सोमवार, 16 मार्च 2015

अजमेर से बाड़मेर आ रहा "नशा"

अजमेर से बाड़मेर आ रहा "नशा"


बाड़मेर शहर में मिल रही स्मैक जोधपुर के रास्ते अजमेर से यहां पहुंच रही है। इसके कुछेक परचून व पान की दुकान वाले हैं। शहर के कुछ इलाकों में यह सहज उपलब्ध हो रही है।



शहर के कॉलेज कैम्पस तक पहुंच रही स्मैक को बाड़मेर तक पहुंचाने की एक चैन बनी हुई है। स्मैक की अजमेर से आपूर्ति होती है। जोधपुर के रास्ते ये बाड़मेर तक पहुंचती है। छोटी सी पुडिया की कीमत हजारों रूपए है। स्मैक के कारोबारी इसे आसानी से लेकर आते हैं।




शहर की पॉश कॉलोनियों में कुछ ठिकाने हैं, जहां ये मिलती है। यहां से शहर के कई दुकानदार इसे खरीदते हैं। स्थानीय हाईवे पर दो-तीन जगह स्मैक बिकती है। यहां सुबह व शाम ग्राहकों की चहल-पहल रहती है। स्थिति यह है कि एक कश के लिए युवा इंतजार करते हैं, तब जाकर नम्बर आता है।




पड़ोसी जानकर भी अनजान

स्मैक कहां मिल रही है, इसकी जानकारी आस-पास के लोगों को रहती है, लेकिन वे जानकर भी अनजान बने हुए हैं। आस-पास रहने वालों का नजरिया ऎसा है, जैसे कि वह कुछ जानते ही नहीं हो। हकीकत यह है कि लोग जानकारी होने के बावजूद इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहते।




मुनाफे का चक्कर

स्मैक का धंधा मुनाफे का बना हुआ है। इसके आदी युवाओं की तादाद बढ़ने से इसकी मांग शहर में ज्यादा बढ़ गई है। ऎसे में मुंह मांगे दाम पर बिक जाती है। नशेडियों को भी पता है कि अमुक व्यक्ति या ठिकाने पर यह मिल जाएगी। वे वहां पहुंच कर इसे खरीदते हैं अथवा कूरियर का सहारा लेते हैं। ऎसे में धंधा करने वालों को न तो ग्राहक देखने की चिंता है और न ही बिकवाली का डर।




बेचने वालों को नहीं चिंता

स्मैक भले ही महंगे दाम पर मिलती है, लेकिन इसे बेचने वालों को इसकी चिंता नहीं होती, क्योंकि खरीदार रोकड़ रूपए देकर इसे खरीद रहे हैं। स्मैक बेचने वाले पुडिया बनाकर बेचते हैं। एक हजार रूपए से पुडिया की शुरूआत होती है। अधिक रूपए खर्च करने वालों को बड़ी पैकिंग की पुडिया ज्यादा दामों पर दी जाती है।

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