सोमवार, 27 जून 2011

मध्य प्रदेश में अफसरों पर 284 मामले

 मध्य प्रदेश में अफसरों पर 284 मामले 
 




जबलपुर। भ्रष्टाचार के मामले में लिप्त प्रदेश के सैकड़ों नौकरशाह घर बैठे मौज कर रहे हैं। अदालती प्रक्रिया में देरी के चलते इन अधिकारियों के खिलाफ वर्षो से मामले लंबित है। अधिकारी घर बैठे तनख्वाह का बड़ा हिस्सा पाने के साथ सरकारी खर्चे पर सुविधाएं भोग रहे हैं। इस समय प्रदेश के 48 जिलों के विशेष न्यायालयों में भ्रष्टाचार के 284 मामले लंबित हैं।

अफसरों के खिलाफ रिश्वत मांगने, वित्तीय अनियमितताओं से लेकर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप हैं। भ्रष्टाचार में मोटी कमाई कर चुके अफसरों पर मामले लंबित होने से विभागीय स्तर पर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही। केन्द्रीय और राज्य सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम के तहत चालान पेश होने के बाद अधिकारी-कर्मचारी को तत्काल निलंबित करने का प्रावधान है।

कानून के जानकारों के अनुसार 90 प्रतिशत से अधिक मामलों में चालान पेश होते ही निलंबन कर दिया जाता है। ऎसे प्रकरणों में बहाली भी नहीं होती, लेकिन निलंबन के दौरान वेतन और सुविधाएं जारी रहती हैं। कई बार मामला विचाराधीन रहने के दौरान अफसर बहाल भी हो जाते हैं या उनका निलंबन भी नहीं होता।

विशेष न्यायालयों में लंबित 284 प्रकरणों में लोकायुक्त (विशेष पुलिस स्थापना) की ओर से चालान पेश किए हैं। इनमें सबसे ज्यादा 39 मामले इंदौर में लंबित हैं। जबलपुर में 35, भोपाल में 34 तथा उज्जैन में 14 मामले लम्बित हैं।

प्रदेश पुलिस सबसे "अव्वल
मध्य प्रदेश पुलिस भले ही लोगों को सुरक्षा और शांति देने के लाख दावे करती हो, लेकिन एक ताजा रिपोर्ट में प्रदेश पुलिस को देश की सबसे भ्रष्ट बताया गया है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2006 से 2010 तक मध्य प्रदेश के पुलिसकर्मियों पर 93,710 मामले दर्ज हुए है, जो उत्तर प्रदेश (34,364), दिल्ली (29,165), पंजाब (23,090) और महाराष्ट्र (21,000) में पुलिसकर्मियों पर दर्ज मामलों से भी ज्यादा है।

प्रदेश में पुलिसकर्मियों पर रिश्वत मांगने, धमकाने, जबरन गिरफ्तारी, गिरफ्तारी में मौत के मामले ज्यादा है। उधर रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में दस हजार लोगों पर पुलिस का रेशो 12.16 है। 

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