखी मिली और दूसरे दिन वीजा मिलने से खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उम्मीद थी बहन से रक्षाबंधन के दिन राखी बंधवाएंगे, लेकिन अब सोमवार सुबह अहमदाबाद पहुंच कर राखी बंधवा पाऊंगा।
भाई की मौत के तीन साल बाद आए
सिंध प्रांत से आए बुजुर्ग बीरमदास ने बताया बाड़मेर में उनके बड़े भाई रहते थे। उनकी तीन साल पहले मौत हो गई थी। वीजा नहीं मिलने से वे भाभी को सांत्वना देने नहीं आ पाए। उन्होंने बताया कि स्टेशन पर भतीजे की बहू ज्योत्सना लेने आई हैं। बीरमदास बताते हैं कि वे अपनी पत्नी मीरादेवी व बेटी सुशीला को लेकर आए हैं। उन्होंने बताया कि करीब 14 साल पहले भतीजे की शादी पर आना था, लेकिन उस वक्त भी वीजा नहीं मिल पाया था।
43 साल बाद देखा मौसी को
पाकिस्तान की मोहिनी स्टेशन से बाहर आईं तो उनकी बड़ी बहन बाड़मेर निवासी 63 वर्षीय देवी ने गले लगा दिया। देवी ने जब मोहिनी को अपने 43 वर्षीय पुत्र खेमचंद से मिलाया तो मौसी की आंखों से आंसू छलक पड़े। मोहनी पहली बार खेमचंद से मिल रही थीं।
43 साल बाद देखा मौसी को
पाकिस्तान की मोहिनी स्टेशन से बाहर आईं तो उनकी बड़ी बहन बाड़मेर निवासी 63 वर्षीय देवी ने गले लगा दिया। देवी ने जब मोहिनी को अपने 43 वर्षीय पुत्र खेमचंद से मिलाया तो मौसी की आंखों से आंसू छलक पड़े। मोहनी पहली बार खेमचंद से मिल रही थीं।
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