जैसलमेर. का .856 स्थापना दिवस......अजब देश जैसाणा, हर जन है इसका दीवाना .
भारत की पश्चिमी सीमा पर राजस्थान का जैसलमेर जिला। आक्षिजित पसरे हुए मरुथल में रेत के धोरों वाली यह धरा अपने आप में कई खासियतों का समावेश किए हुए है। जितना यह सबसे बडा जिला है उतना ही इसका विशाल हृदय है, और इससे कहीं अधिक उदारता कूट-कूट कर भरी हुई है। शेष दुनिया से सुदूरवर्ती होने की वजह से पहले के दशकों में इसकी खासियतों के बारे में प्रदेश और देश के आमजन तक जानकारी का जो अभाव रहा उसे हाल के वर्षों में आए बदलाव ने पाट दिया है। व्यापक संचार क्रांति के साथ ही जैसे-जैसे इस धरा की खूबियों के बारे में देश और दुनिया के लोगों को पता चलता गया, उनका रूख जैसलमेर की ओर होता गया। आजह जैसलमेर दुनिया के लोगों के लिए पर्यटन का केन्द्र बन गया है। किसी जमाने में समुद्र का हिस्सा रहे जैसलमेर की जमीं में रंगों और रत्नों की खूब भरमार है। कहीं कला संस्कृति और शिल्प स्थापत्य के मोती बिखरे हुए हैं कहीं धर्म-अध्यात्म और मानवता के बीज तत्वों का अखूट खजाना। आत्मीयता और स्नेह के रसों का यहाँ ज्वार उमडता है। इस धरा की खूबियों को वही जान सकता है जिसने यहाँ की आबोहवा में आकर कुछ क्षण व्यतीत किए हों। जैसाण की धरती का हर क्षण असीम आनंद और आत्मतोष देने वाला है। शुद्घ पर्यावरण देता है दिली सुकून आधुनिकता को आत्मसात करने के बावजूद आज के बहुआयामी प्रदूषण से कोसों दूर जैसलमेर का पर्यावरण शुद्घ और सुकून देने वाला है। हवा-पानी और मिट्टी की मौलिक शुद्घता ही वजह है कि भीषण गर्मी और तपन, रेतीली आंधियों और जीवन संघर्ष से जुडी कई कठिनाइयों के बावजूद जैसलमेर का जनजीवन पूरी ताजगी के साथ गतिमान दिखता है। 856 वर्ष पूर्व महारावल जैसल ने रखी नींव जैसलमेर की स्थापना आज से 856 वर्ष पूर्व विक्रम संवत् 1212 में श्रावण शुक्ल द्वादशी बुधवार को हुई। इस दिन महारावल जैसल ने त्रिकूट पर्वत पर जैसलमेर दुर्ग की नींव रखी। कृष्ण युगीन मिथकों से जुडे जैसलमेर में सभी धर्मों के लोगों का आपसी समन्वय और स बंध सा प्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश करता है। जैसलमेर अपने आप में लोक जीवन से लेकर परिवेशीय विलक्षणताओं का खजाना है जिसे देखने प्रदेश और देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही सात समन्दर पार से मेहमान आते हैं। यहाँ कई-कई दिन घूम-फिर कर देखने के बाद भी जैसलमेर को पूरा देख पाने की प्यास अधूरी ही रहती है। हर दिन की शुरूआत उत्सवी पर परा से साल भर यहाँ लोक लहरियों और तीज-त्याहारों की भरमार रहती हैं, यहाँ का हर दिन उत्सवी पर पराओं से शुरू होता है। यहाँ की सामाजिक पर पराओं का आकर्षण हर किसी को अपने मोहपाश में बाँध लेने का जबर्दस्त सामर्थ्य रखता है। सूर्य की आभा को अपनी बनाकर स्वर्ण आभा बिखेरने वाला सोनार दुर्ग अपने आप में ऐसा नगर है जहाँ पुरातन से लेकर आधुनिकताओं से जुडे सरोकारों को देखा जा सकता है। दुर्ग में भगवान श्री लक्ष्मीनाथजी का मन्दिर, विभिन्न प्रोलें, जैन मन्दिर समूह, राजप्रासाद सहित कई दर्शनीय बि ब हैं। विश्ववि यात हैं हवेलियाँ शहर में गडसीसर सरोवर का नजारा रेगिस्तान में अमृत कुण्ड का अहसास कराता है। जैसलमेर की हवेलियाँ विश्ववि यात हैं। इनमें पटवों की हवेली, नथमल की हवेली, दीवान