सोमवार, 27 जून 2011

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रसिद्ध ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन


 प्रसिद्ध ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग 


भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रसिद्ध ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन व पूजन से जीवन में आने वाली सारी बाधाएं दूर हो जाती है।

शास्त्रों के अनुसार कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले किन्तु जब तक वह ओंकारेश्वर में किए गए तीर्थों का जल लाकर नहीं चढ़ाता तब तक उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं।

ज्योर्तिलिंग की विशेषता

ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग की विशेषता है कि यह दो स्वरुपों में है। पहला अमरेश्वर या ममलेश्वर और दूसरा ओंकारेश्वर। इस ज्योर्तिंलिंग का महत्व है कि इनकी पूजा व उपासना से सभी मनोरथ पूरे होते हैं। दोनों शिवलिंग मंदिर अलग होते हुए भी दोनों की शक्ति और स्वरुप एक ही माने जाते हैं।

जो मनुष्य इस तीर्थ में पहुंच कर अन्नदान, तप, पूजा आदि करता है अथवा अपना प्राणोत्सर्ग यानि मृत्यु को प्राप्त होता है उसे भगवान शिव के लोक में स्थान प्राप्त होता है।

कहां है स्थित

मध्यप्रदेश में देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं। एक उज्जैन में महाकाल के रूप में और दूसरा ओंकारेश्वर में ममलेश्वर (अमलेश्वर) के रूप में विराजमान हैं। ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग मध्यप्रदेश के इंदौर में नर्मदा नदी के किनारे स्थित है।

कथा (ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग)

एक बार नारदजी ने गोकर्ण तीर्थ में जाकर गोकर्ण नामक शिव की पूजा और पुन: विंध्याचल पर्वत पर जाकर वहां भी श्रद्धापूर्वक शिवजी का पूजन किया। इस पर गर्वोन्मत विंध्य नारदजी के समझ उपस्थित होकर अपने को सर्वश्रेष्ठ बतलाने लगा। नारदजी ने उसके दर्पदलन के लिए उससे कहा कि सुमेरू के समक्ष तुम्हारी कोई गणना नहीं क्योंकि उसकी तो देवताओं में गणना होती है।

यह सुनकर विंध्य सुमेरू से भी उच्च पद पाने के लिए शंकरजी के शरणागत होकर, ओंकार नामक शिव की पार्थिव मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करने लगा। विंध्य के घोर तप से प्रसन्न होकर शिवजी ने उससे वरदान मांगने को कहा, विंध्य ने भगवान से मनोवांछित कार्यों को सिद्ध कर सकने का वर मांगा।

इस पर भगवान सोचने लगे कि इसने तो ऐसा वरदान मांगा है जो दूसरों के लिए दुखद है अब तो ऐसा कुछ करना होगा कि यह किसी को दुख न दे सके। तब शिवजी ने उसके द्वारा बनायी गयी ओंकार नामक पार्थिव मूर्ति के अन्दर ज्योति रूप में समा गये और तभी से यह ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग से प्रसिद्ध हुयी।

एक और मान्यता के अनुसार भगवान शंकर के महान भक्त अम्बरीष और मुचुकंद के पिता सूर्यवंशी राजा मान्धाता ने इस पर्वत पर कठोर तपस्या करके प्रभु को प्रसन्न किया और शिवजी के प्रकट होने पर उनसे यहीं निवास करने का वरदान मांग लिया। तभी से इस स्थान को ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग के नाम से जानते हैं।

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