ह्यूस्टन. आधुनिक शिक्षा के बावजूद भारतीयों की मानसिकता में बदलाव नहीं आया है। अमेरिका में परिवार के दबाव के चलते भारतीय मूल की महिलाएं पुत्र की चाह में कन्या भ्रूण हत्या करा रही हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। उल्लेखनीय है कि भारत में लिंग चयन तकनीक पर प्रतिबंध है। जबकि अमेरिका में किसी भी कारण से गर्भपात और विभिन्न चिकित्सकीय तकनीक के जरिए लिंग चयन की छूट है।
अध्ययन के मुताबिक ये महिलाएं कृत्रिम प्रजनन तकनीक इन व्रिटो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के दौरान सिर्फ नर भ्रूण को प्रत्यारोपित करा रही हैं। वह कन्या भ्रूण का गर्भपात करा देती हैं। शोधकर्ताओं ने कैलिफोर्निया, न्यूजर्सी और न्यूयॉर्क में 65 अप्रवासी भारतीय महिलाओं का साक्षात्कार लिया, जिन्होंने सितंबर, 2004 से दिसंबर, 2009 के बीच लिंग परीक्षण कराया।
साक्षात्कार के दौरान जो महिलाएं गर्भवती थीं, उनमें से 89 प्रतिशत ने कन्या भ्रूण पता चलने के बाद गर्भपात करा लिया। यह सभी महिलाएं विभिन्न धर्मो और अलग-अलग शैक्षिक पृष्ठभूमि की थीं। जबकि आधे से ज्यादा नौकरीपेशा थीं। हालांकि विभिन्न शैक्षिक स्तर होने के बावजूद उनकी मानसिकता एक समान थी।
इनमें 38 प्रतिशत हाईस्कूल पास थीं। जबकि 12 स्नातक और 15 के पास चिकित्सा, लॉ, बिजनेस, नर्सिग और वैज्ञानिक शोध की उच्च स्तरीय डिग्री थी। प्रमुख शोधकर्ता सुनीता पुरी ने कहा, ‘चिकित्सक इन मामलों में सलाह देने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन पारिवारिक दबाव के मामलों में संकोच कर जाते हैं।’
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। उल्लेखनीय है कि भारत में लिंग चयन तकनीक पर प्रतिबंध है। जबकि अमेरिका में किसी भी कारण से गर्भपात और विभिन्न चिकित्सकीय तकनीक के जरिए लिंग चयन की छूट है।
अध्ययन के मुताबिक ये महिलाएं कृत्रिम प्रजनन तकनीक इन व्रिटो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के दौरान सिर्फ नर भ्रूण को प्रत्यारोपित करा रही हैं। वह कन्या भ्रूण का गर्भपात करा देती हैं। शोधकर्ताओं ने कैलिफोर्निया, न्यूजर्सी और न्यूयॉर्क में 65 अप्रवासी भारतीय महिलाओं का साक्षात्कार लिया, जिन्होंने सितंबर, 2004 से दिसंबर, 2009 के बीच लिंग परीक्षण कराया।
साक्षात्कार के दौरान जो महिलाएं गर्भवती थीं, उनमें से 89 प्रतिशत ने कन्या भ्रूण पता चलने के बाद गर्भपात करा लिया। यह सभी महिलाएं विभिन्न धर्मो और अलग-अलग शैक्षिक पृष्ठभूमि की थीं। जबकि आधे से ज्यादा नौकरीपेशा थीं। हालांकि विभिन्न शैक्षिक स्तर होने के बावजूद उनकी मानसिकता एक समान थी।
इनमें 38 प्रतिशत हाईस्कूल पास थीं। जबकि 12 स्नातक और 15 के पास चिकित्सा, लॉ, बिजनेस, नर्सिग और वैज्ञानिक शोध की उच्च स्तरीय डिग्री थी। प्रमुख शोधकर्ता सुनीता पुरी ने कहा, ‘चिकित्सक इन मामलों में सलाह देने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन पारिवारिक दबाव के मामलों में संकोच कर जाते हैं।’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें