दवा वितरण योजना में 20 करोड़ का घपला
जयपुर। आगामी दो अक्टूबर से शुरू होने वाली निशुल्क दवा वितरण योजना घपलों के जंजाल में घिरती नजर आ रही है। स्थिति ऎसी है कि जहां मुख्यमंत्री हर हाल में इस योजना को दो अक्टूबर से शुरू करना चाहते हैं, बस यही बात जैसे विभाग के अफसरों के लिए बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने जैसी साबित हो रही है। योजना को शुरू करने के लिए आनन-फानन में करीब 20 करोड़ रूपए के साजो-सामान को बिना निविदा के ही खरीदने के आदेश दे दिए गए हैं। जबकि अधिकारी खुद ही कह रहे हैं कि खरीद में राज्य सरकार के लेखा और वित्तीय नियमों का कठोरता से पालन किया जाए।
सीधे 20 करोड़ का घपला : चूंकि योजना को शुरू होने में कुछ ही समय बचा है। लिहाजा जिलों में बैठे मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों ने अस्पतालों में दवा वितरण काउंटर चलाने के लिए बजट नहीं होने का शोर मचाना शुरू कर दिया। लिहाजा, आनन-फानन में योजना के लिए मुख्यमंत्री ने 20 करोड़ रूपए का अतिरिक्त बजट स्वीकृत किया। बजट स्वीकृत होते ही राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने बजट को जिलों के सीएमएचओ को दे दिया। विभाग के निदेशक जन स्वास्थ्य डॉ. बीआर मीणा की ओर से जरूरी साजो सामान की कीमतें निर्घारित कर बजट खर्च करने के की बात कही गई है।
दरें बाजार दर से अधिक : निशुल्क दवा वितरण योजना के तहत जरूरी साजो-सामान खरीद की जो दरें विभाग ने बिना निविदा व रेट कॉन्ट्रेक्ट के तय की है वे पूरी तरह से अव्यवहारिक प्रतीत होती हैं। वित्त विशेष्ाज्ञों का मानना है कि अगर निविदाएं मांगी जातीं और कंपनियों से रेट कॉन्ट्रेक्ट किया जाता, तो विभाग को करोड़ों रूपए की चपत लगने से बचाया जा सकता था। जहां विभाग ने 165 लीटर के फ्रिज की कीमत 8700 रूपए रखी है, वहीं इस फ्रिज की कीमत खुले बाजार में 7 हजार से भी कम है। वहीं, एक कुर्सी की कीमत 750 रूपए व एक बड़ी रैक की कीमत तीन हजार रूपए रखी गई है। गौरतलब है कि यह खरीद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर होनी है।
विभाग एक और नियम दो : जहां राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन के तहत दवाइयों की खरीद निविदाओं के माध्यम से हो रही है, वहीं 20 करोड़ के साजो-सामान की खरीद बिना निविदा के हो रही है। इसे लेकर खुद महकमे में ही अचरज जताया जा रहा है। वित्त विशेष्ाज्ञों का भी कुछ ऎसा ही मानना है। जबकि इस सामान की खरीद के लिए निदेशालय स्तर पर टेंडर प्रकिया अपनाई जा सकती थी।
इनका कहना है : खरीद के लिए जो दरें तय की हैं, ये अनुमान पर आधारित हैं। अभी तो विधानसभा में बिजी हूं। सत्र के बाद ही देखूंगा कि क्या आदेश निकाले हैं खरीद के लिए।
- डॉ. बीआर मीणा, निदेशक (जन स्वास्थ्य), चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग
जयपुर। आगामी दो अक्टूबर से शुरू होने वाली निशुल्क दवा वितरण योजना घपलों के जंजाल में घिरती नजर आ रही है। स्थिति ऎसी है कि जहां मुख्यमंत्री हर हाल में इस योजना को दो अक्टूबर से शुरू करना चाहते हैं, बस यही बात जैसे विभाग के अफसरों के लिए बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने जैसी साबित हो रही है। योजना को शुरू करने के लिए आनन-फानन में करीब 20 करोड़ रूपए के साजो-सामान को बिना निविदा के ही खरीदने के आदेश दे दिए गए हैं। जबकि अधिकारी खुद ही कह रहे हैं कि खरीद में राज्य सरकार के लेखा और वित्तीय नियमों का कठोरता से पालन किया जाए।
सीधे 20 करोड़ का घपला : चूंकि योजना को शुरू होने में कुछ ही समय बचा है। लिहाजा जिलों में बैठे मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों ने अस्पतालों में दवा वितरण काउंटर चलाने के लिए बजट नहीं होने का शोर मचाना शुरू कर दिया। लिहाजा, आनन-फानन में योजना के लिए मुख्यमंत्री ने 20 करोड़ रूपए का अतिरिक्त बजट स्वीकृत किया। बजट स्वीकृत होते ही राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने बजट को जिलों के सीएमएचओ को दे दिया। विभाग के निदेशक जन स्वास्थ्य डॉ. बीआर मीणा की ओर से जरूरी साजो सामान की कीमतें निर्घारित कर बजट खर्च करने के की बात कही गई है।
दरें बाजार दर से अधिक : निशुल्क दवा वितरण योजना के तहत जरूरी साजो-सामान खरीद की जो दरें विभाग ने बिना निविदा व रेट कॉन्ट्रेक्ट के तय की है वे पूरी तरह से अव्यवहारिक प्रतीत होती हैं। वित्त विशेष्ाज्ञों का मानना है कि अगर निविदाएं मांगी जातीं और कंपनियों से रेट कॉन्ट्रेक्ट किया जाता, तो विभाग को करोड़ों रूपए की चपत लगने से बचाया जा सकता था। जहां विभाग ने 165 लीटर के फ्रिज की कीमत 8700 रूपए रखी है, वहीं इस फ्रिज की कीमत खुले बाजार में 7 हजार से भी कम है। वहीं, एक कुर्सी की कीमत 750 रूपए व एक बड़ी रैक की कीमत तीन हजार रूपए रखी गई है। गौरतलब है कि यह खरीद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर होनी है।
विभाग एक और नियम दो : जहां राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन के तहत दवाइयों की खरीद निविदाओं के माध्यम से हो रही है, वहीं 20 करोड़ के साजो-सामान की खरीद बिना निविदा के हो रही है। इसे लेकर खुद महकमे में ही अचरज जताया जा रहा है। वित्त विशेष्ाज्ञों का भी कुछ ऎसा ही मानना है। जबकि इस सामान की खरीद के लिए निदेशालय स्तर पर टेंडर प्रकिया अपनाई जा सकती थी।
इनका कहना है : खरीद के लिए जो दरें तय की हैं, ये अनुमान पर आधारित हैं। अभी तो विधानसभा में बिजी हूं। सत्र के बाद ही देखूंगा कि क्या आदेश निकाले हैं खरीद के लिए।
- डॉ. बीआर मीणा, निदेशक (जन स्वास्थ्य), चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग
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