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कौन कहता है आसमा में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो' दुष्यन्त कुमार की यह लाईन जीवन की दिशा बदल देगी ऐसा तो इस रिक्शा खींचने वाले ने भी नहीं सोचा था। अपने मन में जबरदस्त हौसला रखे इस गरीब मुस्लिम रिक्शा चालक ने राम और रहीम की कवितायें लिखकर साहित्य में वह मुकाम हासिल किया पहुंच पाना काफी मुश्किल होता है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले के धवाएं गांव के रहने वाले रहमान बेहद गरीब हैं और रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण बडी मुश्किल से कर पाते हैं। चूंकि रहमान गरीब रिक्शा चालक हैं इसलिए समाज में उन्हें उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है लेकिन बुलंद हौसलों के धनी रहमान इन सभी कठिनाइयों का सामना करते हुए समय के चक्र के साथ अपनी कला को बढाते जा रहे हैं।
बचपन से ही साहित्य में रुचि रखने वाले रहमान इण्टर की परीक्षा पास करने के बाद थियटरों में छोटा मोटा काम करने लगे। वहां उन्हें कुछ काम भी मिल जाता था। रहमान रामलीला के पात्रों को देखा करते और उनका गहन अध्ययन भी करते थे। यहीं से रहमान की रुचि श्रीकृष्ण. राम. रहीम. कबीर और अन्य सामाजिक मामलों में बढी।
रहमान की यही सोच उन्हें साहित्य के क्षेत्र में ले आई और वह रिक्शा चलाते हुए कविताएं लिखने लगे। रहमान ने अभी तक तीन पुस्तकें लिखीं हैं। पहली पुस्तक है, रहमान राम नाम का प्यारा, दूसरी .मत व्यर्थ करो पानी को. और तीसरी एक कविता संग्रह है। रहमान को साहित्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने पर सरकार और कई गैर सरकारी संस्थाओं ने सम्मान तो दिया लेकिन सहयोग के रुप में रहमान को निराशा ही हाथ लगी।
रहमान बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे अपनी किताबों को छपवाकर उन्हें बाजार तक पहुंचा सके। छत्तीस सालों से रिक्शा चला रहे रहमान ने समाज के सभी पहलुओं को अपनी कविता के माध्यम से पेश किया है लेकिन उन्हें दरकार है मदद की।
रहमान कहते हैं कि रिक्शा चलाने से ही उनके परिवार का पेट भरता है लेकिन साहित्य उन्हें मानसिक खुराक देती है। हालांकि उनकी यह रूचि परिवार वालों को नागवार गुजरती है। रहमान को सम्मान तो बहुत मिले लेकिन समाज और सरकार से आर्थिक मदद नहीं मिली।
छंद. मुक्तक. दोहे और देशभक्ति गीत रहमान के साहित्य के प्रमुख अंग हैं। उन्होंनें सभी जातियों .सम्प्रदाय को अपने साहित्य के माध्यम से एक धागे में पिरोने का काम किया है। रहमान की आखिरी इच्छा यही है कि उसकी कविताओं को हिन्दी साहित्य में जगह मिल जाये।
कौन कहता है आसमा में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो' दुष्यन्त कुमार की यह लाईन जीवन की दिशा बदल देगी ऐसा तो इस रिक्शा खींचने वाले ने भी नहीं सोचा था। अपने मन में जबरदस्त हौसला रखे इस गरीब मुस्लिम रिक्शा चालक ने राम और रहीम की कवितायें लिखकर साहित्य में वह मुकाम हासिल किया पहुंच पाना काफी मुश्किल होता है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले के धवाएं गांव के रहने वाले रहमान बेहद गरीब हैं और रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण बडी मुश्किल से कर पाते हैं। चूंकि रहमान गरीब रिक्शा चालक हैं इसलिए समाज में उन्हें उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है लेकिन बुलंद हौसलों के धनी रहमान इन सभी कठिनाइयों का सामना करते हुए समय के चक्र के साथ अपनी कला को बढाते जा रहे हैं।
बचपन से ही साहित्य में रुचि रखने वाले रहमान इण्टर की परीक्षा पास करने के बाद थियटरों में छोटा मोटा काम करने लगे। वहां उन्हें कुछ काम भी मिल जाता था। रहमान रामलीला के पात्रों को देखा करते और उनका गहन अध्ययन भी करते थे। यहीं से रहमान की रुचि श्रीकृष्ण. राम. रहीम. कबीर और अन्य सामाजिक मामलों में बढी।
रहमान की यही सोच उन्हें साहित्य के क्षेत्र में ले आई और वह रिक्शा चलाते हुए कविताएं लिखने लगे। रहमान ने अभी तक तीन पुस्तकें लिखीं हैं। पहली पुस्तक है, रहमान राम नाम का प्यारा, दूसरी .मत व्यर्थ करो पानी को. और तीसरी एक कविता संग्रह है। रहमान को साहित्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने पर सरकार और कई गैर सरकारी संस्थाओं ने सम्मान तो दिया लेकिन सहयोग के रुप में रहमान को निराशा ही हाथ लगी।
रहमान बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे अपनी किताबों को छपवाकर उन्हें बाजार तक पहुंचा सके। छत्तीस सालों से रिक्शा चला रहे रहमान ने समाज के सभी पहलुओं को अपनी कविता के माध्यम से पेश किया है लेकिन उन्हें दरकार है मदद की।
रहमान कहते हैं कि रिक्शा चलाने से ही उनके परिवार का पेट भरता है लेकिन साहित्य उन्हें मानसिक खुराक देती है। हालांकि उनकी यह रूचि परिवार वालों को नागवार गुजरती है। रहमान को सम्मान तो बहुत मिले लेकिन समाज और सरकार से आर्थिक मदद नहीं मिली।
छंद. मुक्तक. दोहे और देशभक्ति गीत रहमान के साहित्य के प्रमुख अंग हैं। उन्होंनें सभी जातियों .सम्प्रदाय को अपने साहित्य के माध्यम से एक धागे में पिरोने का काम किया है। रहमान की आखिरी इच्छा यही है कि उसकी कविताओं को हिन्दी साहित्य में जगह मिल जाये।
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