स्टॉकहोम।। अंडाणु में ही क्रोमोज़ोम की गड़बड़ी का पता लगाने में सक्षम एक टेस्ट (आईवीएफ)प्रजनन के क्षेत्र में अत्यंत मददगार हो सकता है और इसकी मदद से उम्रदराज महिलाओं को मां बनने का सुख मिल सकता है।
वैज्ञानिक अपनी इस सफलता से उत्साहित हैं, लेकिन उन्होंने ऐसे सबूत का संकेत भी दिया है, जिससे यह आशंका उभरती है कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) से बच्चे को डाउन सिन्ड्रोम होने का खतरा बढ़ जाता है। लंदन ब्रिज फर्टिलिटी के गायनोलॉजी ऐंड जेनेटिक्स सेंटर के डायरेक्टर एलन हैंडीसाइड का कहना है, 'यह एक सामान्य सवाल है।' बहरहाल, आठ देशों के डॉक्टरों का नेतृत्व कर रहे एलेन ने कहा 'लेकिन अब तक हमारे पास कोई सीधा सबूत नहीं है और हम नहीं चाहते कि महिलाएं चिंतित हों।'
परीक्षण के बारे में स्टॉकहोम स्थित 'यूरोपियन सोसायटी ऑफ ह्यूमन रिप्रोडक्शन ऐंड एम्ब्रायॉलजी' ने बताया कि इस टेस्ट के अंतर्गत अंडाणु के क्रोमोज़ोम के जोड़ों को उसके अडल्ट होने से पहले ही गिन लिया जाता है। इसका मुख्य लक्ष्य क्रोमोज़ोम में होने वाली समस्या के बारे में पता लगाना है, जिसकी वजह से भ्रूण में गड़बड़ी आ जाती है और गर्भपात भी हो सकता है। अंडाणु में क्रोमोज़ोम का एक अतिरिक्त जोड़ा होने पर 'डाउन सिंड्रोम' नामक मानसिक विकलांगता आती है।
हैंडीसाइड का कहना है कि इस नए तकनीक के माध्यम से अच्छे और खराब अंडाणुओं में अंतर किया जा सकता है तथा उन्हें अलग किया जा सकता है। इसके माध्यम से डॉक्टर महिलाओं को किसी अंडाणु के माध्यम से गर्भवती होने और उससे स्वस्थ बच्चे के पैदा होने के बारे में सलाह दे सकते हैं। इस तकनीक की मदद से 35 वर्ष से ज्यादा उम्र की महिलाएं भी मां बन सकेंगी।
वैज्ञानिक अपनी इस सफलता से उत्साहित हैं, लेकिन उन्होंने ऐसे सबूत का संकेत भी दिया है, जिससे यह आशंका उभरती है कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) से बच्चे को डाउन सिन्ड्रोम होने का खतरा बढ़ जाता है। लंदन ब्रिज फर्टिलिटी के गायनोलॉजी ऐंड जेनेटिक्स सेंटर के डायरेक्टर एलन हैंडीसाइड का कहना है, 'यह एक सामान्य सवाल है।' बहरहाल, आठ देशों के डॉक्टरों का नेतृत्व कर रहे एलेन ने कहा 'लेकिन अब तक हमारे पास कोई सीधा सबूत नहीं है और हम नहीं चाहते कि महिलाएं चिंतित हों।'
परीक्षण के बारे में स्टॉकहोम स्थित 'यूरोपियन सोसायटी ऑफ ह्यूमन रिप्रोडक्शन ऐंड एम्ब्रायॉलजी' ने बताया कि इस टेस्ट के अंतर्गत अंडाणु के क्रोमोज़ोम के जोड़ों को उसके अडल्ट होने से पहले ही गिन लिया जाता है। इसका मुख्य लक्ष्य क्रोमोज़ोम में होने वाली समस्या के बारे में पता लगाना है, जिसकी वजह से भ्रूण में गड़बड़ी आ जाती है और गर्भपात भी हो सकता है। अंडाणु में क्रोमोज़ोम का एक अतिरिक्त जोड़ा होने पर 'डाउन सिंड्रोम' नामक मानसिक विकलांगता आती है।
हैंडीसाइड का कहना है कि इस नए तकनीक के माध्यम से अच्छे और खराब अंडाणुओं में अंतर किया जा सकता है तथा उन्हें अलग किया जा सकता है। इसके माध्यम से डॉक्टर महिलाओं को किसी अंडाणु के माध्यम से गर्भवती होने और उससे स्वस्थ बच्चे के पैदा होने के बारे में सलाह दे सकते हैं। इस तकनीक की मदद से 35 वर्ष से ज्यादा उम्र की महिलाएं भी मां बन सकेंगी।
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