रविवार, 26 जून 2011

घर तो पति ने छोड़ा, फिर कैसी घरेलू हिंसा!

घर तो पति ने छोड़ा, फिर कैसी घरेलू हिंसा! 
 

जोधपुर। अतिरिक्त मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट (आर्थिक अपराध) की अदालत ने घरेलू हिंसा के मामले में एक महिला की ओर से दाखिल परिवाद खारिज कर दिया। अदालत ने इस मामले में पति पर लगाए गए महिला के आरोप भी ठीक नहीं माने।

महामंदिर निवासी परिवादी दुर्गादेवी का कहना था कि उसका पति देवीप्रसाद खटीक रोजाना शराब पीकर घर आता है और उसके साथ मारपीट करता है। घर-खर्च चलाने के लिए भी पैसा नहीं देता। उसके वकील ने देवीप्रसाद की सरकारी नौकरी और 28 हजार रूपए से अधिक की तनख्वाह का हवाला देकर उसे आठ हजार रूपए महीना गुजारा भत्ता दिलवाने की गुहार लगाई। इसके जवाब में देवीप्रसाद की ओर से अधिवक्ता हैदर आगा ने अदालत को बताया कि इस प्रकरण में घरेलू हिंसा अधिनियम का दुरूपयोग किया जा रहा है। वस्तुत: देवीप्रसाद की पत्नी और बच्चे उसके साथ मारपीट करते हैं। इससे तंग आकर उसने साल भर पहले घर छोड़ दिया था। बाद में नौकरी से भी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली।

खुद दुर्गादेवी ने भी अपने बयान में यह बात स्वीकार की है कि 3 जनवरी 2010 से पहले तक उसके पति साथ रहते थे। बाद में वे कहीं चले गए और अब कहां रहते हैं, उसे पता नहीं है। ऎसे में घरेलू हिंसा का तथ्य स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस पर सुनवाई के बाद अतिरिक्त मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट अल्का गुप्ता ने दुर्गादेवी का परिवाद खारिज कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में साफ कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में परिवादी दुर्गादेवी ने बच्चों से पति को पिटवाया और घर छोड़ने के लिए मजबूर किया है।

लिहाजा ऎसे मामलों में भरणपोषण दिलवाने पर अधिनियम के उद्देश्य का दुरूपयोग होगा। उन्होंने तीनों नाबालिग बच्चों के लिए प्रत्येक को 1500 रूपए प्रतिमाह दिए जाने के पारिवारिक न्यायालय के आदेश के अलावा कोई राशि दिलवाना ठीक नहीं माना। 

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