बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

मत भूलो मायड़ भाषा रो मान’


‘मत भूलो मायड़ भाषा रो मान’
दैनिक भास्कर टॉक शो में साहित्यकारों ने की मायड़ भाषा की पुरजोर पैरवी
भास्कर न्यूज & बाड़मेर
हम ये नहीं कहते कि अंग्रेजी या हिन्दी मत बोलो। हम तो कहते है कि मायड़ भाषा राजस्थानी का अधिक से अधिक चलन हो। मातृ भाषा हिन्दी व अंग्रेजी की जहां बोलने की आवश्यकता अधिक महसूस हो, वहीं उपयोग करें। केंद्र में कई मंत्री अपनी स्टेट की भाषा में ही भाषण देते है। वहीं का पहनावा पहनते है। राजस्थानी भाषा का समृद्ध इतिहास है। संस्कृति, लोककला, खान-पान, रहन सहन, पहनावा सबसे प्यारा और न्यारा है।’ मायड़ भाषा राजस्थानी को मान्यता दिलाने को लेकर यहीं पुरजोर पैरवी मंगलवार को ‘दैनिक भास्कर’ कार्यालय में आयोजित ‘राजस्थानी भाषा को कैसे मिले मान्यता’ विषयक टॉक शो में शहर के नागरिकों ने कही। 

मल्लीनाथ छात्रावास के व्यवस्थापक कमलसिंह महेचा ने कहा ‘राजस्थानी साहित्य सूं समृद्ध है। राजस्थानी री वीर रस, श्रृंगार रस तो कोई सांनी कोनी। राजस्थानी राजस्थान रे कोने-कोने में बोलीजे है। शब्दों रो अंतर है, पण भाव एक ही जेड़ों है।’

राजकीय महाविद्यालय के प्रवक्ता डॉ. ओंकार नारायणङ्क्षसह ने कहा ‘मायड़ भाषा ने मान्यता दिलावण सांरू ओ प्रयास चोखो है। राजस्थानी मां है, जद की हिंदी उनरी बेटी है। पण आज बेटी मां रो स्थान ले अर बैठी है। राजस्थानी रो भक्ति साहित्य जिणमें पाबूजी री पड़, बाबा रामदेव रो इतिहास, मेवाड़ री वीर गाथा, मीरा रो अरदास किण ही साहित्य हूं कम नी है।’

शैक्षिक प्रकोष्ठ अधिकारी (प्रा.शि.) डॉ. लक्ष्मीनारायण जोशी ने कहा ‘आजादी रे इत्ता बरसो बाद भी राजस्थानी भाषा ने मान्यता दिलाण सारू आवाज उठाणी पड़े। जद कि इण मायड़ भाषा रो लंबो चौड़ो इतिहास संजोउड़ों है। भाषा रै साथै साथै अठै रो मान, संस्कृति, लोक कला, खान पान पुरी दुनियां मानै है। बाहर रा अंग्रेज अठे आ अठै री संस्कृति देखण सारूं तरसे है। अठै रो पहनाणों मन ने लुभावै।’

राजस्थानीय भाषा मान्यता समिति बाड़मेर के पूर्व अध्यक्ष कन्हैयालाल वक्र ने कहा ‘जिण भाषा में मीरा करी गिरधर री अरदास, बा आपणी राजस्थानी ने सब मान दिलाओ। म्हे खासे बरसों सूं राजस्थानी ने मान्यता दिलाण सारूं प्रयास करूं हूं, इण वास्ते म्हे पत्र पत्रिकाओं में लेख लिख्या। कविता सूं आपरी बात कही। पण आज खुशी है कि सब लोग इण सारूं आगे आया है। तीस मार्च राजस्थान दिवस माथै सगला लोग एक दिन रो उपवास राख न अरदास करें।’

एबीईईओ कमलसिंह राणीगांव ने कहा ‘राजस्थानी रो बोलचाल में ज्यादा सूं ज्यादा प्रयोग होवे। जिण सूं घर परिवार में इण भाषा रै प्रति मोह जागसी। ’

कमठा मजदूर यूनियन के जिलाध्यक्ष लक्ष्मण वडेरा ने कहा ‘राजस्थानी मान्यता रो ओ हेलो घर घर से उठावणो पड़सी। राजस्थानी री मान्यता सारूं ईमानदारी, वफादारी सूं काम करणो पड़सी।’

कृष्णा संस्था के चंदनसिंह भाटी ने कहा ‘बाड़मेर सूं चली आ मान्यता री आवाज राजस्थान रै गांव गांव तक पहुंचसी। गांव-गांव सूं उठयूड़ी आवाज विधानसभा और संसद में पहुंच राजस्थानी ने मान्यता दैरासी।’

सामाजिक कार्यकर्ता रणवीरसिंह भादू ने कहा ‘राजस्थानी भाषा ने पाठ्यक्रम में लागू करवाणों पड़सी। छोटी कक्षाओं सूं टाबरों ने इणरो ज्ञान कराणों पड़सी।’

जिला परिषद सदस्य कोसर बानो ने कहा ‘राजस्थानी भाषा ने मान्यता दिलाण सांरी म्हारी दिलीं ख्वाहिश है।’

पार्षद सुरतानसिंह ने कहा ‘राजस्थानी भाषा रै साथै-साथै अठे री परंपरागत देशी ऊन हूं बणन वाला उत्पाद माथै भी संकट है। राजस्थानी भाषा जदै हूं छोड़ी बिण हूं पछै अठै रो पहनावो छूट गो, संस्कृति बिखर गी।’

पूर्व जिला परिषद सदस्य रिड़मलसिंह दांता ने कहा कि ‘मायड़ भाषा री मान्यता सारूं सब लोगों ने मिलजुल प्रयास करनो पड़सी। इणमें ही सगला राजस्थानियों रो मान बढ़सी।

जिला कांग्रेस कमेटी सदस्य युसुफ खान ने कहा कि ‘ऐडो जमाणों आयो है के आपरे टाबरों ने लोग कैवे बेटा मारवाड़ी मत बोलिजे म्हारो मान सम्मान घट जावेला। इण में सुधार लाणो पड़सी। मायड़ भाषा ने बोलण सारूं हिचक छोडऩी पड़सी।’

अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार फकीरा खां ने कहा कि ‘राजस्थानी भाषा, संस्कृति, लोक कला रै सारूं म्हारो विश्व में घणों घणों मान सम्मान होवे। बठै रा लोग अठै रा मीठा गीतों व धुनों ने सुण मस्ती में डूब जावे। अपणी नकल करणे री कोशिश करें। पणे अठे तो इण सूं लोग दूर भागे। नुवां बनड़ा तो राजस्थानी रा बोल ही ना समझै। अबे इण रो बदलाव करणो चाहिजे।’

कलाकार दिलावर खां ने कहा ‘आपरे टाबरों ने भले ही अंग्रेजी या हिंदी स्कूलों में पढ़ावो। पण राजस्थानी रो घरों व व्यवहार में घणों घणों उपयोग होनो चाहिजे। इणरे सारूं सब लोगों ने एको राखणों पड़सी।’

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