सोमवार, 20 जून 2011

विदेशी नमक के खिलाफ पचपदरा से छिड़ी थी जंग














विदेशी नमक के खिलाफ पचपदरा से छिड़ी थी जंग 

बाड़मेर महात्मा गांधी के  नमक आंदोलन से पहले पचपदरा से आयातित नमक के खिलाफ जंग छिड़ी थी। जब अंग्रेजों ने इस बात पर जोर दिया कि पचपदरा के  नमक की मांग नहीं है। इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में पचपदरा से नमक के कुछ वैगनों को कराची बंदरगाह से लदान करवाने के बाद कलकत्ता भेजा गया। हालांकि यह बात अलग है कि अंग्रेजों की सुनियोजित स्पद्घार के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा था। 
यह बात उस जमाने की है जब अंगे्रजों ने यह दावा किया था कि भारत बंगाल की जनता के पसंद का नमक पैदा नहीं कर सकता। इसकी आड़ में वे यहां विलायत से नमक लाने की मंशा रखते थे। क्योंकि बंगाल भारत में स्वच्छ नमक खाने वाला क्षेत्र माना जाता है। इसे अलावा आमतौर पर अंग्रेज लोग जहाजों के संतुलन के  लिए उसमें पत्थर भरकर लाते थे। उनका मानना था कि उसे स्थान पर अगर नमक लाया जाए तो अतिरिक्त आय हो सकती है। उस समय सांभर नमक उत्पादन क्षेत्र में मशीनरी पर बि्रटिश सरकार ने भारी खर्चा किया। बावजूद इसे उत्पादन व्यय के मुकाबले कम प्राप्त हुआ। सांभर से भारी नुकसान उठाने के बाद उनका ध्यान पचपदरा के  नमक उद्योग को बंद करने की तरफ गया। जब पचपदरा का नमक उद्योग संकट में पड़ने लगा तो सेठ गुलाबचंद ने नमक के  कुछ वैगनों को कराची बंदरगाह से लदान करवाया। इसे अलावा कराची की नमक उत्पादन की फर्म नोशेखांजी कपनी से नमक खरीदकर नमक के एक जहाज का लदान कलकत्ता के लिए करवाया। जब यह नमक कलकत्ता के  नमक बाजार में हड़ंप मच गया। उस जमाने में आयातित नमक की बि्रटिश नकंपियों का एक संगठन बना हुआ था। इसने दलालों के माफर्त पता करवाया कि पचपदरा का नमक किस भाव से बिकेगा? उस समय नमक के भाव 250 रुपए प्रति टन चल रहे थे। सेठ गुलाबचंद ने पचपदरा के  नमक की विक्रय दर 175 रुपए प्रति टन बताई। लेकिन उन कंपनियों ने पचपदरा का नमक नहीं बिके इसके  लिए दूसरे नमक की दर घटाकर 145 रुपए प्रति टन कर दी। इस दरिम्यान करीब दस माह तक भाव ऊपर चढ़ने के  इंतजार के  बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला। ऐसे में मजबूरन भारी नुकसान में यह नमक बेचना पड़ा। इस तरह से पचपदरा नमक का यह आंदोलन सफल नहीं हो सका। परंतु पचपदरा उद्योग को चालू रखने का एक प्रयास था। इसी का नतीजा था कि टेरिक बोर्ड आन साल्ट इंडस्ट्री की स्थापना के  बाद पचपदरा के  खारवालों एवं मजदूरों ने हड़ताल के  जरिए अंग्रेज सरकार का विरोध किया। सरकारी विरोध का नतीजा यह निकला कि सरकार ने यहां अधिक नमक की खाने खोदने की अनुमति दी।
 
अजब-गजब
 
झील नहीं,फिर भी होता है नमक उत्पादन
 

नमक उत्पादन स्थलों पर तकरीबन हर जगह एक झील होती है। लेकिन पचपदरा में ऐसी कोई झील नहीं है। इसे बावजूद यहां नमक का उत्पादन होता है। 
पचपदरा नमक उत्पादन स्थल की एक विशेषता यह भी है कि अन्य सब स्थानों पर पानी को क्यारियों में सुखाया जाता है। परंतु पचपदरा में नमक के लिए खाने खोदी जाती है। इस समय तकरीबन 700 के  करीब नमक की खाने चालू हैं। हालांकि पड़तल खानों की तादाद हजारों में है। पड़तल खान उसको कहा जाता है जिसको नमक उत्पादन बंद हो जाने के  बाद दुबारा नहीं खुदवाया जाता। पचपदरा में प्रारंभिक अवस्था में पानी का घनत्व 13 से 14 डिग्री के  तकरीबन रहता है। वहीं समुद्री पानी का यह घनत्व प्रारंभिक अवस्था में महज 3 डिग्री होता है। पानी का घनत्व मापने के  लिए हाइड्रोमीटर का इस्तेमाल किया जाता है।

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