सालमसिंह की हवेली, मन्दिर पैलेस, बादल निवास जैसे कई महत्वपूर्ण स्थल हैं। इनके साथ ही अमरसागर, बडा बाग, लौद्रवा, मूमल-महेन्द्रा की मेडी, पुरातत्व के धाम, पालीवालों की संस्कृति के पुरावशेषों का दिग्दर्शन कराते कुलधरा और खाभा, सम और खुहडी के लहरदार मखमली रेतीले धोरे, बैसाखी, रामकुण्डा, बरमसर, गजरूप सागर आदि का महत्व सर्वविदित है। जैसलमेर की धरती शाक्त उपासना का आदि धाम रही है जहाँ देवियों की स्नेहधाराओं ने सदियों तक लोक जीवन को संरक्षण देते हुए सींचा है। इनमें तनोटराय, तेमडेराय, देगराय, भादरिया राय, स्वांगिया माता, काले डूंगर राय, नभ डूंगर राय, पन्नौधर राय आदि प्रमुख हैं। लोगो की इन देवियों में अगाध आस्था और विश्वास साल भर देखा जा सकता है। सा प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक बाबा रामदेव के प्रति देश के करोडों लोगों में अगाध आस्था का भाव रहा है। इन्हीं बाबा रामदेव का मन्दिर जैसलमेर जिले के ही रामदेवरा में है जहां हर साल भाद्रपद में बीज से ग्यारस तक लगने वाले मेले में देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्घालु जातरु आते हैं। जैसलमेर जिले का पोकरण क्षेत्र शौर्य भूमि के रूप में प्रसिद्घ है जहां परमाणु परीक्षण का गौरवशाली इतिहास कायम हुआ है। सीमावर्ती जिला होने से यह सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है जहाँ मीलों तक सेना के ठिकाने हैं। हर कोना भरा है कला से देश-दुनिया के अन्य पर्यटन और दर्शनीय स्थलों के मुकाबले यहाँ का परिवेश इस मायने में अलग है कि यहाँ सूक्ष्म और कलात्मक शिल्प स्थापत्य के सुन्दर दृश्य हर कहीं सहज ही दर्शनीय हैं जो जैसलमेर की पुरातन कला संस्कृति की विलक्षणताओं का नमूना है। यही कारण है कि यहाँ के सुनहरे और चित्ताकर्षक मनोहारी बि बों ने कला पारखियों और फिल्मकारों को इस धरा की ओर आकर्षित किया है। पर्यटन ने बदली तस्वीर स्थानीय विशेषताओं और विलक्षणओं को देखकर जब से इसे पर्यटन के साथ जोडा गया है तभी से जैसलमेर भारतवर्ष और संसार के पर्यटन मानचित्र पर लोकप्रिय स्थल के रूप म अंकित हो चला है। भीषण गर्मी भरे दो-चार माह छोड दिए जाएं तो साल भर यहाँ देशी-विदेशी पर्यटकों का सैलाब उमडता रहता है। पर्यटन केन्द्र के रूप में स्थापित होने के बाद यहाँ की अर्थव्यवस्था के साथ ही जनजीवन के सभी क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव आया है। विकास का मंजर इन्दिरा गांधी नहर परियोजना की बदौलत सदियों से सूखी धरती पर फिर पानी का मंजर दिखने लगा है। इससे पेयजल का संकट दूर हो चला है वहीं खेती-बाडी की राहें भी आसान हो उठी हैं। सौर और पवन ऊर्जा के पंखें यहां खुशहाली की हवा देने लगे हैं। आम आदमी से लेकर क्षेत्रीय विकास के लिए सरकार की पहल ने अब जैसलमेर को प्रगतिशील जिलों की डगर दे दी है। जैसलमेर अब वह नहीं रहा जो कभी पहले हुआ करता था, आज जैसलमेर बदला-बदला सा है। हर कहीं विकास का मंजर साफ नजर आ रहा है और जीवन निर्वाह की मुश्किलें काफी हद तक समाप्त हो चली हैं। इन नौ सदियों में जैसलमेर ने कई उतार-चढाव देखे हैं मगर अब हर कहीं विकास की नई राहों से लोकजीवन में संतुष्टि और सुकून पसरता ही जा रहा है। ---000---
Source : - डॉ. दीपक आचार्य
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